Friday 11 March 2016

झुलसाने वाला श्याम सूर्य


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जी हां यह हमारा सूर्य ही है !
झुलसाने वाला तो ठीक है लेकिन श्याम सूर्य ? ये क्या बात हुयी ?
किसी सामान्य दिन सूर्य यह झुलसाने देने वाला अत्यंत गर्म गैस का गोला ही रहता है। लेकिन कभी कभी अचानक सूर्य पर कुछ अत्यंत चुम्ब्कीय क्षेत्रो का निर्माण होता है जिसके कारण कुछ धुंधले ‘सूर्य धब्बो’ और चमकिले ‘सक्रिय क्षेत्रो’ का निर्माण होता है। ”सूर्य धब्बे’ का तापमान अन्य क्षेत्रो से कम होता है।
ये सक्रिय क्षेत्र गैस को चुंबकिय छल्लो के रूप मे प्रवाहित करते है। सामान्यतः यह गैस वापिस सुर्य पर आ जाती है लेकिन कभी कभी यह ‘सूर्य कोरोना(Corona) या सौर हवा(Solar Wind) के रूप मे हमारे अंतरिक्ष मे आ जाती है। यह तस्वीर पराबैगनी प्रकाश के तीन रंगो मे ली गयी है। सुर्य के सक्रिय क्षेत्रो से ही पराबैंगनी किरणे निकलती है इसलिये तस्वीर का अधिकतर हिस्सा श्याम (अंधेरा) दिखायी दे रहा है। तस्वीर के रंगीन क्षेत्र जो ज्यादा चमक रहे है वह ‘सूर्य के सबसे ज्यादा अशांत क्षेत्र हैं। ‘सूर्य की सतह हमेशा अशांत रहती है लेकिन उसने निकलने वाला प्रकाश पिछले ५ बिलियन वर्ष से हमेशा एक सा ही रहा है इसलिये पृथ्वी पर जिवन संभव हो पाया है।

चांद पर दाग ?


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चांद पर दाग ? चांद पर दाग ही नही गड्डे भी है, अपोलो १७ द्वारा १९७२ मे ली गयी इस तस्वीर मे कोपरनिकस क्रेटर दिखायी दे रहा है। इस क्रेटर को आप साधारण बायनाकुलर से देख सकते है। यह चांद की धरती की ओर की सतह मे मध्य से उत्तर पूर्व दिशा मे है।
यह क्रेटर ज्यादा पूराना नही है, अन्य क्रेटर की तुलना मे नया है। यह लगभग १ बीलीयन साल पहले किसी उल्का के चंद्रमा से टकराव से बना है।
चण्द्रमा पर जो अंतिम मानव युक्त यान गया था अपोलो १७ उसने यह चित्र खिंचा था, अब चद्रमा पर फिर से जाने की उम्मीदे जागृत हुयी है क्योंकि इसके ध्रुवो पर पानी की बर्फ का पता चला है।

काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा

श्याम विवर की गहराईयो मे जाने से पहले भौतिकी और सापेक्षता वाद के कुछ मूलभूत सिद्धांतो की चर्चा कर ली जाये !
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त्री-आयामी
त्री-आयामी

काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा

सामान्यतः अंतराल को तीन अक्ष में मापा जाता है। सरल शब्दों में लंबाई, चौड़ाई और गहराई, गणितिय शब्दों में x अक्ष, y अक्ष और z अक्ष। यदि इसमें एक अक्ष समय को चौथे अक्ष के रूप में जोड़ दे तब यह काल-अंतराल का गंणितिय माँडल बन जाता है।
त्री-आयामी भौतिकी में काल-अंतराल का अर्थ है काल और अंतराल संयुक्त गणितिय माडल। काल और अंतराल को एक साथ लेकर भौतिकी के अनेकों गूढ़ रहस्यों को समझाया जा सका है जिसमे भौतिक ब्रह्मांड विज्ञान तथा क्वांटम भौतिकी शामिल है।
सामान्य यांत्रिकी में काल-अंतराल की बजाय अंतराल का प्रयोग किया जाता रहा है, क्योंकि काल अंतराल के तीन अक्ष में यांत्रिकी गति से स्वतंत्र है। लेकिन सापेक्षता वाद के सिद्धांत के अनुसार काल को अंतराल के तीन अक्ष से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि , काल किसी पिंड की प्रकाश गति के सापेक्ष गति पर निर्भर करता है।
काल-अंतराल की अवधारणा ने बहुआयामी सिद्धांतो(higher-dimensional theories) की अवधारणा को जन्म दिया है। ब्रह्मांड के समझने के लिये कितने आयामों की आवश्यकता होगी यह एक यक्ष प्रश्न है। स्ट्रींग सिद्धांत जहां 10 से 26 आयामों का अनुमान करता है वही M सिद्धांत 11 आयामों(10 आकाशीय(spatial) और 1 कल्पित(temporal)) का अनुमान लगाता है। लेकिन 4 से ज्यादा आयामों का असर केवल परमाणु के स्तर पर ही होगा।

काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा का इतिहास

काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा आईंस्टाईन के 1905 के विशेष सापेक्षता वाद के सिद्धांत के फलस्वरूप आयी है। 1908 में आईंस्टाईन के एक शिक्षक गणितज्ञ हर्मन मिण्कोवस्की आईंस्टाईन के कार्य को विस्तृत करते हुये काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा को जन्म दिया था। ‘मिंकोवस्की अंतराल’ की धारणा यह काल और अंतराल को एकीकृत संपूर्ण विशेष सापेक्षता वाद के दो मूलभूत आयाम के रूप में देखे जाने का प्रथम प्रयास था।’मिंकोवस्की अंतराल’ की धारणा यह विशेष सापेक्षता वाद को ज्यामितीय दृष्टि से देखे जाने की ओर एक कदम था, सामान्य सापेक्षता वाद में काल अंतराल का ज्यामितीय दृष्टिकोण काफी महत्वपूर्ण है।

मूलभूत सिद्धांत

काल अंतराल वह स्थान है जहां हर भौतिकी घटना होती है : उदाहरण के लिये ग्रह का सूर्य की परिक्रमा एक विशेष प्रकार के काल अंतराल में होती है या किसी घूर्णन करते तारे से प्रकाश का उत्सर्जन किसी अन्य काल-अंतराल में होना समझा जा सकता है। काल-अंतराल के मूलभूत तत्व घटनायें (Events) है। किसी दिये गये काल-अंतराल में कोई घटना(Event), एक विशेष समय पर एक विशेष स्थिति है। इन घटनाओ के उदाहरण किसी तारे का विस्फोट या ड्रम वाद्ययंत्र पर किया गया कोई प्रहार है।
पृथ्वी की कक्षा- काल अंतराल के सापेक्ष
पृथ्वी की कक्षा- काल अंतराल के सापेक्ष
काल-अंतराल यह किसी निरीक्षक के सापेक्ष नहीं होता। लेकिन भौतिकी प्रक्रिया को समझने के लिये निरीक्षक कोई विशेष आयामों का प्रयोग करता है। किसी आयामी व्यवस्था में किसी घटना को चार पूर्ण   अंकों(x,y,z,t) से निर्देशित किया जाता है। प्रकाश किरण यह प्रकाश कण की गति का पथ प्रदर्शित करती है या दूसरे शब्दों में प्रकाश किरण यह काल-अंतराल में होनेवाली घटना है और प्रकाश कण का इतिहास प्रदर्शित करती है। प्रकाश किरण को प्रकाश कण की विश्व रेखा कहा जा सकता है। अंतराल में पृथ्वी की कक्षा दीर्घ वृत्त(Ellpise) के जैसी है लेकिन काल-अंतराल में पृथ्वी की विश्व रेखा हेलि़क्स के जैसी है।
पृथ्वी की कक्षा- काल अंतराल के सापेक्ष सरल शब्दों में यदि हम x,y,z इन तीन आयामों के प्रयोग से किसी भी पिंड की स्थिती प्रदर्शित कर सकते है। एक ही प्रतल में दो आयाम x,y से भी हम किसी पिंड की स्थिती प्रदर्शित हो सकती है। एक प्रतल में x,y के प्रयोग से, पृथ्वी की कक्षा एक दीर्घ वृत्त के जैसे प्रतीत होती है। अब यदि किसी समय विशेष पर पृथ्वी की स्थिती प्रदर्शित करना हो तो हमें समय t आयाम x,y के लंब प्रदर्शित करना होगा। इस तरह से पृथ्वी की कक्षा एक हेलिक्स या किसी स्प्रींग के जैसे प्रतीत होगी। सरलता के लिये हमे z आयाम जो गहरायी प्रदर्शित करता है छोड़ दिया है।
काल और समय के एकीकरण में दूरी को समय की इकाई में प्रदर्शित किया जाता है, दूरी को प्रकाश गति से विभाजित कर समय प्राप्त किया जाता है।

काल-अंतराल अन्तर(Space-time intervals)

काल-अंतराल यह दूरी की एक नयी संकल्पना को जन्म देता है। सामान्य अंतराल में दूरी हमेशा धनात्मक होनी चाहिये लेकिन काल अंतराल में किसी दो घटना(Events) के बीच की दूरी(भौतिकी में अंतर(Interval)) वास्तविक , शून्य या काल्पनिक(imaginary) हो सकती है। ‘काल-अंतराल-अन्तर’ एक नयी दूरी को परिभाषित करता है जिसे हम कार्टेशियन निर्देशांको मे x,y,z,t मे व्यक्त करते है।
s2=r2-c2t2
s=काल-अंतराल-अंतर(Space Time Interval) c=प्रकाश गति
r2=x2+y2+z2
काल-अंतराल में किसी घटना युग्म (pair of event) को तीन अलग अलग प्रकार में विभाजित किया जा सकता है
  • 1.समय के जैसे(Time Like)- दोनो घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लिये जरूरत से ज्यादा समय व्यतित होना; s2 <0)
  • 2.प्रकाश के जैसे(Light Like)-(दोनों घटनाओ के मध्य अंतराल और समय समान है;s2=0)
  • 3.अंतराल के जैसे (दोनों घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लिये जरूरी समय से कम समय का गुजरना; s2>0) घटनाये जिनका काल-अंतराल-अंतर ऋणात्मक है, एक दूसरे के भूतकाल और भविष्य में है।

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केन्द्र की मरम्मत

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केन्द्र की मरम्मत
अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन(International Space Station-ISS)पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली मानव निर्मित सबसे बडी वस्तु होगी। यह केन्द्र इतना बडा है कि इसे एक बार मे प्रक्षेपित नही किया जा सकता। इसे टुकडो टुकडो मे बनाया जा रहा है। इन टुकडो को संयुक्त राज्य अमरिका के अंतरिक्ष शटल और रुस के सोयुज यानो से ले जाकर अंतरिक्ष मे जोडा जाता है। इस केन्द्र के आधार और आकार के लिये ट्रस(Truss) की आवश्यकता होती है जो लगभग १५ मिटर लंबे और १०,००० किलोग्राम वजन के होते है। इस तस्वीर मे अंतरिक्ष यात्री राबर्ट एल करबीम (अमरीका)[Robert L. Curbeam (USA)] और क्रिस्टर फुगलसंग (स्वीडन)[Fuglesang (Sweden)] एक नये ट्रस को अंतरिक्ष केन्द्र मे लगा रहे है। साथ मे उन्होने बिजली केन्द्र[power grid] की मरम्मत भी की।

सी फर्ट आकाशगंगा NGC 7742


नही ये आपके नाश्ते के लिये तैयार किया गया अंडे का आमलेट नही है !
यह एक विशाल आकाशगंगा है जिसका नाम सीफर्ट( Seyfert Galaxy NGC 7742) है। निले रंग के तारो के जन्मस्थली(Star Forming Regions) और धुंधली घुमावदार बांहो से घीरा हुआ पिले रंग का आकाशगंगा केन्द्र लगभग 3000 प्रकाश वर्ष चौडा है। यह पृथ्वी से लगभग 720 लाख प्रकाशवर्ष दूर भद्रक  तारामंडल(constellation Pegasus) मे है। यह एक घुमावदार आकाशगंगा है जिसका केन्द्र काफी चमकदार है, यह चमक कुछ ही दिनो या महिनो मे बदल सकती है। इस तरह की आकाशगंगाओ के केन्द्र मे काफी बडे श्याम विवर (massive black holes) होने की संभावना रहती है। यह चित्र हब्बल दूरबीन से लिया गया है।

Thursday 10 March 2016

बिल्ली की आंखे


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तिन हजार प्रकाश वर्ष दूर ,एक मरते हुये तारे मे विस्फोट हुआ और गैस के चमकीले बादल तारे से बाहर फेंके गये। हब्बल दूरबीन से लिये गये बिल्ली की आंख के आकार की इस निहारीका(Cat’s Eye Nebula) के चित्र से इस जटिल ग्रहीय निहारीका(planetary nebulae) के बारे मे ज्यादा सूचना मिली है। इस निहारीका का विवरण इतना जटिल है कि विज्ञानीयो को इसके केन्द्र मे स्थित चमकिले पिंड पर युग्म तारे(Binary Star)होने का शक हो रहा है।
ग्रहीय निहारीका छोटी दूरबीन से गोल और एक  एक बहुत बडे ग्रह के जैसे दिखायी देती है लेकिन ग्रहीय निहारीका के लिये ग्रह शब्द का प्रयोग गलत है। क्योंकि एक ग्रहीय निहारीका तारो से बनी होती है गैस और धूल जो ढके हुये होते है। यह गैस और धुल इन्ही तारो के द्वारा उत्सर्जित होते है।

‘चील निहारिका’ मे सितारो का जन्म


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सितारो का जन्म कहां होता है ? सितारो की जन्मस्थली को EGGs(evaporating gaseous globules) कहा जाता है। ये EGGs कुछ और नही सुदूर अंतरिक्ष मे हायड्रोजन गैस के संघनित क्षेत्र होते है ,जो गुरुत्वाकर्षण के कारण घनीभूत होकर सितारो मे तब्दिल हो जाते है। यह चित्र चील के आकार की एक निहारिका (Eagle Nebula (M16))का है। गर्म और चमकीले तारो से आनेवाला प्रकाश इस क्षेत्र(Eggs) को और गर्म करता है जिससे नये तारो का जन्म होता है। यह चित्र हब्बल दूरबीन से लीया गया है।
निहारिका (Nebula)-> अंतरिक्ष मे धूल, गैस और प्लाज्मा का बादल।

शनी की छाया मे


शनी की छाया मे अनेको चमत्कारी घट्नाये होती है। कासीनी उपग्रह ने यह चित्र लिया है। सुर्य इस समय शनी के पिछे है!
कासीनी ने पहली बार शनी की रात का चित्र लिया। चित्र मे जो प्रकाश दिखायी दे रहा है वह उसके शाही वलयो द्वारा परावर्तित प्रकाश है। जब शनी के दिन वाली सतह से चित्र लेते है तब उसके वलय धुंधले दिखायी देते है लेकिन रात वाली सतह से वह चमकिले दिखायी देते है, इतने ज्यादा कि इससे नये वलय भी खोज निकाले गये हैं। ये नये वलय इस चित्र मे दिखायी नही दे रहे है।
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चित्र मे एक  धुंधला निला बिन्दू  (सबसे बाहरी चमकिले वलय के उपर) दिखायी दे रहा है जो कुछ और नही हमारे पृथ्वी है।

Wednesday 9 March 2016

शनी की नजर से !


इस चित्र  मे एक निले रंग का बिंदू क्या है ?
पृथ्वी।
कासीनी उपग्रह ने शनी ग्रह के पास से गुजरते हुये यह चित्र लिया था !
उपर बांये ये कोने मे इस बिन्दू को बडा कर के दिखाया गया है। ध्यान से देखने पर पृथ्वी का चन्द्रमा भी दिखायी दे रहा है। पृथ्वी की सतह का 70% भाग पानी से घीरा होने से पृथ्वी का रंग निला दिखायी देता है !

एक सुंदर ग्रह : शनी


शनी बाकी ग्रहो से हटकर लेकिन एक सुंदर ग्रह है। यह हमारे सौर मण्डल मे गुरु के बाद दूसरा सबसे बडा ग्रह है। यह रात मे आसानी से देखा जा सकता है। लेकिन इसके सुंदर वलय सिर्फ दूरबीन से देखे जा सकते है। यह ग्रह मुख्यतः हायड्रोजन और हिलीयम से बना है। शनी के वलय बर्फ के टुकडो से बने है जिनका आकार एक छोटे सिक्के से लेकर कार के आकार तक है। यह चित्र हब्बल दूरबीन द्वारा लीया गया है।

हमारे सबसे नजदिक का तारा: प्राक्सीमा सेंटारी


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हमारे सबसे नज़दीक का तारा कौन सा है ? सूर्य ! लेकिन सूर्य के सबसे नज़दीक का तारा ?
यह है प्राक्सीमा सेंटारी, जो की अल्फा सेंटारी तारा समुह के तीन तारो मे से एक है और हमारे सबसे नज़दीक है। यह तस्वीर के केन्द्र मे दिखायी दे रहा छोटा लाल तारा है, जो काफी धुँधला है। इसे सिर्फ दूरबीन से देखा जा सकता है। इसकी खोज 1995 मे हुयी थी। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी के हर तरह के तारे इस तस्वीर मे दिखायी दे रहे है। अल्फा सेंटारी तारा समूह का सबसे चमकीला तारा अल्फा सेंटारी हमारे सूर्य के जैसा ही है, और आकाश मे दिखायी देने वाले तारो मे तीसरा सबसे ज्यादा चमकीला तारा है।

पृथ्वी


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अपोलो १७ से ली गयी तस्वीर  
पृथ्वी पर आपका स्वागत है, जो सुर्य नामक तारे का तिसरा ग्रह है। पृथ्वी का आकार मोसंबी के जैसा है और मुख्यत: पत्थर(सीलीका) से बना हुआ है। पृथ्वी की सतह ७०% से ज्यादा जल से आच्छादित है। इस ग्रह का वातावरण मुख्यतः आक्सीजन और नायट्रोजन से बना हुआ है। पृथ्वी का एक चन्द्रमा है जिसका व्यास पृथ्वी के व्यास का एक चौथाई है। पृथ्वी की सतह से उसका आकार सुर्य के आकार के समान ही दिखाई देता है। जल की प्रचुरता के कारण पृथ्वी मे जिवन पाया जाता है, जिसमे मनुष्य और डालफिन जैसे बुद्धीमान जीव भी शामील है। पृथ्वी पर आपकी यात्रा सुखद रहे !

Tuesday 8 March 2016

डाप्लर प्रभाव तथा लाल विचलन

डाप्लर प्रभाव
डापलर प्रभाव यह किसी तरंग(Wave) की तरंगदैधर्य(wavelength) और आवृत्ती(frequency) मे आया वह परिवर्तन है जिसे उस तरंग के श्रोत के पास आते या दूर जाते हुये निरीक्षक द्वारा महसूस किया जाता है। यह प्रभाव आप किसी आप अपने निकट पहुंचते वाहन की ध्वनी और दूर जाते वाहन की ध्वनी मे आ रहे परिवर्तनो से महसूस कर सकते है।
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इसे वैज्ञानिक रूप से देंखे तो होता यह है कि आप से दूर जाते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य(wavelength)बढ जाती है, और पास आते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य कम हो जाती है। दूसरे शब्दो मे जब तरंगदैधर्य(wavelength) बढ जाती है तब आवृत्ती कम हो जाती है और जब तरंगदैधर्य(wavelength) कम हो जाती है आवृत्ती बढ जाती है।
एक आसान उदाहरण लेते है, मान लिजीये एक खिलाडी दूसरे खिलाडी की ओर हर सेकंड एक गेंद फेंक रहा है। दूसरा खिलाडी यदि अपनी जगह पर ही खडा हो तो वह हर सेकंड एक गेंद प्राप्त करेगा। यदि गेंद झेलने वाला खिलाडी फेंकने वाले खिलाडी से दूर जाये तो उसे प्राप्त होने वाली गेंदो के अंतराल मे बढोत्तरी होगी यानी उसे हर सेकंड प्राप्त होने वाली गेंदो मे कमी आयेगी। विज्ञान की भाषा मे गेंद प्राप्त करने की आवृत्ती (frequency) मे कमी आयेगी। यदि गेंद झेलने वाला खिलाडी फेंकने वाले खिलाडी के पास आये तो गेंद प्राप्त करने की आवृत्ती मे बढोत्तरी होगी। ध्यान दिजिये श्रोत की गेंद फेंकने की आवृत्ती मे कोई बदलाव नही आ रहा है
यही प्रभाव कीसी भी तरंग (ध्वनी/प्रकाश/क्ष किरण/गामा किरण) पर होता है। तरंग श्रोत से दूर जाने पर उसकी आवृत्ती मे कमी आती है अर्थात तरंगदैधर्य मे बढोत्तरी होते है। तरंग श्रोत के पास आने पर उसकी आवृत्ती मे बढोत्तरी होती है अर्थात तरंगदैधर्य मे कमी आती है।
लाल विचलन (Red Shift)
लाल विचलन
लाल विचलन यह वह प्रक्रिया जिसमे किसी पिंड से उत्सर्जीत प्रकाश वर्णक्रम मे लाल रंग की ओर विचलीत होता है। वैज्ञानिक तौर से यह उत्सर्जीत प्रकाश किरण की तुलना मे निरिक्षित प्रकाश किरण के तरंग दैधर्य मे हुयी बढोत्तरी या उसकी आवृती मे कमी है। दूसरे शब्दो मे प्रकाश श्रोत से प्रकाश के पहुंचने तक प्रकाश किरणो के तरंग दैधर्य मे हुयी बढोत्तरी या उसकी आवृती मे कमी होती है।
प्रकाश किरणो मे लाल रंग की प्रकाश किरणो का तरंग दैधर्य सबसे ज्यादा होता है, इसलिये किसी भी रंग की किरण का वर्णक्रम मे लाल रंग की ओर विचलन ‘लाल विचलन’ कहलाता है। यह प्रक्रिया अप्रकाशिय किरणो (गामा किरणे, क्ष किरणे, पराबैगनी किरणे) के लिये भी लागु होती है और इसी नाम से जानी जाती है। किरणे जिनका तरंग दैधर्य लाल रंग की किरणो से भी ज्यादा होता है(अवरक्त किरणे(infra red), सुक्षम तरंग तरंगे(Microwave), रेडीयो तरंगे) यह विचलन लाल रंग से दूर होता है।
सामान्यतः लाल विचलन उस समय होता है जब प्रकाश श्रोत प्रकाश निरिक्षक से दूर जाता है, बिलकुल ध्वनी किरणो के डाप्लर सिद्धांत की तरह ! यह सिद्धांत खगोल शास्त्र मे आकाशिय पिंडो की गति और दूरी को मापने के लिये उपयोग मे लाया जाता है।

महाविस्फोट का सिद्धांत (The Big Bang Theory)

किसी बादलों और चांद रहित रात में यदि आसमान को देखा जाये तब हम पायेंगे कि आसमान में सबसे ज्यादा चमकीले पिंड शुक्र, मंगल, गुरु, और शनि जैसे ग्रह हैं। इसके अलावा आसमान में असंख्य तारे भी दिखाई देते है जो कि हमारे सूर्य जैसे ही है लेकिन हम से काफी दूर हैं। हमारे सबसे नजदीक का सितारा प्राक्सीमा सेंटारी हम से चार प्रकाश वर्ष (१०) दूर है। हमारी आँखों से दिखाई देने वाले अधिकतर तारे कुछ सौ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। तुलना के लिये बता दें कि सूर्य हम से केवल आठ प्रकाश मिनट और चांद १४ प्रकाश सेकंड की दूरी पर है। हमे दिखाई देने वाले अधिकतर तारे एक लंबे पट्टे के रूप में दिखाई देते है, जिसे हम आकाशगंगा कहते है। जो कि वास्तविकता में चित्र में दिखाये अनुसार पेचदार (Spiral) है। इस से पता चलता है कि ब्रह्मांड कितना विराट है ! यह ब्रह्मांड अस्तित्व में कैसे आया ?
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महा विस्फोट के बाद ब्रह्मांड का विस्तार
महा विस्फोट के बाद ब्रह्मांड का विस्तार
महा विस्फोट का सिद्धांत ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में सबसे ज्यादा मान्य है। यह सिद्धांत व्याख्या करता है कि कैसे आज से लगभग १३.७ खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिन्दु से हुयी थी।
हब्बल के द्वारा किया गया निरीक्षण और ब्रह्मांडीय सिद्धांत(२)(Cosmological Principle)महा विस्फोट के सिद्धांत का मूल है।
१९१९ में ह्ब्बल ने लाल विचलन(१) (Red Shift) के सिद्धांत के आधार पर पाया था कि ब्रह्मांड फैल रहा है, ब्रह्मांड की आकाशगंगाये तेजी से एक दूसरे से दूर जा रही है। इस सिद्धांत के अनुसार भूतकाल में आकाशगंगाये एक दूसरे के और पास रही होंगी और, ज्यादा भूतकाल मे जाने पर यह एक दूसरे के अत्यधिक पास रही होंगी। इन निरीक्षण से यह निष्कर्ष निकलता है कि ब्रम्हांड ने एक ऐसी स्थिती से जन्म लिया है जिसमे ब्रह्मांड का सारा पदार्थ और ऊर्जा अत्यंत गर्म तापमान और घनत्व पर एक ही स्थान पर था। इस स्थिती को गुरुत्विय  ‘सिन्गुलरीटी ‘ (Gravitational Singularity) कहते है। महा-विस्फोट यह शब्द उस समय की ओर संकेत करता है जब निरीक्षित ब्रह्मांड का विस्तार प्रारंभ हुआ था। यह समय गणना करने पर आज से १३.७ खरब वर्ष पूर्व(१.३७ x १०१०) पाया गया है। इस सिद्धांत की सहायता से जार्ज गैमो ने १९४८ में ब्रह्मांडीय  सूक्ष्म तरंग विकिरण(cosmic microwave background radiation-CMB)(३) की भविष्यवाणी की थी ,जिसे १९६० में खोज लीया गया था। इस खोज ने महा-विस्फोट के सिद्धांत को एक ठोस आधार प्रदान किया।
महा-विस्फोट का सिद्धांत अनुमान और निरीक्षण के आधार पर रचा गया है। खगोल शास्त्रियों का निरीक्षण था कि अधिकतर निहारिकायें(nebulae)(४) पृथ्वी से दूर जा रही है। उन्हें इसके खगोल शास्त्र पर प्रभाव और इसके कारण के बारे में ज्ञात नहीं था। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था की ये निहारिकायें हमारी अपनी आकाशगंगा के बाहर है। यह क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है एक रहस्य था।
१९२७ मे जार्जस लेमिट्र ने आईन्साटाइन के सापेक्षता के सिद्धांत(Theory of General Relativity) से आगे जाते हुये फ़्रीडमैन-लेमिट्र-राबर्टसन-वाकर समीकरण (Friedmann-Lemaître-Robertson-Walker equations) बनाये। लेमिट्र के अनुसार ब्रह्मांड  की उत्पत्ति एक प्राथमिक परमाणु से हुयी है, इसी प्रतिपादन को आज हम महा-विस्फोट का सिद्धांत कहते हैं। लेकिन उस समय इस विचार को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया।
इसके पहले १९२५ मे हब्बल ने पाया था कि ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा अकेली नहीं है, ऐसी अनेकों आकाशगंगाये है। जिनके बीच में विशालकाय अंतराल है। इसे प्रमाणित करने के लिये उसे इन आकाशगंगाओं के पृथ्वी से दूरी गणना करनी थी। लेकिन ये आकाशगंगाये हमें दिखायी देने वाले तारों की तुलना में काफी दूर थी। इस दूरी की गणना के लिये हब्बल ने अप्रत्यक्ष तरीका प्रयोग में लाया। किसी भी तारे की चमक(brightness) दो कारकों पर निर्भर करती है, वह कितना दीप्ति(luminosity) का प्रकाश उत्सर्जित करता है और कितनी दूरी पर स्थित है। हम पास के तारों की चमक और दूरी की ज्ञात हो तब उनकी दीप्ति की गणना की जा सकती है| उसी तरह तारे की दीप्ति ज्ञात होने पर उसकी चमक का निरीक्षण से प्राप्त मान का प्रयोग कर दूरी ज्ञात की जा सकती है। इस तरह से हब्ब्ल ने नौ विभिन्न आकाशगंगाओं की दूरी का गणना की ।(११)
१९२९ मे हब्बल जब इन्ही आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर दूरी की गणना कर रहा था। वह हर तारे से उत्सर्जित प्रकाश का वर्णक्रम और दूरी का एक सूचीपत्र बना रहा था। उस समय तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड मे आकाशगंगाये बिना किसी विशिष्ट क्रम के ऐसे ही अनियमित रूप से विचरण कर रही है। उसका अनुमान था कि इस सूची पत्र में उसे समान मात्रा में लाल विचलन(१) और बैगनी विचलन मिलेगा। लेकिन नतीजे अप्रत्याशित थे। उसे लगभग सभी आकाशगंगाओ से लाल विचलन ही मिला। इसका अर्थ यह था कि सभी आकाशगंगाये हम से दूर जा रही है। सबसे ज्यादा आश्चर्य जनक खोज यह थी कि यह लाल विचलन अनियमित नहीं था ,यह विचलन उस आकाशगंगा की गति के समानुपाती था। इसका अर्थ यह था कि ब्रह्मांड स्थिर नहीं है, आकाशगंगाओं के बिच की दूरी बढ़ते जा रही है। इस प्रयोग ने लेमिट्र के सिद्धांत को निरीक्षण से प्रायोगिक आधार दिया था। यह निरीक्षण आज हब्बल के नियम के रूप मे जाना जाता है।
हब्बल का नियम और ब्रह्मांडीय सिद्धांत(२)ने यह बताया कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। यह सिद्धांत आईन्स्टाईन के अनंत और स्थैतिक ब्रह्मांड के विपरीत था।
इस सिद्धांत ने दो विरोधाभाषी संभावनाओ को हवा दी थी। पहली संभावना थी, लेमिट्र का महा-विस्फोट सिद्धांत जिसे जार्ज गैमो ने समर्थन और विस्तार दिया था। दूसरी संभावना थी, फ़्रेड होयेल का स्थायी स्थिती माडल (Fred Hoyle’s steady state model), जिसमे दूर होती आकाशगंगाओं के बिच में हमेशा नये पदार्थों की उत्पत्ति  का प्रतिपादन था। दूसरे शब्दों में आकाशगंगाये एक दूसरे से दूर जाने पर जो खाली स्थान बनता है वहां पर नये पदार्थ का निर्माण होता है। इस संभावना के अनुसार मोटे तौर पर ब्रह्मांड हर समय एक जैसा ही रहा है और रहेगा। होयेल ही वह व्यक्ति थे जिन्होने लेमिट्र का महाविस्फोट सिद्धांत का मजाक उड़ाते हुये “बिग बैंग आईडीया” का नाम दिया था।
काफी समय तक इन दोनो माड्लो के बिच मे वैज्ञानिक विभाजित रहे। लेकिन धीरे धीरे वैज्ञानिक प्रयोगो और निरिक्षणो से महाविस्फोट के सिद्धांत को समर्थन बढता गया। १९६५ के बाद ब्रम्हांडिय सुक्षम तरंग विकिरण (Cosmic Microwave Radiation) की खोज के बाद इस सिद्धांत को सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत का दर्जा मिल गया। आज की स्थिती मे खगोल विज्ञान का हर नियम इसी सिद्धांत पर आधारित है और इसी सिद्धांत का विस्तार है।
महा-विस्फोट के बाद शुरुवाती ब्रह्मांड समांगी और सावर्तिक रूप से अत्यधिक घनत्व का और ऊर्जा से भरा हुआ था. उस समय दबाव और तापमान भी अत्यधिक था। यह धीर धीरे फैलता गया और ठंडा होता गया, यह प्रक्रिया कुछ वैसी थी जैसे भाप का धीरे धीरे ठंडा हो कर बर्फ मे बदलना, अंतर इतना ही है कि यह प्रक्रिया मूलभूत कणों(इलेक्ट्रान, प्रोटान, फोटान इत्यादि) से संबंधित है।
प्लैंक काल(५) के १० -३५ सेकंड के बाद एक संक्रमण के द्वारा ब्रह्मांड की काफी तिव्र गति से वृद्धी(exponential growth) हुयी। इस काल को अंतरिक्षीय स्फीति(cosmic inflation) काल कहा जाता है। इस स्फीति के समाप्त होने के पश्चात, ब्रह्मांड का पदार्थ एक क्वार्क-ग्लूवान प्लाज्मा की अवस्था में था, जिसमे सारे कण गति करते रहते हैं। जैसे जैसे ब्रह्मांड का आकार बढ़ने लगा, तापमान कम होने लगा। एक निश्चित तापमान पर जिसे हम बायरोजिनेसीस संक्रमण कहते है, ग्लुकान और क्वार्क ने मिलकर बायरान (प्रोटान और न्युट्रान) बनाये। इस संक्रमण के दौरान किसी अज्ञात कारण से कण और प्रति कण(पदार्थ और प्रति पदार्थ) की संख्या मे अंतर आ गया। तापमान के और कम होने पर भौतिकी के नियम और मूलभूत कण आज के रूप में अस्तित्व में आये। बाद में प्रोटान और न्युट्रान ने मिलकर ड्युटेरीयम और हिलीयम के केंद्रक बनाये, इस प्रक्रिया को महाविस्फोट आणविक संश्लेषण(Big Bang nucleosynthesis.) कहते है। जैसे जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, पदार्थ की गति कम होती गयी, और पदार्थ की उर्जा गुरुत्वाकर्षण में तबदील होकर विकिरण की ऊर्जा से अधिक हो गयी। इसके ३००,००० वर्ष पश्चात इलेक्ट्रान और केण्द्रक ने मिलकर परमाणु (अधिकतर हायड्रोजन) बनाये; इस प्रक्रिया में विकिरण पदार्थ से अलग हो गया । यह विकिरण ब्रह्मांड में अभी तक ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण (cosmic microwave radiation)के रूप में बिखरा पड़ा है।
कालांतर में थोड़े अधिक घनत्व वाले क्षेत्र गुरुत्वाकर्षण के द्वारा और ज्यादा घनत्व वाले क्षेत्र मे बदल गये। महा-विस्फोट से पदार्थ एक दूसरे से दूर जा रहा था वही गुरुत्वाकर्षण इन्हें पास खिंच रहा था। जहां पर पदार्थ का घनत्व ज्यादा था वहां पर गुरुत्वाकर्षण बल ब्रह्मांड के प्रसार के लिये कारणीभूत बल से ज्यादा हो गया। गुरुत्वाकर्षण बल की अधिकता से पदार्थ एक जगह इकठ्ठा होकर विभिन्न खगोलीय पिंडों का निर्माण करने लगा। इस तरह गैसो के बादल, तारों, आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय पिंडों का जन्म हुआ ,जिन्हें आज हम देख सकते है।
आकाशीय पिंडों के जन्म की इस प्रक्रिया की और विस्तृत जानकारी पदार्थ की मात्रा और प्रकार पर निर्भर करती है। पदार्थ के तीन संभव प्रकार है शीतल श्याम पदार्थ (cold dark matter)(६), तप्त श्याम पदार्थ(hot dark matter) तथा बायरोनिक पदार्थ। खगोलीय गणना के अनुसार शीतल श्याम पदार्थ की मात्रा सबसे ज्यादा(लगभग ८०%) है। मानव द्वारा निरीक्षित लगभग सभी आकाशीय पिंड बायरोनिक पदार्थ(८)से बने है।
श्याम पदार्थ की तरह आज का ब्रह्मांड एक रहस्यमय प्रकार की ऊर्जा ,श्याम ऊर्जा (dark energy)(६) के वर्चस्व में है। लगभग ब्रह्मांड की कुल ऊर्जा का ७०% भाग इसी ऊर्जा का है। यही ऊर्जा ब्रह्मांड के विस्तार की गति को एक सरल रैखिक गति-अंतर समीकरण से विचलित कर रही है, यह गति अपेक्षित गति से कहीं ज्यादा है। श्याम ऊर्जा अपने सरल रूप में आईन्स्टाईन के समीकरणों में एक ब्रह्मांडीय स्थिरांक (cosmological constant) है । लेकिन इसके बारे में हम जितना जानते है उससे कहीं ज्यादा नहीं जानते है। दूसरे शब्दों में भौतिकी में मानव को जितने बल(९) ज्ञात है वे सारे बल और भौतिकी के नियम ब्रह्मांड के विस्तार की गति की व्याख्या नहीं कर पा रहे है। इसे व्याख्या करने क एक काल्पनिक बल का सहारा लिया गया है जिसे श्याम ऊर्जा कहा जाता है।
यह सभी निरीक्षण लैम्डा सी डी एम माडेल के अंतर्गत आते है, जो महा विस्फोट के सिद्धांत की गणीतिय रूप से छह पैमानों पर व्याख्या करता है। रहस्य उस समय गहरा जाता है जब हम शुरू वात की अवस्था की ओर देखते है, इस समय पदार्थ के कण अत्यधिक ऊर्जा के साथ थे, इस अवस्था को किसी भी प्रयोगशाला में प्राप्त नहीं किया जा सकता है। ब्रह्मांड के पहले १० -३३ सेकंड की व्याख्या करने के लिये हमारे पास कोई भी गणितिय या भौतिकिय माडेल नहीं है, जिस अवस्था का अनुमान ब्रहृत एकीकृत सिद्धांत(Grand Unification Theory)(७)करता है। पहली नजर से आईन्स्टाईन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत एकगुरुत्विय बिन्दु (gravitational singularity) का अनुमान करता है जिसका घनत्व अपरिमित (infinite) है।. इस रहस्य को सुलझाने के लिये क्वांटम गुरुत्व के सिद्धांत की आवश्यकता है। इस काल (ब्रह्मांड के पहले १० -३३ सेकंड) को समझ पाना विश्व के सबसे महान अनसुलझे भौतिकिय रहस्यों में से एक है।
मुझे लग रहा है इस लेख ने महा विस्फोट के सिद्धांत की गुत्थी को कुछ और उलझा दिया है, इस गुत्थी को हम धीरे धीरे आगे के लेखों में विस्तार से चर्चा कर सुलझाने का प्रयास करेंगे। अगला लेख श्याम पदार्थ (Dark Matter) और श्याम उर्जा(dark energy) पर होगा।
सागर जी क्या ख्याल है, आपके प्रश्नों की सूची कम हुयी या और बढ़ गयी?
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(२)ब्रह्मांडीय सिद्धांत (Cosmological Principle) : यह एक सिद्धांत नहीं एक मान्यता है। इसके अनुसार ब्रह्मांड समांगी(homogeneous) और सावर्तिक(isotrpic) है| एक बड़े पैमाने पर किसी भी जगह से निरीक्षण करने पर ब्रह्मांड हर दिशा में एक ही जैसा प्रतीत होता है।
(३)ब्रह्मांडीय  सूक्ष्म तरंग विकिरण(cosmic microwave background radiation-CMB): यह ब्रह्मांड के उत्पत्ति के समय से लेकर आज तक सम्पूर्ण ब्रह्मांड मे फैला हुआ है। इस विकिरण को आज भी महसूस किया जा सकता है।
(४)निहारिका (Nebula) : ब्रह्मांड में स्थित धूल और गैस के बादल।
(५) प्लैंक काल: मैक्स प्लैंक के नाम पर , ब्रह्मांड के इतिहास मे ० से लेकर १०-४३ (एक प्लैंक ईकाइ समय), जब सभी चारों मूलभूत बल(गुरुत्व बल, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर आणविक आकर्षण बल और मजबूत आणविक आकर्षण बल) एक संयुक्त थे और मूलभूत कणों का अस्तित्व नहीं था।
(६) श्याम पदार्थ (Dark Matter) और श्याम ऊर्जा(dark energy) इस पर पूरा एक लेख लिखना है।
(७)ब्रहृत एकीकृत सिद्धांत(Grand Unification Theory) : यह सिद्धांत अभी अपूर्ण है, इस सिद्धांत से अपेक्षा है कि यह सभी रहस्य को सुलझा कर ब्रह्मांड उत्पत्ति और उसके नियमों की एक सर्वमान्य गणितिय और भौतिकिय व्याख्या देगा।
(८) बायरान : प्रोटान और न्युट्रान को बायरान भी कहा जाता है। विस्तृत जानकारी पदार्थ के मूलभूत कण लेख में।
(९) भौतिकी के मूलभूत बल :गुरुत्व बल, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर आणविक आकर्षण बल और मजबूत आणविक आकर्षण बल
(१०) : एक प्रकाश वर्ष : प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गयी दूरी। लगभग ९,५००,०००,०००,००० किलो मीटर। अंतरिक्ष में दूरी मापने के लिये इस इकाई का प्रयोग किया जाता है।
(११)आज हम जानते है कि अत्याधुनिक दूरबीन से खरबों आकाशगंगाये देखी जा सकती है, जिसमे से हमारी आकाशगंगा एक है और एक आकाशगंगा में भी खरबों तारे होते है। हमारी आकाशगंगा एक पेचदार आकाशगंगा है जिसकी चौड़ाई लगभग हजार प्रकाश वर्ष है और यह धीमे धीमे घूम रही है। इसकी पेचदार बाँहों के तारे १,०००,००० वर्ष में केन्द्र की एक परिक्रमा करते है। हमारा सूर्य एक साधारण औसत आकार का पिला तारा है, जो कि एक पेचदार भुजा के अंदर के किनारे पर स्थित है।

Saturday 5 March 2016

मेसान

मेसान एक क्वार्क(q) और एक प्रतिक्वार्क(q bar) से बना होता है।
मेसान का एक उदाहरण पाइआन(pion π+) है,जोकि एक अप क्वार्क और एक डाउन प्रतिक्वार्क से बना होता है। मेसान का प्रतिकण मे क्वार्क और प्रतिक्वार्क की स्थिती परिवर्तित हो जाती है इसलिए प्रति-पाइआन(π)  एक डाउन क्वार्कऔर एक अप प्रतिक्वार्क बना होता है।
मेसान एक कण और एक प्रतिकण से बने होते है और अस्थायी होते है। केआन(K) मेसान की आयु सभी मेसान मे सबसे ज्यादा होती है जो कि विचित्र है। इसलिए इसके एक घटक क्वार्क को विचित्र (स्ट्रेन्ज) नाम दिया गया है।
मेसान कण सारणी
मेसान कण सारणी (पोष्टर आकार के लिए क्लीक करें)

हेड्रान, बारयान और मेसान

सामाजिक हाथीयों की तरह क्वार्क हमेशा समूह मे रहते है, वे कभी भी अकेले नही पाये जाते है। क्वार्क से बने यौगिक कण हेड्रान कहलाते है।
हेड्रान
एक क्वार्क का विद्युत आवेश भिन्नात्मक होता है लेकिन वे इस तरह मिलकर किसी कण का निर्माण करते है कि कुल विद्युत आवेश हमेशा पूर्णांक होता है। हेड्रान का एक और गुणधर्म यह है कि इन रंग हमेशा रंगहीन होता है, जबकि क्वार्को का अपना रंग होता है। इसे हम आगे देखेंगे।
हेड्रान के दो प्रकार होते है :बारयान और मेसान
बारयान
बारयानबारयान यह तीन क्वार्क से बने होते है। प्रोटान और न्युट्रान भी बारयान है। प्रोटान(uud) दो अप और एक डाउन क्वार्क से बना होता है। वहीं न्यूट्रॉन(ddu) दो डाउन और एक अप क्वार्क से बना होता है।
बारयान कण सारणी
बारयान कण सारणी (पोष्टर आकार के लिये क्लीक करें)

क्वार्क क्या है?

क्वार्क क्या है?

क्वार्क परिवार
क्वार्क परिवार
क्वार्क पदार्थ कणो का एक मूलभूत प्रकार है, इसे और तोड़ा नही जा सकता है। अधिकतर पदार्थ जो हम अपने आसपास देखते है वह प्रोटान और न्युट्रान से निर्मित है। और ये प्रोटान तथा न्युट्रान क्वार्क से बने होते है। हमारे आस पास का समस्त पदार्थ इन्ही क्वार्को से निर्मित है।
कुल छः क्वार्क होते है लेकिन भौतिकवैज्ञानिक उन्हे तीन युग्मो मे रखते है : अप/डाउन, चार्म/स्ट्रेन्ज तथा टाप/बाटम। (इन सभी क्वार्को के अपने प्रति-क्वार्क भी होते है।) इन क्वार्को के नाम विचित्र है इसलिये इन्हे याद रखना आसान है।
क्वार्क एक असामान्य गुण रखते है, इनका विद्युत आवेश भिन्न मे होता है, जोकि प्रोटान(+1) और इलेक्ट्रान(-1) के पूर्णांक आवेश से अलग है। क्वार्क का एक और भिन्न गुणधर्म होता है, रंग आवेश(colour charge)। इसे हम आगे देखेंगे।
सबसे दुर्लभ क्वार्क टाप है, जो 1995 मे खोजा गया लेकिन इसकी संकल्पना इसके 20 वर्षो पहले ही हो चुकी थी।

प्रतिपदार्थ क्या है?

प्रतिपदार्थ क्या है?

बबल चैम्बर
बबल चैम्बर
रूकीये रूकीये, थोड़ा धीमे! “प्रतिपदार्थ ?”,”ऊर्जा ?” यह सब क्या है, स्टार ट्रेक ?
प्रतिपदार्थ की संकल्पना विचीत्र है। यह उस समय और विचीत्र हो जाती है सारा का सारा ब्रह्मान्ड पदार्थ से निर्मित लगता है। सामान्य बुद्धि के अनुसार पदार्थ की मात्रा और प्रति-पदार्थ की मात्रा समान होना चाहीये लेकिन ऐसा नही है। हम जितना भी ब्रह्मांड दे सकते है, सारा का सारा ब्रह्मांड पदार्थ से निर्मित है। प्रति-पदार्थ हमारी ब्रह्माण्ड से संबधित हर जानकारी के विपरीत लगता है।
लेकिन आप प्रतिपदार्थ के प्रमाण शुरुवाती बबल चैम्बर( bubble chamber ) के चित्र मे देख सकते है। इस कक्ष मे उपस्थित चुंबकीय क्षेत्र ऋण आवेश के कणो को बांये मोड़ता है तथा धन आवेश के कणो को दायें। इस चित्र मे कई इलेक्ट्रान और पाजीट्रान युग्म अज्ञात से उत्पन्न होते दिखायी देते है, लेकिन वास्तविकता मे वे फोटान से निर्मित है और फोटान अपनी कोई निशानी नही छोड़ता है। पाजीट्रान वस्तुतः प्रति-इलेक्ट्रान है, वह इलेक्ट्रान के जैसे ही है लेकिन धन आवेश युक्त होने के कारण दायें मुड़ता है। चित्र मे एक इलेक्ट्रान-पाजीट्रान युग्म को दिखाया गया है।
यदि प्रतिपदार्थ और पदार्थ एक जैसे ही है लेकिन विपरीत आवेश के है, तब ब्रह्माण्ड मे प्रतिपदार्थ की तुलना मे पदार्थ ज्यादा क्यों है?
ह्म्म … इसका उत्तर हम अभी अच्छी तरह से नही जानते है। इस प्रश्न से कई भौतिक वैज्ञानिकों की नींद उड़ी हुयी है।
(सामान्यतः किसी प्रतीकण का चिह्न उससे संबधित कण के उपर एक रेखा(बार) बनाकर होता है।) उदाहरण के लिए “अप क्वार्क u” से संबधित “अप प्रति क्वार्क” को ü से दर्शाया जाता है, इसे यु-बार पढ़ते है। क्वार्क का प्रति कण प्रति-क्वार्क है, प्रोटान का प्रतिकण प्रतिप्रोटान और ऐसे ही सभी कणो के अपने अपने प्रतिकण है। प्रतिइलेक्ट्रान को पाजीट्रान कहते है और इसे e+ से दर्शाते है।)

पदार्थ और प्रतिपदार्थ

पदार्थ और प्रतिपदार्थ

अभी तक हमने जितने भी पदार्थ कण खोजे है, उन सभी पदार्थ कणो का एक प्रतिपदार्थ कण या प्रति कण मौजूद है
प्रति कण अपने संबधित कण के जैसे ही दिखते और व्यवहार करते है लेकिन उनका आवेश विपरीत होता है। उदाहरण के लिए प्रोटान का धनात्मक आवेश होता है लेकिन प्रतिप्रोटान का आवेश ऋणात्मक होता है।  गुरुत्वाकर्षण आवेश से प्रभावित नही होता है लेकिन द्रव्यमान से प्रभावित होता है इसलिये पदार्थ और प्रतिपदार्थ दोनो पर गुरुत्वाकर्षण का समान व्यवहार होता है।  पदार्थ कण का द्रव्यमान प्रतिपदार्थ कण के समान ही होता है।
जब पदार्थ कण प्रति-पदार्थ कण से टकराता है, दोनो नष्ट होकर ऊर्जा मे बदल जाते है।
अप क्वार्क तथा प्रति अप क्वार्क का टकराव

क्वार्क और लेप्टान

क्वार्क और लेप्टान

अभी तक आपने पढा़ है कि आकाशगंगा से लेकर पर्वत से लेकर अणु तक सब कुछ क्वार्क और लेप्टान से बना है। लेकिन यह पूरी कहानी नही है। क्वार्क का व्यवहार लेप्टान से भिन्न होता है। हर पदार्थ कण का एक प्रतिपदार्थ कण(antimatter particle) होता है।
आकाशगंगा, पर्वत तथा जल अणु

Thursday 3 March 2016

सौर पाल : भविष्य के अंतरिक्षयानो को सितारों तक पहुंचाने वाले प्रणोदक

सौर पाल(Solar Sail) अंतरिक्ष यानो की प्रणोदन प्रणाली है जोकि तारो द्वारा उत्पन्न विकिरण दबाव के प्रयोग से अंतरिक्षयानो को अंतरिक्ष मे गति देती है। राकेट प्रणोदन प्रणाली मे सीमित मात्रा मे इंधन होता है लेकिन सौर पाल वाले अंतरिक्षयानो के पास वास्तविकता मे सूर्य प्रकाश के रूप मे अनंत इंधन होगा। इस तरह का असीमित मात्रा मे इंधन किसी भी अंतरिक्षयान द्वारा अंतरिक्ष मे खगोलिय दूरीयों को पार कराने मे सक्षम होगा।
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यह कैसे कार्य करता है ?

सौर पाल फोटान अर्थात प्रकाश कणो से ऊर्जा ग्रहण करते है जोकि सौर पाल की दर्पण नुमा परावर्तक सतह से टकराकर वापस लौटते है। हर फोटान का संवेग होता है, यह संवेग फोटान के टकराने पर सौर पाल की परावर्तक सतह को स्थानांतरित हो जाता है। हर फोटान अपने संवेग का दुगना संवेग सौर पाल को स्थानांतरित करता है। अरबो की संख्या मे फोटान किसी विशाल सौर पाल से टकराने पर उसे पर्याप्त मात्रा मे प्रणोद प्रदान करने मे सक्षम होते है।
सौर पाल मे प्रयुक्त परावर्तक पदार्थ किसी कागज से 40 से 100 गुणा पतले होते है तथा इस पाल को फैलाने पर वे पाल के लिये निर्मित ढांचे पर दृढ़ रूप से बंध जाते है और अंतरिक्षयान को प्रणोदन देने मे सक्षम होते है। अंतरग्रहीय यात्राओं के लिये सौर पाल का क्षेत्रफल एक वर्ग किमी चाहीये। वर्तमान के सौर पाल वाले अभियानो का आकार बहुत कम है और वे जांच तथा तकनीकी प्रदर्शन के लिये ही बनाये गये है।
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सौर पाल का संक्षिप्त इतिहास

  1. 1610 :गणितज्ञ जोहानस केप्लर ने कहा था कि किसी धूमकेतु की पुंछ सूर्य के कारण निर्मित हो सकती है। उन्होने गैलेलियो को लिखे पत्र मे कहा था कि सूर्य की इस विशिष्ट क्षमता से ग्रहो के मध्य यात्रा करने के लिये यान बनाये जा सकते है।Solarsail2
  2. 1864 :स्काटलैंड के वैज्ञानिक जेम्स क्लार्क मैक्सवेल विद्युतचुंबकीय क्षेत्र तथा विकिरण के सिद्धांत के प्रतिपादक थे। उनके सिद्धांत के अनुसार प्रकाश का संवेग होता है और यह संवेग पदार्थ पर दबाव डालता है। उनके समीकरणो ने सौरपाल के लिये सैद्धांतिक आधार दिया था।solarsail3
  3. 1899 :रूसी वैज्ञानिक पीटर लेबेडेफ़(Peter Lebedev) ने टार्सनल संतुलन द्वारा प्रकाश के दबाव का सफल प्रदर्शन किया था।Solarsail4
  4. 1925: राकेट विज्ञान तथा अंतरिक्षयानो के प्रवर्तक फ़्रेडरिक ज़ेण्डर ने एक शोध पत्र मे सौर पाल की अवधारणा मे विशाल आकार के पतली परत वाले दर्पण तथा सूर्य प्रकाश के दबाव से खगोलिय गति प्राप्त करने का विचार प्रस्तुत किया।solarsail5

solarsail6प्रारंभिक जांच और प्रयास

  1. मैरिनर 10(Mariner 10) :यह बुध ग्रह तक पहुंचने वाला प्रथम यान था तथा इसने उंचाई नियंत्रण करने के लिये सौर दबाव का प्रयोग किया था। इस यान को 1973 मे प्रक्षेपित किया गया था।
  2. झ्नम्या 2(Znmya -2)  : रूसी अंतरिक्ष केन्द्र मिर(Mir) द्वारा 20 मीटर चौड़े विशाल परावर्तक को फैलाया गया था, लेकिन इस प्रयोग मे प्रणोदन की पुष्टि नही हुयी।
  3. एस्ट्रो-एफ़(Astro-F) :2006 मे अकारी अंतरिक्षयान(Akari) के साथ 15 मिटर व्यास के सौर पाल का प्रक्षेपण किया गया था। यह यान कक्षा मे स्थापित हो गया लेकिन सौर पाल फ़ैल ना पाने से अभियान असफ़ल रहा।
  4. नैनोसेल डी(Nanosail-D) – 2008 मे नासा ने स्पेसएक्स फ़ाल्कन 1 यान के साथ एक सोलर पाल प्रक्षेपण का प्रयास किया लेकिन राकेट कक्षा मे नही पहुंच पाया और प्रशांत महासागर मे जा गिरा।
  5. इकारास(IKAROS) :जुन 2010 मे जापान द्वारा प्रक्षेपित यह विश्व का सर्वप्रथम अंतरग्रहीय सौर पाल वाला सफ़ल यान था।
  6. नैनोसेल डी2(Nanosail D2) :  नासा का सौर पाल मे यह द्वितिय प्रयास था और इसे नवंबर 2010 मे प्रक्षेपित किया गया। इस यान ने जनवरी 2011 मे अपने सौर पाल को सफलता पूर्वक फ़ैला दिया।

प्रकाश सौर पाल : 40 वर्षो की निर्माण गाथा

  1. 1976 मे खगोल वैज्ञानिक कार्ल सागन ने विश्व के सामने द जानी कार्सन शो मे सौर पाल वाले अंतरिक्षयान के एक प्रोटोटाईप
    को प्रस्तुत किया।
  2. चार वर्ष पश्चात कार्ल सागन मे लुई फ़्रीडमन तथा ब्रुस मुर्रे के साथ द प्लेनेटरी सोसायटी की स्थापना की जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष अन्वेषण को बढ़ावा देना था।
  3. 2001 तथा 2005 मे द प्लेनेटरी सोसायटी ने कासमस स्टुडियो तथा रशीयन एकेडमी आफ़ साइंसेस के साथ मिलकर दो सौर पाल वाले प्रयोग किये। दोनो असफल रहे।
  4. कार्ल सागन के 75 वे जन्मदिन 9 नवंबर 2009 को द प्लेनेटरी सोसायटी ने तीन प्रयोगो की घोषणा की जिन्हे लाइट्सेल 1,2 तथा 3 नाम दिये गये।
  5. 2010 मे बिल नाय (Bill Nye) द प्लेनेटरी सोसायटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बने, अब वे लाईट्सेल का कार्यभार देखेंगे।
  6. मई 2015 मे नाय ने लाइटसेल -A के लिये राशि जमा करने का अभियान आरंभ किया, इसे अब तक 12 लाख की राशि दान मे मिली है।
  7. 8 जुन 2015 को लाइट्सेल A सफलता पुर्वक कक्षा मे स्थापित हो गया और अपनी सौर पाल को फैलाने मे सफ़ल रहा। यह द प्लेनेटरी सोसायटी के लिये ऐतिहासिक क्षण था।
  8. अप्रैल 2016 मे द प्लेनेटरी सोसायटी लाइट सेल 1 प्रक्षेपित करने जा रहा है जोकि उनका पहला पूर्ण आकार का सौर पाल अंतरिक्षयान होगा। पाल को फैलाने पर उसका आकार 32 मिटर होगा, इसका आकार इतना है कि इसे पृथ्वी से देखा जा सकेगा।

निकोलस कोपरनिकस : महान खगोलशास्त्री

विश्व के दो समकालीन महान खगोलशास्त्रियों का जन्मदिन फ़रवरी माह में है, निकोलस कोपरनिकस तथा गैलेलियो गैलीली। गैलिलियो (Galilio) से लगभग एक शताब्दी पहले 19 फ़रवरी 1473 को पोलैंड में निकोलस कोपरनिकस का जन्म हुआ था।
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निकोलस कोपरनिकस पहले योरोपियन खगोलशास्त्री है (First European Astronaut) जिन्होने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के केन्द्र से बाहर किया। अर्थात हीलियोसेंट्रिज्म (Heliocentrizm) का सिद्धांत दिया जिसमे ब्रह्माण्ड  का केंद्र पृथ्वी ना होकर सूर्य था। इससे पहले पूरा योरोप अरस्तू के मॉडल पर विश्वास करता था, जिसमें पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र थी तथा सूर्य, तारे तथा दूसरे पिंड उसके गिर्द चक्कर लगा रहे थे। कोपरनिकस ने इसका खंडन किया।
सन 1530 में कोपरनिकस की पुस्तक “De Revolutionibus” प्रकाशित हुई, जिसमें उसने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई एक दिन में चक्कर पूरा करती है, और एक साल में सूर्य की परिक्रमा पूरा करती है। कोपरनिकस ने तारों की स्थिति ज्ञात करने के लिए “प्रूटेनिक टेबिल्स (Prutenic Tables)” की रचना की जो अन्य खगोलविदों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुईं।

जीवन वृतांत

कोपरनिकस का ब्रह्मांड
कोपरनिकस का ब्रह्मांड
अरस्तु का ब्रह्माण्ड
अरस्तु का ब्रह्माण्ड
निकोलस कोपरनिकस का जन्म 19 फरवरी, 1473 को पौलैंड के विस्तुला नदी के किनारे बसे थोर्न में हुआ। उनके बचपन का नाम था कोपरनिक, जिसका अर्थ होता है विनम्र।
जब वह दस वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई और उनका लालन-पालन उनके मामा लुक्स वाक्झेनरोड ने किया। चूंकि उनके मामा का संपर्क पोलैंड के ख्यातिप्राप्त लोगों से था इसलिए उन्हें पढ़ाई और स्कूल में प्रवेश में कभी दिक्कत नहीं हुई।
कोपरनिकस का ज्योतिष और गणित की ओर रुझान बढ़ा। उन्होंने तीन साल तक चिकित्सा , कला और खगोलशास्त्र का अध्ययन किया।
उन्होंने 1491 में तत्कालीन यूनिवर्सिटी ऑफ क्राकौ से मैट्रिक पास किया। पाडुआ विविद्यालय से उन्होंने चिकित्सा और दर्शनशास्त्र में डिग्री ली लेकिन उन्होंने अपना करियर खगोलशास्त्र में बनाया और 1499 में रोम विश्वविद्यालय में खगोलशास्त्र के अध्यापक के रूप मे कार्य प्रारंभ किया।
बाद में वे विश्वविद्यालय छोड़कर धर्म प्रचारक बन गए। युवावस्था से तीस वर्ष तक वे गणित का सहारा लेकर अपनी मान्यताओं को सिद्ध करने और उन्हें पूरी तरह सही करने की कोशिश करते रहे।
उनकी पुस्तक ‘ऑन द रिवोल्यूशन्स ऑफ द सेलेलिस्टयल स्फेयर’ का प्रकाशन उनकी मौत के बाद हुआ। उनके मन में इसे प्रकाशित करने की झिझक थी।  आखिरकार उनके एक गहरे मित्र टिडमान गाइसीयस ने इस पुस्तक को प्रकाशित करवाया। इस किताब को आधुनिक खगोलशास्त्र की शुरुआत माना जाता है।
उनकी खोज को विज्ञान जगत में मानक माना जाता है। उन्होंने यह निष्कर्ष बिना किसी यंत्र का उपयोग किये किया। वे घंटों नंगी आंख से अंतरिक्ष को निहारते रहते थे और गणितीय गणनाओं द्वारा सही निष्कर्ष प्राप्त करने की कोशिश करते थे।
खगोलशास्त्री होने के साथ-साथ कोपरनिकस गणितज्ञ, चिकित्सक, अनुवादक, कलाकार, न्यायाधीश, गवर्नर और अर्थशास्त्री भी थे। वे जहां लैटिन, जर्मन और पॉलिश धाराप्रवाह बोलते थे, वहीं ग्रीक और इटैलियन पर भी पूरा अधिकार रखते थे।
उनके अधिकतर शोध लैटिन में छपे हैं क्योंकि उस दौर यही यूरोप की भाषा थी। रोमन कैथोलिक चर्च और पोलैंड के रॉयल कोर्ट की भाषा भी लैटिन ही थी, हालांकि उन्होंने जर्मन में भी छिटपुट लिखा है।
1542 आते-आते वे एपोप्लेक्सी और पक्षाघात के शिकार हुए और 24 मई, 1543 को उनका निधन हो गया।

कोपरनिकस का योगदान

कोपरनिकस के अन्तरिक्ष के बारे में सात नियम जो उसकी किताब में अंकित हैं, इस प्रकार हैं :
  • सभी खगोलीय पिंड किसी एक निश्चित केन्द्र के परितः नहीं हैं।
  • पृथ्वी का केन्द्र ब्रह्माण्ड का केन्द्र नहीं है। वह केवल गुरुत्व व चंद्रमा का केन्द्र है।
  • सभी गोले (आकाशीय पिंड) सूर्ये के परितः चक्कर लगाते हैं। इस प्रकार सूर्ये ही ब्रह्माण्ड का केन्द्र है। (यह नियम असत्य है।)
  • पृथ्वी की सूर्य से दूरी, पृथ्वी की आकाश की सीमा से दूरी की तुलना में बहुत कम है।
  • आकाश में हम जो भी गतियां देखते हैं वह दरअसल पृथ्वी की गति के कारण होता है। (आंशिक रूप से सत्य)
  • जो भी हम सूर्य की गति देखते हैं, वह दरअसल पृथ्वी की गति होती है।
  • जो भी ग्रहों की गति हमें दिखाई देती है, उसके पीछे भी पृथ्वी की गति ही जिम्मेदार होती है।
विशेष बात यह है कि कोपरनिकस ने ये निष्कर्ष बिना किसी प्रकाशिक यंत्र के उपयोग के प्राप्त किए। वह घंटों नंगी आँखों से अन्तरिक्ष को निहारता रहते थे और गणितीय गणनाओं द्वारा सही निष्कर्ष प्राप्त करने की कोशिश करते थे। बाद में गैलिलियो ने जब दूरदर्शी का आविष्कार किया तो उसके निष्कर्षों की पुष्टि हुई।
खगोलशास्त्री होने के साथ साथ कोपरनिकस र्थशास्त्री भी थे। उन्होने मुद्रा के ऊपर शोध करते हुए ग्रेशम के प्रसिद्ध नियम को स्थापित किया, जिसके अनुसार ख़राब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। उसने मुद्रा के संख्यात्मक सिद्धांत का फार्मूला दिया। कोपरनिकस के सुझावों ने पोलैंड की सरकार को मुद्रा के स्थायित्व में काफ़ी सहायता दी।

विश्व  कोपरनिकस के योगदानों को शायद ही भुला पाये।

प्रकाशगति का मापन

प्रकाशगति का मापन कैसे किया गया ? यह प्रश्न कई बार पुछा जाता है और यह एक अच्छा प्रश्न भी है। 17 वी सदी के प्रारंभ मे और उसके पहले भी अनेक वैज्ञानिक मानते थे कि प्रकाश की गति जैसा कुछ नही होता है, उनके अनुसार प्रकाश तुरंत ही कोई कोई भी दूरी तय कर सकता है। अर्थात प्रकाश शून्य समय मे कोई भी दूरी तय कर सकता है।
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गैलेलियो का प्रयास

lanternanimलेकिन गैलेलियो गैलीली इस से सहमत नही थे तथा उन्होने प्रकाशगति मापने के लिये प्रयोग करने का निश्चय किया। वे और उनके सहयोगी ने ढक्कन वाली लालटेन ली और वे एक दूसरे से एक मील दूरी पर दो पहाड़ीयों के शिर्ष पर जा पहुंचे। गैलेलियो ने अपने सहयोगी को निर्देश दिया था कि जैसे ही वह अपनी लालटेन का ढक्कन हटायेंगे, सहयोगी उनकी लालटेन के प्रकाश को देखकर अपनी लालटेन का ढक्कन हटायेगा। गैलेलीयो दूसरी पहाड़ी के शिर्ष से आनेवाले प्रकाश द्वारा लगनेवाले समय का मापन करेंगे।
इस समय को दूरी से विभाजित करने पर प्रकाश गति मिल जायेगी। यह प्रयोग बूरी तरह असफल रहा। कारण सरल था, प्रकाशगति इतनी अधिक है कि एक मील की दूरी तय करने उसे अत्यंत नगण्य समय लगा, केवल 0.0000005 सेकंड! गैलेलियो के पास समय के इतने छोटे भाग के मापन के लिये कोई उपकरण ही नही था।
अर्थात आपको प्रकाशगति के मापन के लिये लंबी दूरी वाले प्रयोग करने होंगे, लाखो करोड़ो मील दूरी के! इतनी विशाल दूरी के प्रयोग कैसे किये जाये ?

ओल रोमर का प्रयास

हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला द्वारा लिया गया बृहस्पति, चंद्रमा आयो तथा आयो की छाया का चित्र।
हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला द्वारा लिया गया बृहस्पति, चंद्रमा आयो तथा आयो की छाया का चित्र।
1670 मे एक डेनिश खगोल वैज्ञानिक ओल रोमर (Ole Roemer) बृहस्पति के चंद्रमा आयो(Io) का निरीक्षण कर रहे थे। चित्र मे बृहस्पति पर दिखायी दे रहा काला धब्बा आयो की छाया है। आयो बृहस्पति की एक परिक्रमा करने मे 1.76 दिन का समय लेता है और परिक्रमा मे लगने वाला यह समय हमेशा समान रहता है। रोमर ने सोचा कि वे आयो की गति की सटिक गणना कर सकते है। लेकिन वह उस समय आश्चर्यचकित रह गये जब उन्होने पाया कि यह चंद्रमा वर्ष मे हमेशा उसी समय पर दिखायी नही देता था, कभी वह समय से पहले दिखायी देता था, कभी वह समय से पहले दिखायी देता था।
यह विचित्र था, आयो बृहस्पति परिक्रमा मे कभी तेज, कभी धीमे क्यों करता था ?
रोमर परेशान हो गये, कोई भी इसका संतोषजनक उत्तर नही दे पा रहा था। लेकिन रोमर ने अचानक पाया कि आयो जब तेजी से परिक्रमा करता है उस समय पृथ्वी बृहस्पति के समीप होती है, और जब वह धीमे परिक्रमा करता है तब पृथ्वी बृहस्पति से दूर होती है।
रोमर ने सोचा कि यह प्रकाश गति से संबधित होना चाहिये, लेकिन कैसे रोमर समझ नही पा रहे थे।
रोमर ने बाद मे सोचा कि यदि प्रकाश अनंत गति से यात्रा नही करता है और उसकी गति सीमीत है, इस स्थिति मे प्रकाश को बृहस्पति से पृथ्वी तक पहुचने मे कुछ समय लगता होगा। मान लेते है कि यह समय x मिनट है। जब आप बृहस्पति को किसी दूरबीन से देखते है तब हम उससे निकलने वाले प्रकाश को x मिनट बाद देख रहे होते है, अर्थात बृहस्पति और उसके चंद्रमाओं की x मिनट पुरानी छवि देख रहे होते है।
jupiterइसका अर्थ यह है कि जब बृहस्पति पृथ्वी से दूर होता है, तब उसके प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने मे अधिक समय लगता है, और बृहस्पति के पृथ्वी के समीप होने पर यह समय कम होता है। इसका अर्थ यह है कि आयो की बृहस्पति की परिक्रमा का समय एक ही है, लेकिन बृहस्पति की पृथ्वी से दूरी जब कम होती है आयो पहले दिख जाता है, जबकि दूरी अधिक होने पर वह बाद मे दिखायी देता है।
रोमर ने प्रकाशगति की गणना बृहस्पति के चंद्रमा आयो के ग्रहण मे लगने वाले समय से की थी। इस चित्र मे S सूर्य है, E1 पृथ्वी है जब वह बृहस्पति J1 के समीप होती है। छह महिने पश्चात E2 स्थिति मे पृथ्वी सूर्य के दूसरी ओर है तथा बृहस्पति J2 पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर है।  जब पृथ्वी E2 पर होती है बृहस्पति से उत्सर्जित प्रकाश को पृथ्वी की कक्षा के तुल्य दूरी अधिक तय करनी होती है। इस अधिक दूरी को तय करने मे लगने वाले समय तथा पृथ्वी की कक्षा के व्यास के आधार पर रोमर ने प्रकाश गति की गणना की थी।
रोमर ने प्रकाशगति की गणना बृहस्पति के चंद्रमा आयो के ग्रहण मे लगने वाले समय से की थी। इस चित्र मे S सूर्य है, E1 पृथ्वी है जब वह बृहस्पति J1 के समीप होती है। छह महिने पश्चात E2 स्थिति मे पृथ्वी सूर्य के दूसरी ओर है तथा बृहस्पति J2 पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर है।
जब पृथ्वी E2 पर होती है बृहस्पति से उत्सर्जित प्रकाश को पृथ्वी की कक्षा के तुल्य दूरी अधिक तय करनी होती है। इस अधिक दूरी को तय करने मे लगने वाले समय तथा पृथ्वी की कक्षा के व्यास के आधार पर रोमर ने प्रकाश गति की गणना की थी।
रोमर ने पाया कि आयो के दिखायी देने के समय के अंतर तथा बृहस्पति और पृथ्वी के मध्य दूरीयों मे आने वाले अंतर से प्रकाशगति की गणना कर सकते है। रोमर ने गणना की और प्रकाशगति को 210,000 किमी/सेकंड पाया। वर्तमान विज्ञान के अनुसार प्रकाशगति लगभग 300,000 किमी/सेकंड है।
बाद के वर्षो मे बेहतर उपकरण और तकनीको के अविष्कार के फलस्वरूप प्रकाशगति मे मापन मे सटिकता आते गयी और प्रकाशगति का मापन सटिक होते गया। वर्तमान मे उपलब्ध तकनीक से हम अत्यंत परिशुद्ध मापन कर सकते है। उदाहरण के लिये अंतरिक्षयात्री चंद्रमा पर एक चट्टान पर एक दर्पण छोड़्कर आये है। हम उस दर्पण पर लेजर से निशाना लगा कर लेजर प्रकाश के चंद्रमा से आने जाने का समय ज्ञात कर सकते है जोकि 2.5 सेकंड है। इस विधि से भी प्रकाश की गति की गणना करने पर मूल्य 300,000 किमी/सेकंड प्राप्त होता है। चंद्रमा पर दर्पण रख कर प्रकाशगति ज्ञात करने का आईडीया भी गैलेलीयो का था।
सभी विद्युत-चुंबकीय विकिरण जैसे रेडीयो तरंग, माइक्रोवेव भी इसी गति से यात्रा करते है।

प्रकाशगति की गणना का इतिहास


वर्ष वैज्ञानिक विधि परिणाम(किमी/सेकंड) त्रुटि
1676 ओल रोमर (Olaus Roemer) बृहस्पति के उपग्रह 214,000
1726 जेम्स ब्रेडली (James Bradley) खगोलिय विक्षेप(Stellar Aberration) 301,000
1849 अर्मांड फ़िजेउ(Armand Fizeau) दांत वाले चक्र(Toothed Wheel) 315,000
1862 लीओन फ़ोकाट(Leon Foucault) घूर्णन करते दर्पण(Rotating Mirror) 298,000 +-500
1879 अलबर्ट माइकल्सन(Albert Michelson) घूर्णन करते दर्पण(Rotating Mirror) 299,910 +-50
1907 डोर्सी रोजा(Rosa, Dorsay) विद्युत चंबकिय स्थिरांक(Electromagnetic constants) 299,788 +-30
1926 अलबर्ट माइकल्सन(Albert Michelson) घूर्णन करते दर्पण(Rotating Mirror) 299,796 +-4
1947 एसेन, गार्डन-स्मिथ(Essen, Gorden-Smith) केविटि रेजोनेटर(Cavity Resonator) 299,792 +-3
1958 के डी फ़्रूमे(K. D. Froome) रेडीयो इन्टर्फ़ेरोमिटर(Radio Interferometer) 299,792.5 +-0.1
1973 एवानसन (Evanson et al) लेजर(Lasers) 299,792.4574 +-0.001
1983
वर्तमान मूल्य 299,792.458

गुरुत्वाकर्षण तरंग की खोज : LIGO की सफ़लता

लगभग सौ वर्ष पहले 1915 मे अलबर्ट आइंस्टाइन (Albert Einstein)ने साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत(Theory of General Relativity) प्रस्तुत किया था। इस सिद्धांत के अनेक पुर्वानुमानो मे से अनुमान एक काल-अंतराल(space-time) को भी विकृत(मोड़) कर सकने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगो की उपस्थिति भी था। गुरुत्वाकर्षण तरंगो की उपस्थिति को प्रमाणित करने मे एक सदी लग गयी और 11 फ़रवरी 2016 को लीगो ऑब्ज़र्वेटरी के शोधकर्ताओं ने कहा है कि उन्होंने दो श्याम विवरों (Black Holes)की टक्कर से निकलने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया है।
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लिगो (LIGO / Laser Interferometer Gravitational-Wave Observatory) भौतिकी का एक विशाल प्रयोग है जिसका उद्देश्य गुरुत्वीय तरंगों का सीधे पता लगाना है। यह एमआईटी(MIT), काल्टेक(Caltech) तथा बहुत से अन्य संस्थानों का सम्मिलित परियोजना है। यह अमेरिका के नेशनल साइंस फाउण्डेशन (NSF) द्वारा प्रायोजित है।
गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने आंकड़ो के विश्लेषन(डेटा अनैलिसिस) समेत काफी अहम भूमिकाएं निभाई हैं। इंस्टिट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च. गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रॉनामी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे और राजारमन सेंटर फॉर अडवांस्ड टेक्नॉलाजी, इंदौर सहित कई संस्थान इससे जुड़े थे। गुरुत्वीय तरंगों की खोज का ऐलान आईयूसीएए पुणे और वाशिंगटन डीसी अमेरिका में वैज्ञानिकों ने किया। भारत उन देशों में से भी एक है, जहां गुरुत्वाकषर्ण प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है।
गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने आंकड़ो के विश्लेषन(डेटा अनैलिसिस) समेत काफी अहम भूमिकाएं निभाई हैं। इंस्टिट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च. गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रॉनामी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे और राजारमन सेंटर फॉर अडवांस्ड टेक्नॉलाजी, इंदौर सहित कई संस्थान इससे जुड़े थे।
गुरुत्वीय तरंगों की खोज का ऐलान आईयूसीएए पुणे और वाशिंगटन डीसी अमेरिका में वैज्ञानिकों ने किया। भारत उन देशों में से भी एक है, जहां गुरुत्वाकषर्ण प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है।
मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फ़ॉर ग्रेविटेशनल फ़िज़िक्स और लेबनीज़ यूनिवर्सिटी के प्रॉफ़ेसर कार्स्टन डान्ज़मैन ने इस शोध को डीएनए के ढांचे की समझ विकसित करने और हिग्स पार्टिकल की खोज जितना ही महत्वपूर्ण मानते है। वे कहते है कि इस खोज मे नोबेल पुरस्कार छिपा है। इस खोज के महत्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इन्हें शताब्दि की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। दशकों से वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि क्या गुरुत्वाकर्षण तरंगें वाकई दिखती हैं। इसकी खोज करने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी(ESA) ने “लीज पाथफाइंडर” नाम का अंतरिक्ष यान भी अंतरिक्ष में भेजा था।
आज से करीब सवा अरब साल पहले ब्रह्मांड में 2 श्याम विवरों (ब्लैक होल) में टक्कर हुई थी और यह टक्कर इतनी भयंकर थी कि अंतरिक्ष में उनके आसपास मौजूद जगह(अंतरिक्ष) और समय, दोनों विकृत हो गए। आइंस्टाइन ने 100 साल पहले कहा था कि इस टक्कर के बाद अंतरिक्ष में हुआ बदलाव सिर्फ टकराव वाली जगह पर सीमित नहीं रहेगा। उन्होंने कहा था कि इस टकराव के बाद अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण तरंगें उत्पन्न हुईं और ये तरंगें किसी तालाब में पैदा हुई तरंगों की तरह आगे बढ़ती हैं।
अब विश्व भर के वैज्ञानिकों को आइंस्टाइन की सापेक्षता के सिद्धांत (थिअरी ऑफ रिलेटिविटी) के प्रमाण मिल गए हैं। इसे अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ी सफलता माना जा रहा है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज से खगोल विज्ञान और भौतिक विज्ञान में खोज के नए दरवाजे खुलेंगे।
ध्यान रहे कि इसके पहले युग्म श्याम विवरों(Binary Black Holes) की उपस्थिति के प्रमाण थे, लेकिन इस खोज से उनकी उपस्थिति पुख्ता रूप से प्रमाणित हो गयी है और यह भी प्रमाणित हो गया है कि अतंत: वे टकराकर एक दूसरे मे विलिन हो जाते है।
इन दोनो श्याम विवरो का विलय से पहले द्रव्यमान 36 तथा 29 सौर द्रव्यमान के बराबर था। उनके विलय के पश्चात बने श्याम विवर का द्रव्यमान 62 सौर द्रव्यमान है। आप ध्यान दे तो पता चलेगा कि नये श्याम विवर का द्रव्यमान दोनो श्याम विवर के द्रव्यमान से कम है और 3 सौर द्रव्यमान के तुल्य द्रव्यमान कम है। ये द्रव्यमान गायब नही हुआ है, यह द्रव्यमान ऊर्जा के रूप मे परिवर्तित हो गया है और इसी ऊर्जा से गुरुत्वाकर्षण तरंगे उत्पन्न हुयी है। इस ऊर्जा की मात्रा अत्याधिक अधिक है, इतनी अधिक की सूर्य को इतनी ऊर्जा उत्सर्जित करने मे 150 खरब वर्ष लगेंगे। (नोट : 1 सौर द्रव्यमान – सूर्य का द्रव्यमान)।
 दो LIGO प्रयोगशाला द्वारा प्राप्त वास्तविक आंकड़े। आलेख मे आया विचलन गुरुत्वाकर्षण तरंगो द्वारा अंतरिक्ष मे मोड़ उत्पन्न करने से है जोकि दो श्याम विवर के विलय से उत्पन्न हुयी थी।

दो LIGO प्रयोगशाला द्वारा प्राप्त वास्तविक आंकड़े। आलेख मे आया विचलन गुरुत्वाकर्षण तरंगो द्वारा अंतरिक्ष मे मोड़ उत्पन्न करने से है जोकि दो श्याम विवर के विलय से उत्पन्न हुयी थी।

गुरुत्वाकर्षण तरंगे क्या है?

द्रव्यमान द्वारा काल-अंतराल(spacetime) मे उत्पन्न विकृति
द्रव्यमान द्वारा काल-अंतराल(spacetime) मे उत्पन्न विकृति
आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद सिद्धांत के अनुसार अंतरिक्ष और समय दोनो एक ही सिक्के के दो पहलु है, दोनो एक दूसरे से गुंथे हुये है, जिन्हे हम एक साथ ’काल-अंतराल(spcaetime)’ कहते है। इसे समझने के लिये कई उदाहरण है लेकिन सबसे सरल एक चादर है जिसके चार आयाम है जोकि अंतरिक्ष के तीन आयाम(लंबाई, चौड़ाई और गहराई) तथा चौथा आयाम के रूप मे समय है। ध्यान दें कि यह केवल समझने के लिये है, वास्तविकता इससे थोड़ी भिन्न होती है।
हम सामान्यत: गुरुत्वाकर्षण बल को एक आकर्षित करनेवाला या खिंचने वाला बल मानते है। लेकिन आइंस्टाइन के अनुसार गुरुत्वाकर्षण काल-अंतराल को मोड़ देता है, उसे विकृत कर देता है और इस प्रभाव को हम एक आकर्षण बल के रूप मे देखते है। एक अत्याधिक द्रव्यमान वाला पिंड काल-अंतराल को इस तरह से मोड़ देता है कि  इस मुड़े हुये काल अंतराल से गुजरते हुये अन्य पिंड की गति त्वरित हो जाती है। जैसे किसी तनी हुयी चादर के मध्य एक भारी गेंद रख देने पर वह चादर मे एक झोल उत्पन्न कर देती है, उसके पश्चात उसी चादर पर कुछ कंचे डालने पर वे इस झोल की वजह से गति प्राप्त करते है।
सरल शब्दो मे पदार्थ अंतरिक्ष को मोड़ उत्पन्न करने के लिये निर्देश देता है और अंतरिक्ष पदार्थ को गति करने निर्देश देता है।
साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के गणित के अनुसार यदि किसी भारी पिंड की गति मे त्वरण आता है, तो वह अंतरिक्ष मे हिचकोले, लहरे उत्पन्न करेगा जो उस पिंड से दूर गति करेंगी। ये लहरे काल-अंतराल मे उत्पन्न तरंग होती है, इन तरंगो की गति के साथ काल-अंतराल(spacetime) मे संकुचन और विस्तार उत्पन्न होता है। इस घटना को समझने के लिये आप किसी शांत जल मे पत्थर डालने से जल की शांत सतह को मोड़ रही लहरो के जैसे मान सकते है।
गुरुत्वाकर्षण तरंगो को उत्पन्न करने के कई तरिके है। जितना अधिक भारी और घना पिंड होगा वह उतनी अधिक ऊर्जावान तरंग उत्पन्न करेगा। पृथ्वी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से त्वरित होकर एक वर्ष मे सूर्य की परिक्रमा करती है। लेकिन यह गति बहुत धीमी है तथा पृथ्वी का द्रव्यमान इतना कम है कि इससे उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण तरंग को पकड़ पाना लगभग असंभव ही है।
लेकिन यदि आपके पास दो अत्याधिक द्रव्यमान वाले पिंड है, उदाहरण के लिये न्युट्रान तारे जोकि महाकाय तारो के अत्याधिक घनत्व वाले अवशेष केंद्रक होते है, अपनी गति से ऐसी गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न कर सकते है जिन्हे हम पकड़ सकें।
1974 मे खगोल वैज्ञानिक जोसेफ़ टेलर(Josheph Taylor) तथा रसेल ह्ल्स(Russel Hulse) ने एक ’युग्म न्युट्रान तारों(Binary Neutron Star)’ को खोजा था। ये दोनो अत्याधिक द्रव्यमान वाले घने तारे एक दूसरे की परिक्रमा अत्याधिक तीव्र गति से लगभग 8 घंटो मे करते थे। इस तीव्र गति से परिक्रमा करने पर वे थोड़ी मात्रा मे गुरुत्वाकर्षण तरंग के रूप मे ऊर्जा उत्पन्न करते थे। यह ऊर्जा उन तारो की परिक्रमा गति से ही उत्पन्न हो रही थी, जिससे गुरुत्वाकर्षण की ऊर्जा के ह्रास से उन तारो की परिक्रमा की गति भी कम हो रही थी। इससे उन तारो की कक्षा की दूरी भी कम हो रही थी और उनकी परिक्रमा का समय भी कम हो रहा था। समय के साथ उनकी कक्षा की दूरी मे आने वाली कमी की गणना की गयी और यह कमी साधारण सापेक्षतवाद के सिद्धांत से गणना की गयी कमी से सटिक रूप से मेल खाती थी।
टेलर और हल्स द्वारा निरीक्षित दो न्युट्रान तारो की कक्षा मे ह्रास का आलेख(लाल बिंदु)। नीले बिंदु साधारण सापेक्षतावाद द्वारा गणना किये गये है जोकि निरीक्षित प्रभाव से मेल खाते है।
टेलर और हल्स द्वारा निरीक्षित दो न्युट्रान तारो की कक्षा मे ह्रास का आलेख(लाल बिंदु)। नीले बिंदु साधारण सापेक्षतावाद द्वारा गणना किये गये है जोकि निरीक्षित प्रभाव से मेल खाते है।
टेलर और हल्स को इस खोज के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया था और उन्होने अप्रत्यक्ष रूप से गुरुत्वाकर्षण तरंग खोज निकाली थी। उन्होने गुरुत्वाकर्षण तरंगो के निर्माण से ऊर्जा के ह्रास को तारो की कक्षा मे आनेवाले परिवर्तन को देखा था, लेकिन उन्होने गुरुत्वाकर्षण तरंगो को प्रत्यक्ष नही देखा था।

लिगो (LIGO) ने गुरुत्वाकर्षण तरंगो को कैसे खोजा?

गुरुत्वाकर्षण तरंग बहुत से आकार और प्रकार मे आती है। लेकिन वे सभी की सभी अंतरिक्ष के आकार को न्युनाधिक मात्रा मे विकृत करती है। इसके कारण दो पिंडो के मध्य अंतरिक्ष मे आयी विकृति से दूरी कम ज्यादा होती है। इस दूरी के परिवर्तन को मापा कैसे जाये ? यह दो पिंडो के मध्य किसी पैमाने से उनकी दूरी मे आने वाले परिवर्तनो को मापने जैसा आसान नही है।
1. गुरुत्वाकर्षण तरंग से अंतरिक्ष मे संकुचन 10^22 भाग में एक भाग के बराबर है! यानी परमाणु के नाभिक का एक करोड़वां भाग। 2. प्रयोग से प्राप्त आंकड़ो में बहुत ही ज्यादा
1. गुरुत्वाकर्षण तरंग से अंतरिक्ष मे संकुचन 10^22 भाग में एक भाग के बराबर है! यानी परमाणु के नाभिक का एक करोड़वां भाग।
2. प्रयोग से प्राप्त आंकड़ो में बहुत ही ज्यादा “अवांछित संकेत” भी होते है, जो किसी ट्रेन के चलने, हवाई जहाज के चलने, ट्रैफिक, चलने और यहाँ तक परमाणुओं के कम्पन से भी उत्पन्न होते है। इन “अवांछित संकेतो” के मध्य में ही गुरुत्वाकर्षण तरंग के संकेत भी होते है, जिसकी तीव्रता अत्यंत कम होती है, जिसे बाकी अवांछित संकेत से अलग करना बहुत बड़ी चुनौती का काम होता है। पांच महीने इसी काम में लग गए हैं।
3. चार किलोमीटर लम्बी सुरंग के अंदर एक सीधा पाइप है, पाइप के अंदर निर्वात है, लेज़र निर्वात से गुजरता है! ताकि लेजर किसी परमाणु से टकराकर कोई “अवांछित संकेत” न उत्पन्न कर सके।
लिगो (LIGO / Laser Interferometer Gravitational-Wave Observatory) के अंतर्गत दो प्रयोगशालायें है एक वाशींगटन राज्य मे है, दूसरी लुसियाना राज्य मे है जिन्हे संयुक्त रूप से काल्टेक तथा एम आई टी संचालित करती है। ये किसी अन्य खगोलिय वेधशाला के जैसे नही है। इन दोनो वेधशालाओ मे बहुत लंबी L के आकार मे सुरंगे है। एक चार किमी लंबी सुरंग के सबसे दूर वाले सीरो पर दर्पण लगे है।
जिस जगह पर ये दोनो सुरंगे जुड़ी हुयी है उसके उपर एक शक्तिशाली लेजर उपकरण लगा हुआ है। यह लेजर उपकरण लेजर किरण को एक विशेष दर्पण पर डालता है और यह दर्पण इस लेजर किरण को विभाजित कर सूरंग के दोनो ओर भेजता है। सूरंग के दोनो सीरो के दर्पण से परावर्तित किरणो का अंत मे एक जांच उपकरण वापिस जोड़कर मापता है।
इस विशालकाय प्रयोग को सरल रूप से समझते है। इस प्रयोग की दो सुरंगो के दो सीरो पर चित्र मे दिखाये अनुसार दो दर्पण M1 तथा M2 लगे है। इन दो सूरंगो के जोड़ पर लेजर विभाजक B, लेजर उपकरण(स्रोत) LS तथा लेजर जांचक LD लगा है। लेजर स्रोत LS से लेजर किरण लेजर विभाजक B पर पड़ती है और वह उसे विभाजित कर दर्पण M1 तथा M2 पर भेजती है। M1 तथा M2 से परावर्तित किरणे B से गुजरते हुये लेजर जांचक उपकरण LD पर आती है। ध्यान दे कि B से M1 या M2 की दूरी 4 किमी है।
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इस जांच प्रणाली को मिशेल्सन इन्टर्फ़ेरोमिटर(Michelson Interferometer) कहते है।
इस प्रणाली को इस आसान चित्र मे देखे।
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साधारण स्थिति मे(गुरुत्वाकर्षण तरंगो की अनुपस्थिति मे) लेजर स्रोत LS से उत्सर्जित लेजर किरण विभाजित B द्वारा विभाजित हो कर M1/M2 तक इस चित्र के अनुसार जायेंगी और परावर्तित होकर लेजर जांचक LD तक पहुंचेंगी। हरा और लाल रंग समझने के लिये प्रयोग किया गया है, साथ ही लेजर पल्स का परावर्तित होकर आने वाला मार्ग केवल समझने के लिये हटकर दिखाया है।
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प्रकाश स्रोत बांये LS से उत्सर्जित होता है, तथा विभाजक तक पहुंचने से पहले साथ साथ चलता है, लाल तथा हरें बिंदु साथ मे है। विभाजक हरे रंग की किरण को उपर की ओर वाले दर्पण M1 तथा लाल रंग की किरण को दायीं ओर के दर्पण M2 की ओर भेजता है। दोनो किरणे M1/M2 से परावर्तित होकर विभाजक से होते हुये लेजर जांच उपकरण नीचे LD तक आती है।
इस प्रणाली मे आड़ी सुरंग सीधी खड़ी सूरंग से थोड़ी बड़ी है। इसलिये लाल किरण को थोड़ा अधिक समय लगता है इस्लिये वे जांच यंत्र तक थोड़ी देर मे आती है, और इससे हमे एक लय मे किरणे आती दिखायी देती है, लाल , हरी लाल , हरी और उनके मध्य समय अंतराल भी समान है। यह महत्वपूर्ण है जो हम आगे देखेंगे।
नीचे चित्र मे इन किरणो के आने का पैटर्न और समय देखे। पैटर्न स्पष्ट है, लाल और हरी किरण एक के बाद एक समान अंतराल मे आ रही है।
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अब गुरुत्विय तरंग को लेकर आते है।

यदि गुरुत्वाकर्षण तरंग आपकी स्क्रीन के पीछे से आपकी स्क्रिन के सामने की ओर जा रही है तो उसका प्रभाव नीचे चित्र के जैसे होगा।(प्रभाव को समझने के लिये बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया है।) गुरुत्वाकर्षण तरंग से अंतरिक्ष को मोड़ दिया गया है जिससे विभाजक और दर्पण M1/M2 के मध्य दूरी मे परिवर्तन हुआ है। अब हमारे जांच यंत्र मे आ रहे प्रकाश को देखिये। कभी कभी लाल और हरी किरण समान अंतराल मे आ रही है, कभी वे कम अंतराल मे आ रही है। यह प्रभाव गुरुत्वाकर्षण तरंग से आया है, गुरुत्वाकर्षण तरंग की अनुपस्थिति मे समय अंतराल नियमित था।
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इस प्रभाव को नीचे चित्र मे देखें, इस चित्र मे आप इन किरणो के समय अंतराल मे अनियमितता को देख सकते है। यह प्रभाव केवल गुरुत्वाकर्षण तरंग से संभव है। केवल गुरुत्वाकर्षण तरंग ही दो स्थानो के मध्य दूरी को संकुचित या विस्तार दे सकती है, यदि हमने यह प्रभाव देखा है अर्थात हमने गुरुत्वाकर्षण तरंग देख ली है।
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लिगो ने यह प्रभाव 14 सितंबर को देखा था।

इन्टरफ़्रेन्स जांच का संचालन

यदि आप सोच रहे है कि LIGO जैसे उपकरण को इन्टरफ़ेरोमेट्रिक गुरुत्वाकर्षण तरंग जांच उपकरण(interferometric gravitational wave detector) क्यों कहा जाता है, तो हमे तरंगो से संबधित कुछ मूल बाते समझनी होंगी। यदि आप जटिलता मे नही जाना चाहते तो बस इतना समझ लें कि LIGO जैसे उपकरण प्रकाश तरंग के गुणधर्मो मे आये परिवर्तनो से पिछले एनीमेशन वाले चित्र मे लेजर किरणो के आने के अंतराल को मापते है। यदि आप इस जटिलता मे नही जाना चाहते तो इस भाग को छोड़ कर अगले भाग से पढना जारी रखे।
प्रकाश एक तरंग होती है जिसमे चढ़ाव और उतार दोनो होते है जोकि विद्युत-चुंबकिय प्रभाव के अधिकतम और न्यूनतम से संबधित होते है। पिछले एनीमेशन मे हमने प्रकाश किरणो के प्रवाह के रूप मे देखा है लेकिन इसे किसी इन्टरफ़्रेमोमीटर मे प्रकाश तरंग पर पढ़ने वाले प्रभाव को समझने के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है। इस एनिमेशन मे आप हर लाल और हरे बिंदु को प्रकाश तरंग के शिर्ष बिंदु के जैसे मान सकते है।
2 और 2 कण मिलकर चार कण बनते है। लेकिन दो भिन्न तरंगो को जोड़ने पर कुछ भी हो सकता है, कभी वे मिलकर एक बड़ी तरंग बनायेंगी, कभी छोटी तरंग और कभी दोनो एक दूसरे को नष्ट कर कुछ भी नही बनायेंगी। और कभी इससे जटिल परिणाम भी आ सकता है।
जब दो तरंग एक जैसे हो, अर्थात एक तरंग का शिर्ष दूसरी तरंग के शिर्ष के साथ हो तथा दोनो तरंग के निम्न बिंदु भी एक साथ हो तब दोनो मिलकर एक बड़ी तरंग बनाते है। नीचे का चित्र मे दिखाया गया है कि दो तरंगो के भिन्न हिस्से जब किसी प्रकाश जांचक यंत्र मे आते है तो मिलकर कैसे नयी तरंग बनाते है।(समझने के लिये हर तरंग के शिर्ष पर एक बिंदु बना दिया है।)

interferenz-konstruktiv_en BigWave
उपरोक्त चित्र मे हरी तरंग लाल तरंग के साथ मे है। दोनो के शिर्ष तथा ढाल एक साथ है। जब ये दोनो मिलती है तो एक बड़ी तरंग बनाती है जिसे चित्र के नीचले भाग मे नीली तरंग के रूप मे दर्शाया है।
अब यदि किसी एक तरंग का शिर्ष यदी दूसरी तरंग के निम्न के साथ हो तो क्या होगा ? इस स्थिति मे दोनो एक दूसरे को नष्ट कर देंगी और परिणाम मे कुछ नही मिलेगा। नीचे वाला चित्र देखिये।
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ध्यान दे कि गुरुत्वाकर्षण तरंगो की अनुपस्थिति मे यही हो रहा है। लाल और हरी किरण के मध्य अंतराल समान है, एक तरंग का शिर्ष दूसरी तरंग के निम्न के साथ है। इसका परिणाम यह होता है कि प्रकाश जांच यंत्र तक कोई प्रकाश किरण नही पहुंचती है।(यह एक आदर्श स्थिति है।)
जब कोई गुरुत्वाकर्षण तरंग LIGO से प्रवाहित होती है तब स्थिति मे परिवर्तन आता है। इस स्थिति मे दोनो तरंग के शिर्ष के आने के समय अंतराल का पैटर्न बदल जाता है।
इस स्थिति मे नीली रेखा जो कि लाल और हरी तरंग का समुच्च्य है, थोड़ी जटिल होती है। यह एक सीधी रेखा नही होती है। प्रकाश जांच यंत्र तक पहले प्रकाश नही पहुंच रहा था, अब जांच यंत्र तक प्रकाश पहुंच रहा है और इसके पीछे कारण गुरुत्वाकर्षण तरंग है।
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हमने इस लेख मे LIGO जैसे गुरुत्वाकर्षण तरंग जांच यंत्र प्रणाली को बहुत ही सरल रूप मे देखा है, वास्तविकता मे इसमे थोड़ी जटिलताये होती है। यह उपकरण बहुत से अन्य अनवांछित कारको से भी प्रभावित हो सकता है जिसमे उदाहरण के लिये किसी ट्रेन के गुजरने से उत्पन्न कंपन भी हो सकते है। LIGO जैसे उपकरण मे इस तरह के अवांछित कारको से उत्पन्न संकेतो को दबाना भी शामिल है।
LIGO जैसे प्रयोग किसी एक ही संस्था द्वारा संचालित नही किये जा सकते है। इस तरह के प्रयोगो के लिये अंतराष्ट्रीय स्तर के प्रयास होते है और कई देशो की संस्थाये सहयोग करती है।

वास्तविकता मे 14 सितंबर 2015 को क्या हुआ ?

कल्पना किजिये की दो श्याम विवर (black hole)काफ़ी समीप से एक दूसरे की परिक्रमा कर रहे है। दोनो का द्रव्यमान अत्याधिक है और वे एक दूसरे की परिक्रमा अत्याधिक गति (प्रकाश गति के बड़े भाग से) कर रहे है। इस परिक्रमा मे वे गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न करेंगे, जोकि अंतरिक्ष मे लहर उत्पन्न करेंगी और प्रकाशगति से यात्रा करेंगी। यह संभव है कि इन लहरो को LIGO पकड़ पाये।
जैसे ही श्याम विअवर एक दूसरी की परिक्रमा करते हुये गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न करते है उनकी कक्षिय गति मे ह्रास होता है। टेलर और हल्स के न्युट्रान तारो के जैसे इनकी कक्षा छोटी होते जाती है और वे एक दूसरे की परिक्रमा अधिक तीव्र गति से करते है।
उनकी कक्षा की गति मे परिवर्तन उनके द्वारा उत्पन्न तरंगो को प्रभावित करता है। तरंगो की आवृत्ती(तरंग की प्रति सेकंड संख्या) उन दो पिंडो की परिक्रमा गति पर निर्भर करती है। जैसे ही श्याम विवर की कक्षा छोटी होती है, उनकी परिक्रमा गति मे वृद्धि होती है और गुरुत्वाकर्षण तरंगो की आवृत्ती बढ़ते जाती है। श्याम विवर और तेज गति से परिक्रमा कर रहे है, वे और अधिक तरंग उत्पन्न करेंगे, इससे उनकी ऊर्जा मे ह्रास और तेजी से होगा जिससे वे अधिक तरंग उत्पन्न करेंगे।
ये एक घातांकी वृद्धि है। इस प्रभाव से श्याम विवर एक दूसरे के समीप और समीप आते जायेंगे, त्वरित होती गति से एक दूसरे की परिक्रमा करेंगे, और अधिक आवृत्ति वाली अधिक शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्पन्न करेंगे। अंतत: वे एक दूसरे से टकराकर एक दूसरे मे विलिन हो जायेंगे और एक विशाल श्याम विवर का र्निमाण करेंगे।
जब ऐसी घटना होती है तब उसे LIGO गुरुत्वाकर्षण तरंग के हस्ताक्षर के रूप मे देखता है जिसकी आवृत्ति बढ़ते जाती है।
जैसे ही श्याम विवर एक दूसरे मे विलय होने के समीप होते है उनकी गुरुत्वाकर्षण तरंग की आवृत्ति अत्याधिक हो जाती है, उसे पकड़ना आसान होता है। 14 सितंबर 2015 को यही घटना घटी थी जिसे वाशींगटन राज्य के LIGO जे पकड़ा था और लुसियाना राज्य के LIGO ने सात मिलिसेकंड बाद पकड़ा था। दोनो के समय मे यह अंतर भी इन गुरुर्त्वाकर्षण तरंगो के प्रकाशगति से यात्रा करने के कारण आया था।
श्याम विवर का विलय एक प्रलंयकारी अद्भूत घटना है और 14 सितंबर से पहले हम इसे नही जानते थे।
LIGO ने हमारी आंखे खोल दी है।