Saturday 27 February 2016

स्वर्ण निर्मित होह्लराम जिसमे हायड्रोजन को संपिडित किया जाता है!
स्वर्ण निर्मित होह्लराम जिसमे हायड्रोजन को संपिडित किया जाता है!
इस प्रयोग मे नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया को प्रारंभ करने के लिये विश्व के सबसे शक्तिशाली 192 लेजर किरणो को 1 सेमी स्वर्ण सीलेंडर पर केंद्रित किया गया। इस स्वर्ण सीलेंडर को होह्लराम (hohlraum) कहते है, इसके अंदर एक प्लास्टिक कैपसूल रखा जाता है। लेजर किरणो के द्वारा यह होह्लराम अत्याधिक तापमान(लाखों डीग्री सेल्सीअस) पर गर्म हो जाता है और X किरणो का उत्सर्जन प्रारंभ करता है। इन X किरणो के प्रभाव से से प्लास्टिक कैपसूल टूट जाता है और उसके अंदर की हायड्रोजन गैस संपिड़ित होती है। उच्च ताप के कारण यह हायड्रोजन गैस अपने वास्तविक घनत्व से 1/35 गुणा ज्यादा संपिड़ित हो जाती है। यह किसी बास्केटबाल को किसी मटर के दाने के आकार मे संपिडित किये जाने के तुल्य है।  इस प्रक्रिया मे हायड्रोजन की प्लाज्मा अवस्था मे मानव केश से भी कम व्यास की जगह मे हायड्रोजन के समस्थानिक ड्युटेरीयम और ट्रीटीयम के परमाणु एक दूसरे मे समाकर हीलीयम का परमाणू बनाते है और ऊर्जा मुक्त करते है।
यह पहली बार हुआ है कि इस प्रक्रिया मे उत्पन्न ऊर्जा , प्रक्रिया प्रारंभ होने मे लगने वाली ऊर्जा से ज्यादा है। इसके पहले के सभी प्रयोगो मे संलयन से उत्पन्न ऊर्जा इतनी नही थी कि श्रृंखला प्रक्रिया प्रारंभ कर सके।
स्वर्ण होह्लराम के अंदर हायड्रोजन प्लाज्मा
स्वर्ण होह्लराम के अंदर हायड्रोजन प्लाज्मा

प्रयोगशाला मे सूर्य का निर्माण : नाभिकिय संलयन(nuclear fusion) मे एक बड़ी सफलता

 
 
 
 
 
 
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सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!
सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!
प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन के समय से ही नियंत्रित नाभिकिय संलयन(nuclear fusion) द्वारा अनंत ऊर्जा का निर्माण वैज्ञानिको का एक सपना रहा है। यह ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया जो कि किसी भी तरह के प्रदुषण से मुक्त है। लेकिन बहुत से वैज्ञानिक इसे विज्ञान फतांशी की प्रक्रिया मानकर नकार चूके है। अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन पहली बार वैज्ञानिको को नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया मे ऊर्जा के उत्पादन करने मे सफलता मीली है। यह घोषणा लारेंस लिवेरमोर नेशनल प्रयोगशाला(Lawrence Livermore National Laboratory) के नेशनल इग्नीशन विभाग(National Ignition Facility) के वैज्ञानीक ओमार हरीकेन(Omar Hurricane) द्वारा की गयी है और इसे नेचर पत्रिका मे प्रकाशित किया गया है।
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जब दो हल्के परमाणु नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के परमाणु नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। तारों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हिलियम परमाणु का निर्माण।
nuclearfusion1
nuclearfusionसूर्य से निरन्तर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का स्रोत वास्तव में सूर्य के अन्दर हो रही नाभिकीय संलयन प्रक्रिया का ही परिमाण है। सर्वप्रथम मार्क ओलिफेंट निरन्तर परिश्रम करके तारों में होने वाली इस प्रक्रिया को 1932 में पृथ्वी पर दोहराने में सफल हुए, परन्तु आज तक कोई भी वैज्ञानिक इसको नियंत्रित नहीं कर सका था। इसको यदि नियंत्रित किया जा सके तो यह ऊर्जा प्राप्ति का एक अति महत्त्वपूर्ण तरीका होगा। पूरे विश्व में नाभिकीय संलयन की क्रिया को नियंत्रित रूप से सम्पन्न करने की दिशा में शोध कार्य हो रहा है, और अब इसमे सफलता प्राप्त हुयी है।
इसी नाभिकीय संलयन के सिद्धान्त पर हाइड्रोजन बम का निर्माण किया जाता है। नाभिकीय संलयन उच्च ताप (10‍7 से 1080 सेंटीग्रेड) एवं उच्च दाब पर सम्पन्न होता है जिसकी प्राप्ति केवल नाभिकीय विखण्डन से ही संभव है।
नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया सभी तारों के केंद्र मे होती है। हल्के तत्वो के परमाणु एक दूसरे से टकराकर भारी तत्व का निर्माण करते है और ऊर्जा का निर्माण होता है। यदि यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर होती है तब यह एक प्रक्रिया “प्रज्वलन(ignition)” का प्रारंभ करती है, जिसमे अधिक परमाणु आपस मे जुड़कर अधिक ऊर्जा का निर्माण करते है। इस अधिक ऊर्जा से से परमाणु केंद्रक जुड़कर और अधिक ऊर्जा का निर्माण करते है, इस तरह से यह एक श्रृंखला प्रक्रिया(Chain reaction) होती है और उस समय तक जारी रहती है जब तक नाभिकिय संलयन के लिये पर्याप्त परमाणु उपलब्ध हों। यदि इस प्रक्रिया को नियंत्रित किया जा सके तो यह अनंत रूप से ऊर्जा प्रदान कर सकती है। इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे कोई प्रदुषण नही फैलता है और इससे उत्पन्न पदार्थ रेडीयो सक्रिय नही होते है। इसलिये यह प्रक्रिया नाभिकिय विखंडन(Nuclear Fission) से कई गुणा बेहतर तकनिक है। वर्तमान मे समस्त परमाणू ऊर्जा नाभिकिय विखंडन से प्राप्त होती है।
पिछ्ले कुछ महीनो मे नेशनल इग्नीशन विभाग(National Ignition Facility)को इस प्रक्रिया मे सफलता मीली है। जैसा कि हम देख चुके है कि नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिये ऊर्जा चाहीये होती है। पहली बार वैज्ञानिको इस प्रक्रिया मे को नाभिकिय संलयन प्रारंभ करने के लिये लगने वाली ऊर्जा से ज्यादा ऊर्जा प्राप्त हुयी है। यह अतिरिक्त ऊर्जा ज्यादा नही है लेकिन यह एक शुरुवात है। नेचर पत्रिका मे प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार उत्पन्न की गयी ऊर्जा प्रक्रिया प्रारंभ करने वाली ऊर्जा से 1.7 गुणा ज्यादा है, वैज्ञानिको के अनुसार कुल बढोत्तरी 2.6 गुणा थी। यह एक बहुत बड़ी खुशखबरी है।

Thursday 25 February 2016

प्रकाश गति मापन का प्रयास

गैलीलियो ने प्रकाश की गति नापने का भी प्रयास किया और तत्संबंधी प्रयोग किए। गैलीलियो व उनका एक सहायक दो भिन्न पर्वत शिखरों पर कपाट लगी लालटेन लेकर रात में चढ़ गए। सहायक को निर्देश दिया गया था कि जैसे ही उसे गैलीलियो की लालटेन का प्रकाश दिखे उसे अपनी लालटेन का कपाट खोल देना था। गैलीलियो को अपने कपाट खोलने व सहायक की लालटेन का प्रकाश दिखने के बीच का समय अंतराल मापना था-पहाड़ों के बीच की दूरी उन्हें ज्ञात थी। इस तरह उन्होंने प्रकाश की गति ज्ञात की।
पर गैलीलियो – गैलीलियो ठहरे – वे इतने से कहां संतुष्ट होने वाले थे। अपने प्रायोगिक निष्कर्ष को दुहराना जो था। इस बार उन्होंने ऐसी दो पहाड़ियों का चयन किया जिनके बीच की दूरी कहीं ज्यादा थी। पर आश्चर्य, इस बार भी समय अंतराल पहले जितना ही आया। गैलीलियो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रकाश को चलने में लग रहा समय उनके सहायक की प्रतिक्रिया के समय से बहुत कम होगा और इस प्रकार प्रकाश का वेग नापना उनकी युक्ति की संवेदनशीलता के परे था। पर गैलीलियो द्वारा बृहस्पति के चंद्रमाओं के बृहस्पति की छाया में आ जाने से उन पर पड़ने वाले ग्रहण के प्रेक्षण से ओल रोमर नामक हॉलैंड के खगोलविज्ञानी को एक विचार आया। उन्हें लगा कि इन प्रेक्षणों के द्वारा प्रकाश का वेग ज्ञात किया जा सकता है। सन् 1675 में उन्होंने यह प्रयोग किया जो इस तरह का प्रथम प्रयास था। इस प्रकार यांत्रिक बलों पर किए अपने मुख्य कार्य के अतिरिक्त गैलीलियो के इन अन्य कार्यों ने उनके प्रभाव क्षेत्र को कहीं अधिक विस्तृत कर दिया था जिससे लंबे काल तक प्रबुद्ध लोग प्रभावित होते रहे।
गैलीलियो ने आज से बहुत पहले गणित, सैद्धांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी के परस्पर संबंध को समझ लिया था। परवलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि एक समान त्वरण (uniform acceleration) की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग पर चल कर वापस पृथ्वी पर आ गिरेगा – बशर्ते हवा के घर्षण का बल उपेक्षणीय हो। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि उनका यह सिद्धांत जरूरी नहीं कि किसी ग्रह जैसे पिंड पर भी लागू हो। उन्हें इस बात का ध्यान था कि उनके मापन में घर्षण (friction) तथा अन्य बलों के कारण अवश्य त्रुटियां आई होंगी जो उनके सिद्धांत की सही गणितीय व्याख्या में बाधा उत्पन्न कर रहीं थीं। उनकी इसी अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकीविद् आइंस्टाइन ने उन्हें ”आधुनिक विज्ञान का पिता” की पदवी दे डाली। कथन में कितनी सचाई है पता नहीं – पर माना जाता है कि गैलीलियो ने पीसा की टेढ़ी मीनार से अलग-अलग संहति (mass) की गेंदें गिराने का प्रयोग किया और यह पाया उनके द्वारा गिरने में लगे समय का उनकी संहति से कोई सम्बन्ध नहीं था – सब समान समय ले रहीं थीं। ये बात तब तक छाई अरस्तू की विचारधारा के एकदम विपरीत थी – क्योंकि अरस्तू के अनुसार अधिक भारी वस्तुएं तेजी से गिरनी चाहिए। बाद में उन्होंने यही प्रयोग गेदों को अवनत तलों पर लुढ़का कर दुहराए तथा पुन: उसी निष्कर्ष पर पहुंचे।
गैलीलियो ने त्वरण के लिए सही गणितीय समीकरण खोजा। उन्होंने कहा कि अगर कोई स्थिर पिंड समान त्वरण के कारण गतिशील होता है तो उसकी चलित दूरी समय अंतराल के वर्ग के समानुपाती होगी।

भगवान की भाषा गणित है”।

गैलीलियो ने दर्शन शास्त्र का भी गहन अध्ययन किया था साथ ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे। पर वे अपने प्रयोगों के परिणामों को कैसे नकार सकते थे जो पुरानी मान्यताओं के विरुद्ध जाते थे और वे इनकी पूरी ईमानदारी के साथ व्याख्या करते थे। उनकी चर्च के प्रति निष्ठा के बावजूद उनका ज्ञान और विवेक उन्हें किसी भी पुरानी अवधारणा को बिना प्रयोग और गणित के तराजू में तोले मानने से रोकता था। चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा समझा। पर गैलीलियो की इस सोच ने मनुष्य की चिंतन प्रक्रिया में नया मोड़ ला दिया। स्वयं गैलीलियो अपने विचारों को बदलने को तैयार हो जाते यदि उनके प्रयोगों के परिणाम ऐसा इशारा करते। अपने प्रयोगों को करने के लिए गैलीलियो ने लंबाई और समय के मानक तैयार किए ताकि यही प्रयोग अन्यत्र जब दूसरी प्रयोगशालाओं में दुहराए जाएं तो परिणामों की पुनरावृत्ति द्वारा उनका सत्यापन किया जा सके।

“गैलेलियो, शायद किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना मे, आधुनिक विज्ञान के जन्मदाता थे।” – स्टीफन हांकिस

समरूप से त्वरित पिंडो की गति जिसे आज सभी पाठशालाओ और विश्वविद्यालयो मे पढाया जाता है, गैलीलियो द्वारा काईनेमेटीक्स(शुद्ध गति विज्ञान) विषय के रूप मे विकसित किया गया था। उन्होने अपनी उन्नत दूरबीन से शुक्र की कलाओ का सत्यापन किया था; बृहस्पति के चार बड़े चन्द्रमा खोजे थे(जिन्हे आज गैलेलीयन चन्द्रमा कहते है) तथा सूर्य धब्बो का निरिक्षण किया था। गैलीलियो ने विज्ञान और तकनिक के अनुप्रयोगो के लिये भी कर्य किया था, उन्होने सैन्य दिशादर्शक(Military Compass) और अन्य उपकरणो का आविष्कार किया था।
गैलीलियो द्वारा कोपरनिकस के सूर्य केन्द्रित सिद्धांत का समर्थन उनके संपूर्ण जीवन काल मे विवादास्पद बना रहा, उस समय अधिकतर दार्शनिक और खगोल विज्ञानी प्राचिन दार्शनिक टालेमी के भू केन्द्रित सिद्धांत का समर्थन करते थे जिसके अनुसार पृथ्वी ब्रम्हांड का केन्द्र है। 1610 के जब गैलीलियो ने सूर्यकेन्द्र सिद्धांत (जिसमे सूर्य ब्रम्हांड का केन्द्र है) का समर्थन करना शुरू किया उन्हे धर्मगुरुओ और दार्शनिको के कट्टर विरोध का सामना करना पडा़ और उन्होने 1615 मे गैलेलियो को धर्मविरोधी करार दे दिया। फरवरी 1616 मे वे आरोप मुक्त हो गये लेकिन चर्च ने सूर्य केन्द्रित सिद्धांत को गलत और धर्म के विपरित कहा। गैलेलियो को इस सिद्धांत का प्रचार न करने की चेतावनी दी गयी जिसे गैलीलियो ने मान लिया। लेकिन 1632 मे अपनी नयी किताब “डायलाग कन्सर्निंग द टू चिफ वर्ल्ड सीस्टमस” मे उन्होने सूर्य केन्द्री सिद्धांत के समर्थन के बाद उन्हे चर्च ने फिर से धर्मविरोधी घोषित कर दिया और इस महान वैज्ञानिक को अपना शेष जीवन अपने घर ने नजरबंद हो कर गुजारना पड़ा।
गैलीलियो का जन्म पीसा इटली मे हुआ था, वे वीन्सेन्ज़ो गैलीली की छः संतानो मे सबसे बड़े थे। उनके पिता एक संगितकार थे, गैलीलियो का सबसे छोटा भाई माइकलेन्जेलो भी एक प्रसिद्ध संगितकार हुये है। गैलीलियो का पूरा नाम गैलीलियो दी वीन्सेन्ज़ो बोनैउटी दे गैलीली था। आठ वर्ष की उम्र मे उनका परिवार फ्लोरेंस शहर चला गया था। उनकी प्राथमिक शिक्षा कैमलडोलेसे मान्स्टेरी वाल्लोम्ब्रोसा मे हुआ था।
गैलीलियो रोमन कैथोलिक थे। उन्होने किशोरावस्था मे पादरी बनने की सोची थी लेकिन पिता के कहने पर पीसा विश्वविद्यालय से चिकित्सा मे पदवी के लिये प्रवेश लिया लेकिन यह पाठ्यक्रम पूरा नही किया। उन्होने गणित मे शिक्षा प्राप्त की।
गैलीलियो की चित्रकला मे भी रूचि थी और उसमे भी उन्होने शिक्षा ग्रहण की। 1588 मे उन्होने अकेडीमिया डेल्ले आर्टी डेल डिसेग्नो फ्लोरेन्स मे शिक्षक के रूप मे कार्य प्रारंभ किया। 1589 मे वे पिसा मे गणित व्याख्याता के रूप मे कार्य शुरू किया। 1592 से उन्होने पौडा विश्वविद्यालय मे ज्यामिति, यांत्रिकि और खगोलशास्त्र पढाना प्रारंभ किया। इस पद पर वे 1610 तक रहे। इस पद पर रहते हुये उन्होने मूलभूत विज्ञान (गतिविज्ञान, खगोल विज्ञान) तथा प्रायोगिक विज्ञान (पदार्थ की मजबूती, उन्न्त दूरबीन इत्यादि) पर कार्य किया। उनकी एकाधिक अभिरूचियो मे ज्योतिष भी था जो उस समय गणित और खगोल विज्ञान से जुड़ा हुआ था।
गैलीलियो को सूक्ष्म गणितीय विश्लेषण करने का कौशल संभवत: अपने पिता विन्सैन्जो गैलिली से विरासत में आनुवांशिक रूप में तथा कुछ उनकी कार्यशैली को करीब से देख कर मिला होगा। विन्सैन्जो एक जाने-माने संगीत विशेषज्ञ थे और ‘ल्यूट’ नामक वाद्य यंत्र बजाते थे जिसने बाद में गिटार और बैन्जो का रूप ले लिया। उन्होंने भौतिकी में पहली बार ऐसे प्रयोग किए जिनसे ”अरैखिक संबंध(Non-Linear Relation)” का प्रतिपादन हुआ। तब यह ज्ञात था कि किसी वाद्य यंत्र की तनी हुई डोर (या तार) के तनाव और उससे निकलने वाली आवृत्ति में एक संबंध होता है, आवृत्ति तनाव के वर्ग के समानुपाती होती है। इस तरह संगीत के सिद्धांत में गणित की थोड़ी बहुत पैठ थी। प्रेरित हो गैलीलियो ने पिता के कार्य को आगे बढ़ाया और फिर उन्होंने बाद में पाया कि प्रकृति के नियम गणित के समीकरण होते हैं। गैलीलियो ने लिखा है –

गैलीलियो गैलीली

गैलीलियो गैलीली एक इटालियन भौतिक विज्ञानी, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और दार्शनिक थे; जिन्होने आधुनिक वैज्ञानिक क्रांति की नींव रखी थी। उनका जन्म 15 फरवरी 1564 को हुआ था, तथा मृत्यु 8 जनवरी 1642 मे हुयी थी।
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गैलीलियो गैलीली की उपलब्धियों मे उन्नत दूरबीन का निर्माण और खगोलिय निरिक्षण तथा कोपरनिकस के सिद्धांतो का समर्थन है। गैलीलियो को आधुनिक खगोलशास्त्र का पिता, आधुनिक भौतिकि का पिता, आधुनिक विज्ञान का पिता के नामो से सम्मान दिया जाता है।

तकनीकी तथ्य

तकनीकी तथ्य

हबल दूरबीन द्वारा लिया गया सबसे प्रसिद्ध चित्र, उद्भव के स्तंभ(
हबल दूरबीन द्वारा लिया गया सबसे प्रसिद्ध चित्र, उद्भव के स्तंभ(“Pillars of Creation”), इसमे चील निहारिका(Eagle Nebula) मे तारो के जन्म को देखा जा सकता है।
  1. नासा ने हबल दूरबीन को अंतरिक्ष में स्थापित करने में क़रीब ढाई अरब डॉलर ख़र्च किए हैं। इसकी एक सर्विसिंग पर लगभग 50 करोड़ डॉलर की लागत आती है।
  2. धरती की सतह से 600 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगा रही हबल 11 टन वज़न की है। धरती का एक चक्कर लगाने में इस क़रीब 100 मिनट लगते हैं।
  3. इसकी लंबाई 13.2 मीटर और अधिकतम व्यास 4.2 मीटर है।
  4. हबल दूरबीन प्रतिदिन 10 से 15 गिगाबाइट आँकड़े जुटाती है।
  5. इसके द्वारा गए आँकड़ों के आधार पर 3000 से ज़्यादा अनुसंधान रिपोर्ट प्रकाशित किए जा चुके हैं।
  6. हब्बल दूरबीन आज 25 वर्षों से भी अधिक समय से कार्यरत है।
  7. इस दूरबीन ने खगोलिकी इतिहास में अनेक ऐसे अनुसंधान किए हैं, जिन्होंने कहीं-कहीं खगोलिकी के पुन: लेखन की ज़रूरत पर बल दिया है।
  8. ब्रह्माण्ड की उम्र का पता इसी दूरबीन से किया जा सका तथा 1994 में बृहस्पति और पुच्छल तारे ‘शूमेकर लेवी-9’ के बीच हुए टकराव का चित्रण भी किया जा सका।
  9. हब्बल दूरबीन प्रथम दूरबीन है, जिसकी पाँच बार अंतरिक्ष में मरम्मत की जा चुकी है।
आप चाहें तो वर्ल्‍ड वाइड टेलिस्‍कोप (worldwidetelescope.org) नाम की ऑनलाइन साइट में आप अंतरिक्ष से जुड़े कई रहस्‍यों को जान सकते हैं। इतना ही नहीं साइट में कई तरह के टूर दिए गए हैं जिसकी मदद से आप असली अंतरिक्ष यात्रा जैसा अनुभव ले सकते हैं। साइट को ओपेन करने पर आप सीधे हब्‍बल टेलिस्‍कोप से अंतरिक्ष का लाइव व्‍यू देख सकते हैं। आप चाहें तो इसे अपने कंप्‍यूटर पर डाउनलोड भी कर सकते हैं। तो अगर आप भी अंतरिक्ष की यात्रा करना चाहते हैं तो worldwidetelescope.org पर क्लिक करें।
हबल दूरबीन पर और लेख

आरंभ

आरंभ

हबल द्वारा ली गयी तितली निहारीका( Butterfly Nebula) का चित्र
हबल द्वारा ली गयी तितली निहारीका( Butterfly Nebula) का चित्र
हालांकि खगोलविद एडविन हबल के सपनों को साकार करने वाली इस दूरबीन पर अमरीका में 1970 के दशक में ही काम शुरू हो चुका था।बाल्टिमोर, अमरीका के स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट में हबल दूरबीन का विकास किया गया। अमरीकी अंतरिक्ष शटल चैलेंजर की दुर्घटना के बाद कुछ वर्षों के लिए थमे अंतरिक्ष ट्रैफ़िक ने हबल परियोजना को बाधित किया।
हबल अंतरिक्ष दूरबीन के कहीं विशाल आकार की परिकल्पना की गई थी, लेकिन अंतत: यह मात्र 96 ईंच आकार की परावर्तक सतह वाली दूरबीन साबित हुई। लेकिन वायुमंडल से दूर अंतरिक्ष में होने के कारण हबल दूरबीन धरती पर उपलब्ध कहीं बड़ी दूरबीनों ज़्यादा प्रभावी साबित हो रही है। हबल दूरबीन की आयु 20 वर्ष आँकी गई थी, यानि हमें वर्ष 2010 तक इसकी सेवा उपलब्ध रहना लगभग तय था लेकिन इसकी सर्विसिंग और उपकरणो को नियमित रूप से बदले जाने के कारण यह अब भी काम कर रही है और आशा है कि 2020 तक कार्यत रहेगी।
इसकी नियमित रूप से सर्विसिंग की जाती रही है। इसके लिए अमरीकी अंतरिक्ष संस्था नासा के अंतरिक्ष यानों के सहारे अंतरिक्षयात्रियों को हबल तक पहुँचाया जाता है। इसकी धुँधली पड़ गई परावर्तक सतह को 1993 में बदला गया। सबसे ताज़ा मरम्मत मार्च 2002 में की गई है। वर्ष 2004 में इसकी एक बार फिर पूरी सर्विसिंग की गयी, उसके पश्चात 2009 मे इसकी सर्विसींग की गयी है।

Wednesday 24 February 2016

दूरबीनों की शुरूआत

क़रीब सौ साल पहले अमरीका में खगोलविदों ने रिफ़्लेक्टरों पर आधारित विशाल दूरबीनों का निर्माण आरंभ किया। उन दूरबीनों में से एक का माउंट विल्सन रिफ़्लेक्टर 100 ईंच आकार का था, जिसे उस समय की सबसे बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धियों में से माना जा रहा था। उस विशाल दूरबीन को एडविन हबल नामक खगोलविद ने स्थापित किया था, जिनके सम्मान में पहली अंतरिक्ष दूरबीन को हबल दूरबीन कहा गया।
अपनी दूरबीन के सहारे एडविन हबल ने साबित किया कि ब्रह्मांड का लगातार फैलाव हो रहा है। उनकी इस खोज को खगोल विज्ञान में हबल के नियम के नाम से जाना जाता है। बाद में ब्रह्मांड की उम्र जानने की जिज्ञासा ने खगोलविदों को और बड़ी दूरबीनों के निर्माण के लिए प्रेरित किया और 200 ईंच आकार की रिफ़्लेक्टर युक्त दूरबीनें भी बनीं। लेकिन उन्हें एक ऐसी दूरबीन चाहिए थी जो धरती के वायुमंडल के व्यवधानों से अप्रभावित रहा और इस तरह अंतरिक्ष दूरबीन की बात सामने आई। लेकिन खगोलविदों का यह सपना 1990 में साकार हो सका, जब डिस्कवरी शटल ने हबल दूरबीन को अंतरिक्ष में पहुँचाया गया।

हबल दूरबीन के शानदार 25 वर्ष पूरे




आज 25 अप्रैल 2015 को हबल दूरबीन ने अपने जीवन के पच्चीस वर्ष पूरे कर लिये है। इस दूरबीन ने खगोल विज्ञान में क्रांतिकारी परिवर्तन लाते हुए ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को बदल डाला है। सृष्टि के आरंभ और उम्र के बारे में हबल ने अनेक नए तथ्यों से हमें अवगत कराया है।…

आज 25 अप्रैल 2015 को हबल दूरबीन ने अपने जीवन के पच्चीस वर्ष पूरे कर लिये है। इस दूरबीन ने खगोल विज्ञान में क्रांतिकारी परिवर्तन लाते हुए ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को बदल डाला है।
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सृष्टि के आरंभ और उम्र के बारे में हबल ने अनेक नए तथ्यों से हमें अवगत कराया है। इसकी उपलब्धियों मे एक ब्रह्मांड की उम्र के बारे में सबूत जुटाने की है। हबल के सहारे खगोलविदों की एक टोली ने 7000 प्रकाश वर्ष दूर ऊर्जाहीन अवस्था की ओर बढ़ते प्राचीनतम माने जाने वाले तारों के एक समूह को खोज निकाला है। इन तारों के बुझते जाने की रफ़्तार के आधार पर ब्रह्मांड की उम्र 13 से 14 अरब वर्ष के बीच आँकी गई है। इसके अतिरिक्त पिछले 12 वर्षों के दौरान इस दूरबीन ने सुदूरवर्ती अंतरिक्षीय पिंडों के हज़ारों आकर्षक चित्र भी उपलब्ध कराए हैं।
हबल दूरबीन की कक्षा
हबल दूरबीन की कक्षा
हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी (Hubble Space Telescope (HST)) वास्तव में एक खगोलीय दूरदर्शी है जो अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रह के रूप में स्थित है, इसे 25 अप्रैल सन् 1990 में अमेरिकी अंतरिक्ष यान डिस्कवरी की मदद से इसकी कक्षा में स्थापित किया गया था। हबल दूरदर्शी को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘ नासा ‘ ने यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी के सहयोग से तैयार किया था। अमेरिकी खगोलविज्ञानी एडविन पोंवेल हबल के नाम पर इसे ‘ हबल ‘ नाम दिया गया। यह नासा की प्रमुख वेधशालाओं में से एक है। पहले इसे वर्ष 1983 में लांच करने की योजना बनाई गई थी, लेकिन कुछ तकनीकी खामियों और बजट समस्याओं के चलते इस परियोजना में सात साल की देरी हो गई।
वर्ष 1990 में इसे लांच करने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि इसके मुख्य दर्पण में कुछ खामी रह गई, जिससे यह पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पा रहा है। वर्ष 1993 में इसके पहले सर्विसिंग मिशन पर भेजे गए वैज्ञानिकों ने इस खामी को दूर किया। यह एक मात्र दूरदर्शी है, जिसे अंतरिक्ष में ही सर्विसिंग के हिसाब से डिजाइन किया गया है।
वर्ष 2009 में संपन्न पिछले सर्विसिंग मिशन के बाद उम्मीद है कि यह वर्ष 2020 तक काम करता रहेगा। इस अभियान मे अंतरिक्ष में अपनी आखिरी वॉक के दौरान वैज्ञानिकों ने हबल के उष्मा कवच और निर्देशक सेंसर को बदला। हबल नाम की महा दूरबीन के कई उपकरणों की मरम्मत की गयी, उसमें नया इमेजर और प्रकाश को छितराने वाला एक स्पेक्ट्रोग्राफ लगाया गया  और उसके गीरोस्कोप, बैटरियां और एक कंम्प्यूटर बदले गए ।

भविष्य के विमान नाभिकिय शक्ति से चालित हो सकते है: बोइंग द्वारा पेटेंट प्राप्त


भविष्य के विमान नाभिकिय शक्ति से चालित हो सकते है: बोइंग द्वारा पेटेंट प्राप्त


जुलाई 2015 के प्रथम सप्ताह मे सं रां अमरीका के पेटेंट कार्यालय ने विमान निर्माता कंपनी बोइंग के राबर्ट बुडिका, जेम्स हर्जबर्ग तथा फ़्रैंक चांडलर के “लेजर तथा नाभिकिय शक्ति” से चलने वाले विमान इंजन के पेटेंट आवेदन को अनुमति दे दी है। विमान निर्माता कंपनी सामान्यत: अपने उत्पादो को उन्नत बनाने के लिये हमेशा…

औषधी वनस्पतीं

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सदाफुली,जास्वंद, जेष्ठमध, साग, तुळस,
हळद, बेल, अळशी, अडुळसा, कोरफड,
अश्वगंधा, अर्जुन, गवती चहा, आले, लसूण,
दुधी भोपळा, गाजर, जायफळ, जायपत्री,
धने, लवंग, ओवा, कडूनिंब, सराटा, बिब्बा, निलगिरी

भक्तांच्या कल्याणा .

ब्रह्ममाया महाराजांची कीर्ती दिवसेंदिवस वाढत होती. त्यांचे चरित्र, त्यांनी आपल्या भक्तांच्या उद्धारासाठी केलेले कार्य व भक्तांना आलेले त्यांच्या अद्‌भुत शक्तीचे अनुभव यांची पुस्तके प्रचंड संख्येने विकली जात होती. भक्तांच्या सोयीसाठी महाराजांनी एक सार्वजनिक  न्यास स्थापन केला होता व त्याद्वारे ग्रंथ प्रकाशन व  देश विदेशातील धार्मिक स्थळांवर त्यांच्या विक्रीची व्यवस्था केली होती. ही पुस्तके म्हणजे भक्तांसाठी जीवन ज्ञानाचा एक अमूल्य ठेवा होता. महाराजांचे विविध आकारातील फोटो भाविक मोठ्या श्रद्धेने विकत घेत व देवघरात त्याची प्रतिष्ठापना करून त्यांच्या पवित्र ग्रंथांचे नियमित पारायण करीत. हे केल्यानंतर त्यांच्या जीवनातील सर्व क्लेशदायक गोष्टी नाहिशा होत असल्याचे दिव्य अनुभव भक्तांना येत होते. शारिरिक दुखणे असो, नातेसंबंधातील ताणतणाव, निराशा अपयश यांचे निरसन होऊन  जीवनाकडे पाहण्याची त्यांची दृष्टी बदलत होती.

  हे कसे होते याचे त्यांना आश्चर्यजनक कुतुहल असले तरी त्यामागचा कार्यकारणभाव फक्त महाराजांनाच ठाऊक होता. भक्ताकडील प्रत्येक त्यांच्या प्रत्येक फोटॊत महाराजांच्या सूक्ष्म देहाचा अधिवास होता.  भक्त ज्यावेळी फोटोची पूजा करीत असे त्यावेळी त्याच्या मनाचा ताबा महाराज आपल्याकडे घेत असत व त्याद्वारे भक्ताच्या मनातील सर्व काळजीचे निराकरण करण्यासाठी योग्य त्या वैश्विक किरणांचा वापर करीत. कुटुंबातील अनेक संकटे ही पूर्व जन्माची फळे आहेत व ती अमलात आणण्यासाठी नेमलेल्या अनेक अतृप्त आत्म्यांचीच ही कारस्थाने आहेत हे माहीत असल्याने त्यांच्याशी संघर्ष करून भक्ताला सर्व   व्याधीतून मुक्त करणे हे आपले कर्तव्य आहे अशी  महाराजांची भावना होती.

कँन्सर, पोलिओ, व्यसनाधीनता, मानसिक आजार अशा अनेक रोगांवर प्रभावी उपायासाठी भक्तांना ते विविध मंत्रांचा जप करावयास सांगत. आणि त्याचा भक्तांना खूप फायदा होत असे याचे कारण म्हणजे विशिष्ठ शब्द उच्चारताना होणार्‍या ध्वनीलहरींचे त्यात योगदान आहे हे महाराजांनाच फक्त माहीत होते.

  या अदृष्य शक्तीही महाराजांच्य़ा फोटोवर हल्ला चढवीत. सूक्ष जंतू वा बुरशीचे रूप घेऊन महाराजांची फोटॊतील प्रतिमा डागाळत. महाराजांची कार्यशक्तीही त्यामुळे क्षीण होत असे. आपल्या पीदा दूर होत असतानाच महाराजांच्या फोटोत होणारे बदल भक्तांना अचंबित करत. कधी फोटोतील डोळ्यात पाणी आल्याचा त्यांना भास होई. कधी फोटोतील महाराजांचा एरवी तेजःपुंज असणारा चेहर म्लान दिसे वा काळवंडे. काहीकाही ठिकाणी तर फोटोतील महाराजांचे शरीरच क्षतिग्रस्त होई.

महाराजांकडे हे फोटॊ पाठवून ते आपल्या शंका त्यांना विचारत. महाराज म्हणत ‘ अरे तुमचे दुःख दारिद्र्य दूर करायचे म्हणजे मला तुमच्या घरातील अदृष्य दुष्ट शक्तींशी सामना करावा लागतो. त्यात माझ्याही प्रतिमेची थोडीफार हानी होते.’ महाराज क्षतिग्रस्त फोटो घेऊन लगेच त्याला आपला नवा फोटो भक्ताला विनामूल्य देत.     महाराजांनी एका मोठ्या दालनात असे सर्व फोटो संग्रहीत करून भक्तांसाठी मार्गदर्शक केंद्र आपल्या प्रासादरुपी  मठात केले होते.

  आपल्या अलौकीक ज्ञानाचा व अध्यात्म विद्येचा सार्‍या जगात प्रसार व्हावा या उदात्त हेतूने महाराजांनी अनेक ठिकाणी भक्तांच्या देणगीतून मोठे भक्तनिवास बांधले होते. अनेक समाजोपयोगी कार्ये या केंद्रांतर्फे केली जात. अनेक आपला वृद्धापकाळ अशा केंद्रात निःशुल्क सेवा करीत घालवत.

अंधश्रद्धा निर्मूलन संस्थेच्या लोकांना हे सारे थोतांड वाटे. महाराजांच्या चमत्काराविषयी ते काहीबाही बोलत. भक्तांना आव्हान देत व महाराजांचे अध्यात्मिक सामर्थ्य व कार्य याला विरोध करीत. त्यातील एक व्यक्ती महाराजांना भेटावयास आली. महाराजांनी त्याचे स्वागत केले व आपल्या भक्तांच्या अनुभवावरील आधारलेले प्रदर्शन दाखविण्याची आपल्या शिष्यास आज्ञा केली. शिष्याने ते प्रदर्शन तर दाखविलेच पण महाराजांच्या स्नानग्रहात भिंतीवर उठलेले चरेही दाखविले. तो म्हणाला महाराजांवर अदृष्य शक्तीचा कोठेही हल्ला होतो. त्याचा शस्त्राने प्रतिकार  करताना भिंतीवर हे ओरखडे पडले आहेत. हे पाहूनही त्या अश्रद्ध व्यक्तीचे समाधान झाले नाही त्याने महाराजांच्या खोलीत जाऊन त्यांची भेट घेतली. महाराजांच्या खोलीत भीतीवर अनेक ठिकाणी भेगा पडल्या होत्या व तेथे पेन्सिलने काही तरी लिहिले होते. महाराज म्हणाले या खुणा म्हणजे पिशाच्च्यांनी माझ्यावर केलेल्या हल्ल्याचे प्रतीक आहेत. दिवसरात्र मला या दुष्ट शक्तींशी लढावे लागते तेव्हाच भक्तांना सुखशांतीचा लाभ होतो. महाराजांना त्या आगंतुक व्यक्तीने विचारले ‘ आपले व माझे वय जवळजवळ सारखेच आहे. मात्र आतापर्यंत मला कधीच कोणी पिशाच्च भेटले नाही हे कसे?’ महाराज हसले व म्हणाले ‘ मी भक्तांच्या संरक्षणासाठी झटतो आहे त्यामुळेच अध्यात्मिक शक्तीविरोधी दुष्ट शक्ति माझ्या्वर हल्ले करीत आहेत. तुम्ही कधी अध्यात्मिक शक्तीच्या संवर्धनासाठी काही केले नाही. तुमच्या वाट्याला त्या शक्ती कशाला जातील?.’ यावर तो गृहस्थ निरुत्तरच झाला.


  महाराज अशा अज्ञ लोकांकडे दुर्लक्ष करीत व भक्तांच्या विश्वासाला तडा जाऊ नये म्हणून आपली अध्यात्म शक्ती खर्च करून माफक प्रमाणात चमत्कारही करीत. जरी विश्वरचना व त्याचे कार्य यांची माहिती  फक्त त्या उंचीवर गेलेल्या श्रद्धाळू व्यक्तीसच होऊ शकते हे महाराजांना ठाऊक असले तरी काही वेळा त्यातील गुपिते आपल्या भक्तांना सांगण्याचा मोह त्यांना होत असे.

त्यांच्या एका प्रतिष्ठीत व सुशिक्षित भक्ताने नुकताच याबाबतीतील आपला प्रत्यक्ष अनुभव मला सांगितला.
‘‘महाराज  एकदा असेच त्या भक्ताच्या गावी प्रवचनासाठी गेले असता आकाशात ढगांची गर्दी झाली. सभास्थानी पाऊस पडला तर काय होईल या कल्पनेने महाराजांचे स्थानिक भक्तगण घाबरून गेले. विश्रामगृहात आलेल्या भक्त गणांच्या चेहर्‍यावरील काळजीचा भाव महाराजांनी ओळखला. ते म्हणाले ‘कसला आवाज येत आहे.’ भक्त म्हणाले ‘महाराज ढगांचा गडगडाट चालू आहे.’ महाराज हसले ते म्हणाले ‘अरे तो गडगडाट नाही. मेघराज मला विचारत आहे की इंद्राच्या आज्ञेप्रमाणे मला येथे भरपूर पाऊस पाडायची आज्ञा आहे. आपले तर आज येथे प्रवचन आहे आता काय करायचे ? मी त्याला सांगितले अरे तुला सांगितलेले काम तू कर मी काय ते बघतो.’ महाराजांचा कार्यक्रम सुरू झाला. आणि जोरात पावसास सुरुवात झाली पण आश्चर्य म्हणजे महाराजांच्या प्रवचनाच्या जागी मात्र पावसाचा ठिपूसही पडला नाही.’’

एक ना दोन अशा अनेक विलक्षण गोष्टी आपल्याला त्यांच्या भक्तांच्याकडून ऎकायला मिळतात.
 
महाराजांनी  आता आपल्या दिव्य ज्ञानाच्या प्रसारासाठी आधुनिक संपर्क माध्यमांचा उपयोग करण्यास सुरुवात केली आहे. साप्ताहिक, दूरदर्शन, वेबसाईट, फेसबुक, ट्वीटर आणि व्हाट्स अप च्या माध्यमातून ते जगभरातील थकल्या भाकल्यांचे, दुःखी कष्टी, निराशाग्रस्त व गरीबीने गांजलेल्याची  ते सेवा करीत असून त्यांचे श्रद्धास्थान बनले आहेत.

त्यांचे हे अजरामर कार्य जनतेसमोर आणल्याबद्दल महाराजांची माझ्यावरही कृपादृष्टी वळेल असा मला विश्वास वाटतो. 
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महाविस्फोट सिद्धांत(The Bing Bang Theory)

1929 में एडवीन हब्बल ने एक आश्चर्य जनक खोज की, उन्होने पाया की अंतरिक्ष में आप किसी भी दिशा में देखे आकाशगंगाये और अन्य आकाशीय पिंड तेजी से एक दूसरे से दूर हो रहे है। दूसरे शब्दों मे ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। इसका मतलब यह है कि इतिहास में ब्रह्मांड के सभी पदार्थ आज की तुलना में एक दूसरे से और भी पास रहे होंगे। और एक समय ऐसा रहा होगा जब सभी आकाशीय पिंड एक ही स्थान पर रहे होंगे, लेकिन क्या आप इस पर विश्वास करेंगे ?
तब से लेकर अब तक खगोल शास्त्रियों ने उन परिस्थितियों का विश्लेषण करने का प्रयास किया है कि कैसे ब्रह्मांडीय पदार्थ एक दूसरे से एकदम पास होने की स्थिती से एकदम दूर होते जा रहे है।
इतिहास में किसी समय , शायद 10 से 15 अरब साल पूर्व , ब्रह्मांड के सभी कण एक दूसरे से एकदम पास पास थे। वे इतने पास पास थे कि वे सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिन्दु की शक्ल में था। यह बिन्दु अत्यधिक घनत्व(infinite density) का, अत्यंत छोटा बिन्दु(infinitesimally small ) था। ब्रह्मांड का यह बिन्दु रूप अपने अत्यधिक घनत्व के कारण अत्यंत गर्म(infinitely hot) रहा होगा। इस स्थिती में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिती है जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिती में रुक जाता है, दूसरे शब्दों में काल और समय के कोई मायने नहीं रहते है।*
इस स्थिती में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार होना शुरू हुआ। एक महा विस्फोट के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ और ब्रह्मांड में पदार्थ ने एक दूसरे से दूर जाना शुरू कर दिया।
महा विस्फोट के 10-43 सेकंड के बाद, अत्यधिक ऊर्जा(फोटान कणों के रूप में) का ही अस्तित्व था। इसी समय क्वार्क , इलेक्ट्रान, एन्टी इलेक्ट्रान जैसे मूलभूत कणों का निर्माण हुआ। इन कणों के बारे हम अगले अंको मे जानेंगे।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति

सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या कहाँ, किसने देखा था
उस पल तो अगम, अटल जल भी कहाँ था
ऋग्वेद(10:129) से सृष्टि सृजन की यह श्रुती
लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी यह श्रुति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी इसे रचित करते समय थी। सृष्टि की उत्पत्ति आज भी एक रहस्य है। सृष्टि के पहले क्या था ? इसकी रचना किसने, कब और क्यों की ? ऐसा क्या हुआ जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ ?
अनेकों अनसुलझे प्रश्न है जिनका एक निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं है। कुछ सिद्धांत है जो कुछ प्रश्नों का उत्तर देते है और कुछ नये प्रश्न खड़े करते है। सभी प्रश्नों के उत्तर देने वाला सिद्धांत अभी तक सामने नहीं आया है।
सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त सिद्धांत है महाविस्फोट सिद्धांत (The Bing Bang Theory)।