Friday 11 March 2016

झुलसाने वाला श्याम सूर्य


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जी हां यह हमारा सूर्य ही है !
झुलसाने वाला तो ठीक है लेकिन श्याम सूर्य ? ये क्या बात हुयी ?
किसी सामान्य दिन सूर्य यह झुलसाने देने वाला अत्यंत गर्म गैस का गोला ही रहता है। लेकिन कभी कभी अचानक सूर्य पर कुछ अत्यंत चुम्ब्कीय क्षेत्रो का निर्माण होता है जिसके कारण कुछ धुंधले ‘सूर्य धब्बो’ और चमकिले ‘सक्रिय क्षेत्रो’ का निर्माण होता है। ”सूर्य धब्बे’ का तापमान अन्य क्षेत्रो से कम होता है।
ये सक्रिय क्षेत्र गैस को चुंबकिय छल्लो के रूप मे प्रवाहित करते है। सामान्यतः यह गैस वापिस सुर्य पर आ जाती है लेकिन कभी कभी यह ‘सूर्य कोरोना(Corona) या सौर हवा(Solar Wind) के रूप मे हमारे अंतरिक्ष मे आ जाती है। यह तस्वीर पराबैगनी प्रकाश के तीन रंगो मे ली गयी है। सुर्य के सक्रिय क्षेत्रो से ही पराबैंगनी किरणे निकलती है इसलिये तस्वीर का अधिकतर हिस्सा श्याम (अंधेरा) दिखायी दे रहा है। तस्वीर के रंगीन क्षेत्र जो ज्यादा चमक रहे है वह ‘सूर्य के सबसे ज्यादा अशांत क्षेत्र हैं। ‘सूर्य की सतह हमेशा अशांत रहती है लेकिन उसने निकलने वाला प्रकाश पिछले ५ बिलियन वर्ष से हमेशा एक सा ही रहा है इसलिये पृथ्वी पर जिवन संभव हो पाया है।

चांद पर दाग ?


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चांद पर दाग ? चांद पर दाग ही नही गड्डे भी है, अपोलो १७ द्वारा १९७२ मे ली गयी इस तस्वीर मे कोपरनिकस क्रेटर दिखायी दे रहा है। इस क्रेटर को आप साधारण बायनाकुलर से देख सकते है। यह चांद की धरती की ओर की सतह मे मध्य से उत्तर पूर्व दिशा मे है।
यह क्रेटर ज्यादा पूराना नही है, अन्य क्रेटर की तुलना मे नया है। यह लगभग १ बीलीयन साल पहले किसी उल्का के चंद्रमा से टकराव से बना है।
चण्द्रमा पर जो अंतिम मानव युक्त यान गया था अपोलो १७ उसने यह चित्र खिंचा था, अब चद्रमा पर फिर से जाने की उम्मीदे जागृत हुयी है क्योंकि इसके ध्रुवो पर पानी की बर्फ का पता चला है।

काल-अतंराल(Space-Time) की अवधारणा

श्याम विवर की गहराईयो मे जाने से पहले भौतिकी और सापेक्षता वाद के कुछ मूलभूत सिद्धांतो की चर्चा कर ली जाये !
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त्री-आयामी
त्री-आयामी

काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा

सामान्यतः अंतराल को तीन अक्ष में मापा जाता है। सरल शब्दों में लंबाई, चौड़ाई और गहराई, गणितिय शब्दों में x अक्ष, y अक्ष और z अक्ष। यदि इसमें एक अक्ष समय को चौथे अक्ष के रूप में जोड़ दे तब यह काल-अंतराल का गंणितिय माँडल बन जाता है।
त्री-आयामी भौतिकी में काल-अंतराल का अर्थ है काल और अंतराल संयुक्त गणितिय माडल। काल और अंतराल को एक साथ लेकर भौतिकी के अनेकों गूढ़ रहस्यों को समझाया जा सका है जिसमे भौतिक ब्रह्मांड विज्ञान तथा क्वांटम भौतिकी शामिल है।
सामान्य यांत्रिकी में काल-अंतराल की बजाय अंतराल का प्रयोग किया जाता रहा है, क्योंकि काल अंतराल के तीन अक्ष में यांत्रिकी गति से स्वतंत्र है। लेकिन सापेक्षता वाद के सिद्धांत के अनुसार काल को अंतराल के तीन अक्ष से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि , काल किसी पिंड की प्रकाश गति के सापेक्ष गति पर निर्भर करता है।
काल-अंतराल की अवधारणा ने बहुआयामी सिद्धांतो(higher-dimensional theories) की अवधारणा को जन्म दिया है। ब्रह्मांड के समझने के लिये कितने आयामों की आवश्यकता होगी यह एक यक्ष प्रश्न है। स्ट्रींग सिद्धांत जहां 10 से 26 आयामों का अनुमान करता है वही M सिद्धांत 11 आयामों(10 आकाशीय(spatial) और 1 कल्पित(temporal)) का अनुमान लगाता है। लेकिन 4 से ज्यादा आयामों का असर केवल परमाणु के स्तर पर ही होगा।

काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा का इतिहास

काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा आईंस्टाईन के 1905 के विशेष सापेक्षता वाद के सिद्धांत के फलस्वरूप आयी है। 1908 में आईंस्टाईन के एक शिक्षक गणितज्ञ हर्मन मिण्कोवस्की आईंस्टाईन के कार्य को विस्तृत करते हुये काल-अंतराल(Space-Time) की अवधारणा को जन्म दिया था। ‘मिंकोवस्की अंतराल’ की धारणा यह काल और अंतराल को एकीकृत संपूर्ण विशेष सापेक्षता वाद के दो मूलभूत आयाम के रूप में देखे जाने का प्रथम प्रयास था।’मिंकोवस्की अंतराल’ की धारणा यह विशेष सापेक्षता वाद को ज्यामितीय दृष्टि से देखे जाने की ओर एक कदम था, सामान्य सापेक्षता वाद में काल अंतराल का ज्यामितीय दृष्टिकोण काफी महत्वपूर्ण है।

मूलभूत सिद्धांत

काल अंतराल वह स्थान है जहां हर भौतिकी घटना होती है : उदाहरण के लिये ग्रह का सूर्य की परिक्रमा एक विशेष प्रकार के काल अंतराल में होती है या किसी घूर्णन करते तारे से प्रकाश का उत्सर्जन किसी अन्य काल-अंतराल में होना समझा जा सकता है। काल-अंतराल के मूलभूत तत्व घटनायें (Events) है। किसी दिये गये काल-अंतराल में कोई घटना(Event), एक विशेष समय पर एक विशेष स्थिति है। इन घटनाओ के उदाहरण किसी तारे का विस्फोट या ड्रम वाद्ययंत्र पर किया गया कोई प्रहार है।
पृथ्वी की कक्षा- काल अंतराल के सापेक्ष
पृथ्वी की कक्षा- काल अंतराल के सापेक्ष
काल-अंतराल यह किसी निरीक्षक के सापेक्ष नहीं होता। लेकिन भौतिकी प्रक्रिया को समझने के लिये निरीक्षक कोई विशेष आयामों का प्रयोग करता है। किसी आयामी व्यवस्था में किसी घटना को चार पूर्ण   अंकों(x,y,z,t) से निर्देशित किया जाता है। प्रकाश किरण यह प्रकाश कण की गति का पथ प्रदर्शित करती है या दूसरे शब्दों में प्रकाश किरण यह काल-अंतराल में होनेवाली घटना है और प्रकाश कण का इतिहास प्रदर्शित करती है। प्रकाश किरण को प्रकाश कण की विश्व रेखा कहा जा सकता है। अंतराल में पृथ्वी की कक्षा दीर्घ वृत्त(Ellpise) के जैसी है लेकिन काल-अंतराल में पृथ्वी की विश्व रेखा हेलि़क्स के जैसी है।
पृथ्वी की कक्षा- काल अंतराल के सापेक्ष सरल शब्दों में यदि हम x,y,z इन तीन आयामों के प्रयोग से किसी भी पिंड की स्थिती प्रदर्शित कर सकते है। एक ही प्रतल में दो आयाम x,y से भी हम किसी पिंड की स्थिती प्रदर्शित हो सकती है। एक प्रतल में x,y के प्रयोग से, पृथ्वी की कक्षा एक दीर्घ वृत्त के जैसे प्रतीत होती है। अब यदि किसी समय विशेष पर पृथ्वी की स्थिती प्रदर्शित करना हो तो हमें समय t आयाम x,y के लंब प्रदर्शित करना होगा। इस तरह से पृथ्वी की कक्षा एक हेलिक्स या किसी स्प्रींग के जैसे प्रतीत होगी। सरलता के लिये हमे z आयाम जो गहरायी प्रदर्शित करता है छोड़ दिया है।
काल और समय के एकीकरण में दूरी को समय की इकाई में प्रदर्शित किया जाता है, दूरी को प्रकाश गति से विभाजित कर समय प्राप्त किया जाता है।

काल-अंतराल अन्तर(Space-time intervals)

काल-अंतराल यह दूरी की एक नयी संकल्पना को जन्म देता है। सामान्य अंतराल में दूरी हमेशा धनात्मक होनी चाहिये लेकिन काल अंतराल में किसी दो घटना(Events) के बीच की दूरी(भौतिकी में अंतर(Interval)) वास्तविक , शून्य या काल्पनिक(imaginary) हो सकती है। ‘काल-अंतराल-अन्तर’ एक नयी दूरी को परिभाषित करता है जिसे हम कार्टेशियन निर्देशांको मे x,y,z,t मे व्यक्त करते है।
s2=r2-c2t2
s=काल-अंतराल-अंतर(Space Time Interval) c=प्रकाश गति
r2=x2+y2+z2
काल-अंतराल में किसी घटना युग्म (pair of event) को तीन अलग अलग प्रकार में विभाजित किया जा सकता है
  • 1.समय के जैसे(Time Like)- दोनो घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लिये जरूरत से ज्यादा समय व्यतित होना; s2 <0)
  • 2.प्रकाश के जैसे(Light Like)-(दोनों घटनाओ के मध्य अंतराल और समय समान है;s2=0)
  • 3.अंतराल के जैसे (दोनों घटनाओ के मध्य किसी प्रतिक्रिया के लिये जरूरी समय से कम समय का गुजरना; s2>0) घटनाये जिनका काल-अंतराल-अंतर ऋणात्मक है, एक दूसरे के भूतकाल और भविष्य में है।

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केन्द्र की मरम्मत

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केन्द्र की मरम्मत
अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन(International Space Station-ISS)पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली मानव निर्मित सबसे बडी वस्तु होगी। यह केन्द्र इतना बडा है कि इसे एक बार मे प्रक्षेपित नही किया जा सकता। इसे टुकडो टुकडो मे बनाया जा रहा है। इन टुकडो को संयुक्त राज्य अमरिका के अंतरिक्ष शटल और रुस के सोयुज यानो से ले जाकर अंतरिक्ष मे जोडा जाता है। इस केन्द्र के आधार और आकार के लिये ट्रस(Truss) की आवश्यकता होती है जो लगभग १५ मिटर लंबे और १०,००० किलोग्राम वजन के होते है। इस तस्वीर मे अंतरिक्ष यात्री राबर्ट एल करबीम (अमरीका)[Robert L. Curbeam (USA)] और क्रिस्टर फुगलसंग (स्वीडन)[Fuglesang (Sweden)] एक नये ट्रस को अंतरिक्ष केन्द्र मे लगा रहे है। साथ मे उन्होने बिजली केन्द्र[power grid] की मरम्मत भी की।

सी फर्ट आकाशगंगा NGC 7742


नही ये आपके नाश्ते के लिये तैयार किया गया अंडे का आमलेट नही है !
यह एक विशाल आकाशगंगा है जिसका नाम सीफर्ट( Seyfert Galaxy NGC 7742) है। निले रंग के तारो के जन्मस्थली(Star Forming Regions) और धुंधली घुमावदार बांहो से घीरा हुआ पिले रंग का आकाशगंगा केन्द्र लगभग 3000 प्रकाश वर्ष चौडा है। यह पृथ्वी से लगभग 720 लाख प्रकाशवर्ष दूर भद्रक  तारामंडल(constellation Pegasus) मे है। यह एक घुमावदार आकाशगंगा है जिसका केन्द्र काफी चमकदार है, यह चमक कुछ ही दिनो या महिनो मे बदल सकती है। इस तरह की आकाशगंगाओ के केन्द्र मे काफी बडे श्याम विवर (massive black holes) होने की संभावना रहती है। यह चित्र हब्बल दूरबीन से लिया गया है।

Thursday 10 March 2016

बिल्ली की आंखे


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तिन हजार प्रकाश वर्ष दूर ,एक मरते हुये तारे मे विस्फोट हुआ और गैस के चमकीले बादल तारे से बाहर फेंके गये। हब्बल दूरबीन से लिये गये बिल्ली की आंख के आकार की इस निहारीका(Cat’s Eye Nebula) के चित्र से इस जटिल ग्रहीय निहारीका(planetary nebulae) के बारे मे ज्यादा सूचना मिली है। इस निहारीका का विवरण इतना जटिल है कि विज्ञानीयो को इसके केन्द्र मे स्थित चमकिले पिंड पर युग्म तारे(Binary Star)होने का शक हो रहा है।
ग्रहीय निहारीका छोटी दूरबीन से गोल और एक  एक बहुत बडे ग्रह के जैसे दिखायी देती है लेकिन ग्रहीय निहारीका के लिये ग्रह शब्द का प्रयोग गलत है। क्योंकि एक ग्रहीय निहारीका तारो से बनी होती है गैस और धूल जो ढके हुये होते है। यह गैस और धुल इन्ही तारो के द्वारा उत्सर्जित होते है।

‘चील निहारिका’ मे सितारो का जन्म


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सितारो का जन्म कहां होता है ? सितारो की जन्मस्थली को EGGs(evaporating gaseous globules) कहा जाता है। ये EGGs कुछ और नही सुदूर अंतरिक्ष मे हायड्रोजन गैस के संघनित क्षेत्र होते है ,जो गुरुत्वाकर्षण के कारण घनीभूत होकर सितारो मे तब्दिल हो जाते है। यह चित्र चील के आकार की एक निहारिका (Eagle Nebula (M16))का है। गर्म और चमकीले तारो से आनेवाला प्रकाश इस क्षेत्र(Eggs) को और गर्म करता है जिससे नये तारो का जन्म होता है। यह चित्र हब्बल दूरबीन से लीया गया है।
निहारिका (Nebula)-> अंतरिक्ष मे धूल, गैस और प्लाज्मा का बादल।

शनी की छाया मे


शनी की छाया मे अनेको चमत्कारी घट्नाये होती है। कासीनी उपग्रह ने यह चित्र लिया है। सुर्य इस समय शनी के पिछे है!
कासीनी ने पहली बार शनी की रात का चित्र लिया। चित्र मे जो प्रकाश दिखायी दे रहा है वह उसके शाही वलयो द्वारा परावर्तित प्रकाश है। जब शनी के दिन वाली सतह से चित्र लेते है तब उसके वलय धुंधले दिखायी देते है लेकिन रात वाली सतह से वह चमकिले दिखायी देते है, इतने ज्यादा कि इससे नये वलय भी खोज निकाले गये हैं। ये नये वलय इस चित्र मे दिखायी नही दे रहे है।
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चित्र मे एक  धुंधला निला बिन्दू  (सबसे बाहरी चमकिले वलय के उपर) दिखायी दे रहा है जो कुछ और नही हमारे पृथ्वी है।

Wednesday 9 March 2016

शनी की नजर से !


इस चित्र  मे एक निले रंग का बिंदू क्या है ?
पृथ्वी।
कासीनी उपग्रह ने शनी ग्रह के पास से गुजरते हुये यह चित्र लिया था !
उपर बांये ये कोने मे इस बिन्दू को बडा कर के दिखाया गया है। ध्यान से देखने पर पृथ्वी का चन्द्रमा भी दिखायी दे रहा है। पृथ्वी की सतह का 70% भाग पानी से घीरा होने से पृथ्वी का रंग निला दिखायी देता है !

एक सुंदर ग्रह : शनी


शनी बाकी ग्रहो से हटकर लेकिन एक सुंदर ग्रह है। यह हमारे सौर मण्डल मे गुरु के बाद दूसरा सबसे बडा ग्रह है। यह रात मे आसानी से देखा जा सकता है। लेकिन इसके सुंदर वलय सिर्फ दूरबीन से देखे जा सकते है। यह ग्रह मुख्यतः हायड्रोजन और हिलीयम से बना है। शनी के वलय बर्फ के टुकडो से बने है जिनका आकार एक छोटे सिक्के से लेकर कार के आकार तक है। यह चित्र हब्बल दूरबीन द्वारा लीया गया है।

हमारे सबसे नजदिक का तारा: प्राक्सीमा सेंटारी


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हमारे सबसे नज़दीक का तारा कौन सा है ? सूर्य ! लेकिन सूर्य के सबसे नज़दीक का तारा ?
यह है प्राक्सीमा सेंटारी, जो की अल्फा सेंटारी तारा समुह के तीन तारो मे से एक है और हमारे सबसे नज़दीक है। यह तस्वीर के केन्द्र मे दिखायी दे रहा छोटा लाल तारा है, जो काफी धुँधला है। इसे सिर्फ दूरबीन से देखा जा सकता है। इसकी खोज 1995 मे हुयी थी। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी के हर तरह के तारे इस तस्वीर मे दिखायी दे रहे है। अल्फा सेंटारी तारा समूह का सबसे चमकीला तारा अल्फा सेंटारी हमारे सूर्य के जैसा ही है, और आकाश मे दिखायी देने वाले तारो मे तीसरा सबसे ज्यादा चमकीला तारा है।

पृथ्वी


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अपोलो १७ से ली गयी तस्वीर  
पृथ्वी पर आपका स्वागत है, जो सुर्य नामक तारे का तिसरा ग्रह है। पृथ्वी का आकार मोसंबी के जैसा है और मुख्यत: पत्थर(सीलीका) से बना हुआ है। पृथ्वी की सतह ७०% से ज्यादा जल से आच्छादित है। इस ग्रह का वातावरण मुख्यतः आक्सीजन और नायट्रोजन से बना हुआ है। पृथ्वी का एक चन्द्रमा है जिसका व्यास पृथ्वी के व्यास का एक चौथाई है। पृथ्वी की सतह से उसका आकार सुर्य के आकार के समान ही दिखाई देता है। जल की प्रचुरता के कारण पृथ्वी मे जिवन पाया जाता है, जिसमे मनुष्य और डालफिन जैसे बुद्धीमान जीव भी शामील है। पृथ्वी पर आपकी यात्रा सुखद रहे !

Tuesday 8 March 2016

डाप्लर प्रभाव तथा लाल विचलन

डाप्लर प्रभाव
डापलर प्रभाव यह किसी तरंग(Wave) की तरंगदैधर्य(wavelength) और आवृत्ती(frequency) मे आया वह परिवर्तन है जिसे उस तरंग के श्रोत के पास आते या दूर जाते हुये निरीक्षक द्वारा महसूस किया जाता है। यह प्रभाव आप किसी आप अपने निकट पहुंचते वाहन की ध्वनी और दूर जाते वाहन की ध्वनी मे आ रहे परिवर्तनो से महसूस कर सकते है।
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इसे वैज्ञानिक रूप से देंखे तो होता यह है कि आप से दूर जाते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य(wavelength)बढ जाती है, और पास आते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य कम हो जाती है। दूसरे शब्दो मे जब तरंगदैधर्य(wavelength) बढ जाती है तब आवृत्ती कम हो जाती है और जब तरंगदैधर्य(wavelength) कम हो जाती है आवृत्ती बढ जाती है।
एक आसान उदाहरण लेते है, मान लिजीये एक खिलाडी दूसरे खिलाडी की ओर हर सेकंड एक गेंद फेंक रहा है। दूसरा खिलाडी यदि अपनी जगह पर ही खडा हो तो वह हर सेकंड एक गेंद प्राप्त करेगा। यदि गेंद झेलने वाला खिलाडी फेंकने वाले खिलाडी से दूर जाये तो उसे प्राप्त होने वाली गेंदो के अंतराल मे बढोत्तरी होगी यानी उसे हर सेकंड प्राप्त होने वाली गेंदो मे कमी आयेगी। विज्ञान की भाषा मे गेंद प्राप्त करने की आवृत्ती (frequency) मे कमी आयेगी। यदि गेंद झेलने वाला खिलाडी फेंकने वाले खिलाडी के पास आये तो गेंद प्राप्त करने की आवृत्ती मे बढोत्तरी होगी। ध्यान दिजिये श्रोत की गेंद फेंकने की आवृत्ती मे कोई बदलाव नही आ रहा है
यही प्रभाव कीसी भी तरंग (ध्वनी/प्रकाश/क्ष किरण/गामा किरण) पर होता है। तरंग श्रोत से दूर जाने पर उसकी आवृत्ती मे कमी आती है अर्थात तरंगदैधर्य मे बढोत्तरी होते है। तरंग श्रोत के पास आने पर उसकी आवृत्ती मे बढोत्तरी होती है अर्थात तरंगदैधर्य मे कमी आती है।
लाल विचलन (Red Shift)
लाल विचलन
लाल विचलन यह वह प्रक्रिया जिसमे किसी पिंड से उत्सर्जीत प्रकाश वर्णक्रम मे लाल रंग की ओर विचलीत होता है। वैज्ञानिक तौर से यह उत्सर्जीत प्रकाश किरण की तुलना मे निरिक्षित प्रकाश किरण के तरंग दैधर्य मे हुयी बढोत्तरी या उसकी आवृती मे कमी है। दूसरे शब्दो मे प्रकाश श्रोत से प्रकाश के पहुंचने तक प्रकाश किरणो के तरंग दैधर्य मे हुयी बढोत्तरी या उसकी आवृती मे कमी होती है।
प्रकाश किरणो मे लाल रंग की प्रकाश किरणो का तरंग दैधर्य सबसे ज्यादा होता है, इसलिये किसी भी रंग की किरण का वर्णक्रम मे लाल रंग की ओर विचलन ‘लाल विचलन’ कहलाता है। यह प्रक्रिया अप्रकाशिय किरणो (गामा किरणे, क्ष किरणे, पराबैगनी किरणे) के लिये भी लागु होती है और इसी नाम से जानी जाती है। किरणे जिनका तरंग दैधर्य लाल रंग की किरणो से भी ज्यादा होता है(अवरक्त किरणे(infra red), सुक्षम तरंग तरंगे(Microwave), रेडीयो तरंगे) यह विचलन लाल रंग से दूर होता है।
सामान्यतः लाल विचलन उस समय होता है जब प्रकाश श्रोत प्रकाश निरिक्षक से दूर जाता है, बिलकुल ध्वनी किरणो के डाप्लर सिद्धांत की तरह ! यह सिद्धांत खगोल शास्त्र मे आकाशिय पिंडो की गति और दूरी को मापने के लिये उपयोग मे लाया जाता है।

महाविस्फोट का सिद्धांत (The Big Bang Theory)

किसी बादलों और चांद रहित रात में यदि आसमान को देखा जाये तब हम पायेंगे कि आसमान में सबसे ज्यादा चमकीले पिंड शुक्र, मंगल, गुरु, और शनि जैसे ग्रह हैं। इसके अलावा आसमान में असंख्य तारे भी दिखाई देते है जो कि हमारे सूर्य जैसे ही है लेकिन हम से काफी दूर हैं। हमारे सबसे नजदीक का सितारा प्राक्सीमा सेंटारी हम से चार प्रकाश वर्ष (१०) दूर है। हमारी आँखों से दिखाई देने वाले अधिकतर तारे कुछ सौ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। तुलना के लिये बता दें कि सूर्य हम से केवल आठ प्रकाश मिनट और चांद १४ प्रकाश सेकंड की दूरी पर है। हमे दिखाई देने वाले अधिकतर तारे एक लंबे पट्टे के रूप में दिखाई देते है, जिसे हम आकाशगंगा कहते है। जो कि वास्तविकता में चित्र में दिखाये अनुसार पेचदार (Spiral) है। इस से पता चलता है कि ब्रह्मांड कितना विराट है ! यह ब्रह्मांड अस्तित्व में कैसे आया ?
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महा विस्फोट के बाद ब्रह्मांड का विस्तार
महा विस्फोट के बाद ब्रह्मांड का विस्तार
महा विस्फोट का सिद्धांत ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में सबसे ज्यादा मान्य है। यह सिद्धांत व्याख्या करता है कि कैसे आज से लगभग १३.७ खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिन्दु से हुयी थी।
हब्बल के द्वारा किया गया निरीक्षण और ब्रह्मांडीय सिद्धांत(२)(Cosmological Principle)महा विस्फोट के सिद्धांत का मूल है।
१९१९ में ह्ब्बल ने लाल विचलन(१) (Red Shift) के सिद्धांत के आधार पर पाया था कि ब्रह्मांड फैल रहा है, ब्रह्मांड की आकाशगंगाये तेजी से एक दूसरे से दूर जा रही है। इस सिद्धांत के अनुसार भूतकाल में आकाशगंगाये एक दूसरे के और पास रही होंगी और, ज्यादा भूतकाल मे जाने पर यह एक दूसरे के अत्यधिक पास रही होंगी। इन निरीक्षण से यह निष्कर्ष निकलता है कि ब्रम्हांड ने एक ऐसी स्थिती से जन्म लिया है जिसमे ब्रह्मांड का सारा पदार्थ और ऊर्जा अत्यंत गर्म तापमान और घनत्व पर एक ही स्थान पर था। इस स्थिती को गुरुत्विय  ‘सिन्गुलरीटी ‘ (Gravitational Singularity) कहते है। महा-विस्फोट यह शब्द उस समय की ओर संकेत करता है जब निरीक्षित ब्रह्मांड का विस्तार प्रारंभ हुआ था। यह समय गणना करने पर आज से १३.७ खरब वर्ष पूर्व(१.३७ x १०१०) पाया गया है। इस सिद्धांत की सहायता से जार्ज गैमो ने १९४८ में ब्रह्मांडीय  सूक्ष्म तरंग विकिरण(cosmic microwave background radiation-CMB)(३) की भविष्यवाणी की थी ,जिसे १९६० में खोज लीया गया था। इस खोज ने महा-विस्फोट के सिद्धांत को एक ठोस आधार प्रदान किया।
महा-विस्फोट का सिद्धांत अनुमान और निरीक्षण के आधार पर रचा गया है। खगोल शास्त्रियों का निरीक्षण था कि अधिकतर निहारिकायें(nebulae)(४) पृथ्वी से दूर जा रही है। उन्हें इसके खगोल शास्त्र पर प्रभाव और इसके कारण के बारे में ज्ञात नहीं था। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था की ये निहारिकायें हमारी अपनी आकाशगंगा के बाहर है। यह क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है एक रहस्य था।
१९२७ मे जार्जस लेमिट्र ने आईन्साटाइन के सापेक्षता के सिद्धांत(Theory of General Relativity) से आगे जाते हुये फ़्रीडमैन-लेमिट्र-राबर्टसन-वाकर समीकरण (Friedmann-Lemaître-Robertson-Walker equations) बनाये। लेमिट्र के अनुसार ब्रह्मांड  की उत्पत्ति एक प्राथमिक परमाणु से हुयी है, इसी प्रतिपादन को आज हम महा-विस्फोट का सिद्धांत कहते हैं। लेकिन उस समय इस विचार को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया।
इसके पहले १९२५ मे हब्बल ने पाया था कि ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा अकेली नहीं है, ऐसी अनेकों आकाशगंगाये है। जिनके बीच में विशालकाय अंतराल है। इसे प्रमाणित करने के लिये उसे इन आकाशगंगाओं के पृथ्वी से दूरी गणना करनी थी। लेकिन ये आकाशगंगाये हमें दिखायी देने वाले तारों की तुलना में काफी दूर थी। इस दूरी की गणना के लिये हब्बल ने अप्रत्यक्ष तरीका प्रयोग में लाया। किसी भी तारे की चमक(brightness) दो कारकों पर निर्भर करती है, वह कितना दीप्ति(luminosity) का प्रकाश उत्सर्जित करता है और कितनी दूरी पर स्थित है। हम पास के तारों की चमक और दूरी की ज्ञात हो तब उनकी दीप्ति की गणना की जा सकती है| उसी तरह तारे की दीप्ति ज्ञात होने पर उसकी चमक का निरीक्षण से प्राप्त मान का प्रयोग कर दूरी ज्ञात की जा सकती है। इस तरह से हब्ब्ल ने नौ विभिन्न आकाशगंगाओं की दूरी का गणना की ।(११)
१९२९ मे हब्बल जब इन्ही आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर दूरी की गणना कर रहा था। वह हर तारे से उत्सर्जित प्रकाश का वर्णक्रम और दूरी का एक सूचीपत्र बना रहा था। उस समय तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड मे आकाशगंगाये बिना किसी विशिष्ट क्रम के ऐसे ही अनियमित रूप से विचरण कर रही है। उसका अनुमान था कि इस सूची पत्र में उसे समान मात्रा में लाल विचलन(१) और बैगनी विचलन मिलेगा। लेकिन नतीजे अप्रत्याशित थे। उसे लगभग सभी आकाशगंगाओ से लाल विचलन ही मिला। इसका अर्थ यह था कि सभी आकाशगंगाये हम से दूर जा रही है। सबसे ज्यादा आश्चर्य जनक खोज यह थी कि यह लाल विचलन अनियमित नहीं था ,यह विचलन उस आकाशगंगा की गति के समानुपाती था। इसका अर्थ यह था कि ब्रह्मांड स्थिर नहीं है, आकाशगंगाओं के बिच की दूरी बढ़ते जा रही है। इस प्रयोग ने लेमिट्र के सिद्धांत को निरीक्षण से प्रायोगिक आधार दिया था। यह निरीक्षण आज हब्बल के नियम के रूप मे जाना जाता है।
हब्बल का नियम और ब्रह्मांडीय सिद्धांत(२)ने यह बताया कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। यह सिद्धांत आईन्स्टाईन के अनंत और स्थैतिक ब्रह्मांड के विपरीत था।
इस सिद्धांत ने दो विरोधाभाषी संभावनाओ को हवा दी थी। पहली संभावना थी, लेमिट्र का महा-विस्फोट सिद्धांत जिसे जार्ज गैमो ने समर्थन और विस्तार दिया था। दूसरी संभावना थी, फ़्रेड होयेल का स्थायी स्थिती माडल (Fred Hoyle’s steady state model), जिसमे दूर होती आकाशगंगाओं के बिच में हमेशा नये पदार्थों की उत्पत्ति  का प्रतिपादन था। दूसरे शब्दों में आकाशगंगाये एक दूसरे से दूर जाने पर जो खाली स्थान बनता है वहां पर नये पदार्थ का निर्माण होता है। इस संभावना के अनुसार मोटे तौर पर ब्रह्मांड हर समय एक जैसा ही रहा है और रहेगा। होयेल ही वह व्यक्ति थे जिन्होने लेमिट्र का महाविस्फोट सिद्धांत का मजाक उड़ाते हुये “बिग बैंग आईडीया” का नाम दिया था।
काफी समय तक इन दोनो माड्लो के बिच मे वैज्ञानिक विभाजित रहे। लेकिन धीरे धीरे वैज्ञानिक प्रयोगो और निरिक्षणो से महाविस्फोट के सिद्धांत को समर्थन बढता गया। १९६५ के बाद ब्रम्हांडिय सुक्षम तरंग विकिरण (Cosmic Microwave Radiation) की खोज के बाद इस सिद्धांत को सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत का दर्जा मिल गया। आज की स्थिती मे खगोल विज्ञान का हर नियम इसी सिद्धांत पर आधारित है और इसी सिद्धांत का विस्तार है।
महा-विस्फोट के बाद शुरुवाती ब्रह्मांड समांगी और सावर्तिक रूप से अत्यधिक घनत्व का और ऊर्जा से भरा हुआ था. उस समय दबाव और तापमान भी अत्यधिक था। यह धीर धीरे फैलता गया और ठंडा होता गया, यह प्रक्रिया कुछ वैसी थी जैसे भाप का धीरे धीरे ठंडा हो कर बर्फ मे बदलना, अंतर इतना ही है कि यह प्रक्रिया मूलभूत कणों(इलेक्ट्रान, प्रोटान, फोटान इत्यादि) से संबंधित है।
प्लैंक काल(५) के १० -३५ सेकंड के बाद एक संक्रमण के द्वारा ब्रह्मांड की काफी तिव्र गति से वृद्धी(exponential growth) हुयी। इस काल को अंतरिक्षीय स्फीति(cosmic inflation) काल कहा जाता है। इस स्फीति के समाप्त होने के पश्चात, ब्रह्मांड का पदार्थ एक क्वार्क-ग्लूवान प्लाज्मा की अवस्था में था, जिसमे सारे कण गति करते रहते हैं। जैसे जैसे ब्रह्मांड का आकार बढ़ने लगा, तापमान कम होने लगा। एक निश्चित तापमान पर जिसे हम बायरोजिनेसीस संक्रमण कहते है, ग्लुकान और क्वार्क ने मिलकर बायरान (प्रोटान और न्युट्रान) बनाये। इस संक्रमण के दौरान किसी अज्ञात कारण से कण और प्रति कण(पदार्थ और प्रति पदार्थ) की संख्या मे अंतर आ गया। तापमान के और कम होने पर भौतिकी के नियम और मूलभूत कण आज के रूप में अस्तित्व में आये। बाद में प्रोटान और न्युट्रान ने मिलकर ड्युटेरीयम और हिलीयम के केंद्रक बनाये, इस प्रक्रिया को महाविस्फोट आणविक संश्लेषण(Big Bang nucleosynthesis.) कहते है। जैसे जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, पदार्थ की गति कम होती गयी, और पदार्थ की उर्जा गुरुत्वाकर्षण में तबदील होकर विकिरण की ऊर्जा से अधिक हो गयी। इसके ३००,००० वर्ष पश्चात इलेक्ट्रान और केण्द्रक ने मिलकर परमाणु (अधिकतर हायड्रोजन) बनाये; इस प्रक्रिया में विकिरण पदार्थ से अलग हो गया । यह विकिरण ब्रह्मांड में अभी तक ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण (cosmic microwave radiation)के रूप में बिखरा पड़ा है।
कालांतर में थोड़े अधिक घनत्व वाले क्षेत्र गुरुत्वाकर्षण के द्वारा और ज्यादा घनत्व वाले क्षेत्र मे बदल गये। महा-विस्फोट से पदार्थ एक दूसरे से दूर जा रहा था वही गुरुत्वाकर्षण इन्हें पास खिंच रहा था। जहां पर पदार्थ का घनत्व ज्यादा था वहां पर गुरुत्वाकर्षण बल ब्रह्मांड के प्रसार के लिये कारणीभूत बल से ज्यादा हो गया। गुरुत्वाकर्षण बल की अधिकता से पदार्थ एक जगह इकठ्ठा होकर विभिन्न खगोलीय पिंडों का निर्माण करने लगा। इस तरह गैसो के बादल, तारों, आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय पिंडों का जन्म हुआ ,जिन्हें आज हम देख सकते है।
आकाशीय पिंडों के जन्म की इस प्रक्रिया की और विस्तृत जानकारी पदार्थ की मात्रा और प्रकार पर निर्भर करती है। पदार्थ के तीन संभव प्रकार है शीतल श्याम पदार्थ (cold dark matter)(६), तप्त श्याम पदार्थ(hot dark matter) तथा बायरोनिक पदार्थ। खगोलीय गणना के अनुसार शीतल श्याम पदार्थ की मात्रा सबसे ज्यादा(लगभग ८०%) है। मानव द्वारा निरीक्षित लगभग सभी आकाशीय पिंड बायरोनिक पदार्थ(८)से बने है।
श्याम पदार्थ की तरह आज का ब्रह्मांड एक रहस्यमय प्रकार की ऊर्जा ,श्याम ऊर्जा (dark energy)(६) के वर्चस्व में है। लगभग ब्रह्मांड की कुल ऊर्जा का ७०% भाग इसी ऊर्जा का है। यही ऊर्जा ब्रह्मांड के विस्तार की गति को एक सरल रैखिक गति-अंतर समीकरण से विचलित कर रही है, यह गति अपेक्षित गति से कहीं ज्यादा है। श्याम ऊर्जा अपने सरल रूप में आईन्स्टाईन के समीकरणों में एक ब्रह्मांडीय स्थिरांक (cosmological constant) है । लेकिन इसके बारे में हम जितना जानते है उससे कहीं ज्यादा नहीं जानते है। दूसरे शब्दों में भौतिकी में मानव को जितने बल(९) ज्ञात है वे सारे बल और भौतिकी के नियम ब्रह्मांड के विस्तार की गति की व्याख्या नहीं कर पा रहे है। इसे व्याख्या करने क एक काल्पनिक बल का सहारा लिया गया है जिसे श्याम ऊर्जा कहा जाता है।
यह सभी निरीक्षण लैम्डा सी डी एम माडेल के अंतर्गत आते है, जो महा विस्फोट के सिद्धांत की गणीतिय रूप से छह पैमानों पर व्याख्या करता है। रहस्य उस समय गहरा जाता है जब हम शुरू वात की अवस्था की ओर देखते है, इस समय पदार्थ के कण अत्यधिक ऊर्जा के साथ थे, इस अवस्था को किसी भी प्रयोगशाला में प्राप्त नहीं किया जा सकता है। ब्रह्मांड के पहले १० -३३ सेकंड की व्याख्या करने के लिये हमारे पास कोई भी गणितिय या भौतिकिय माडेल नहीं है, जिस अवस्था का अनुमान ब्रहृत एकीकृत सिद्धांत(Grand Unification Theory)(७)करता है। पहली नजर से आईन्स्टाईन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत एकगुरुत्विय बिन्दु (gravitational singularity) का अनुमान करता है जिसका घनत्व अपरिमित (infinite) है।. इस रहस्य को सुलझाने के लिये क्वांटम गुरुत्व के सिद्धांत की आवश्यकता है। इस काल (ब्रह्मांड के पहले १० -३३ सेकंड) को समझ पाना विश्व के सबसे महान अनसुलझे भौतिकिय रहस्यों में से एक है।
मुझे लग रहा है इस लेख ने महा विस्फोट के सिद्धांत की गुत्थी को कुछ और उलझा दिया है, इस गुत्थी को हम धीरे धीरे आगे के लेखों में विस्तार से चर्चा कर सुलझाने का प्रयास करेंगे। अगला लेख श्याम पदार्थ (Dark Matter) और श्याम उर्जा(dark energy) पर होगा।
सागर जी क्या ख्याल है, आपके प्रश्नों की सूची कम हुयी या और बढ़ गयी?
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(२)ब्रह्मांडीय सिद्धांत (Cosmological Principle) : यह एक सिद्धांत नहीं एक मान्यता है। इसके अनुसार ब्रह्मांड समांगी(homogeneous) और सावर्तिक(isotrpic) है| एक बड़े पैमाने पर किसी भी जगह से निरीक्षण करने पर ब्रह्मांड हर दिशा में एक ही जैसा प्रतीत होता है।
(३)ब्रह्मांडीय  सूक्ष्म तरंग विकिरण(cosmic microwave background radiation-CMB): यह ब्रह्मांड के उत्पत्ति के समय से लेकर आज तक सम्पूर्ण ब्रह्मांड मे फैला हुआ है। इस विकिरण को आज भी महसूस किया जा सकता है।
(४)निहारिका (Nebula) : ब्रह्मांड में स्थित धूल और गैस के बादल।
(५) प्लैंक काल: मैक्स प्लैंक के नाम पर , ब्रह्मांड के इतिहास मे ० से लेकर १०-४३ (एक प्लैंक ईकाइ समय), जब सभी चारों मूलभूत बल(गुरुत्व बल, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर आणविक आकर्षण बल और मजबूत आणविक आकर्षण बल) एक संयुक्त थे और मूलभूत कणों का अस्तित्व नहीं था।
(६) श्याम पदार्थ (Dark Matter) और श्याम ऊर्जा(dark energy) इस पर पूरा एक लेख लिखना है।
(७)ब्रहृत एकीकृत सिद्धांत(Grand Unification Theory) : यह सिद्धांत अभी अपूर्ण है, इस सिद्धांत से अपेक्षा है कि यह सभी रहस्य को सुलझा कर ब्रह्मांड उत्पत्ति और उसके नियमों की एक सर्वमान्य गणितिय और भौतिकिय व्याख्या देगा।
(८) बायरान : प्रोटान और न्युट्रान को बायरान भी कहा जाता है। विस्तृत जानकारी पदार्थ के मूलभूत कण लेख में।
(९) भौतिकी के मूलभूत बल :गुरुत्व बल, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर आणविक आकर्षण बल और मजबूत आणविक आकर्षण बल
(१०) : एक प्रकाश वर्ष : प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गयी दूरी। लगभग ९,५००,०००,०००,००० किलो मीटर। अंतरिक्ष में दूरी मापने के लिये इस इकाई का प्रयोग किया जाता है।
(११)आज हम जानते है कि अत्याधुनिक दूरबीन से खरबों आकाशगंगाये देखी जा सकती है, जिसमे से हमारी आकाशगंगा एक है और एक आकाशगंगा में भी खरबों तारे होते है। हमारी आकाशगंगा एक पेचदार आकाशगंगा है जिसकी चौड़ाई लगभग हजार प्रकाश वर्ष है और यह धीमे धीमे घूम रही है। इसकी पेचदार बाँहों के तारे १,०००,००० वर्ष में केन्द्र की एक परिक्रमा करते है। हमारा सूर्य एक साधारण औसत आकार का पिला तारा है, जो कि एक पेचदार भुजा के अंदर के किनारे पर स्थित है।