मशीनी मानव। एक ऐसी मानव कल्पना जिसमे मशीनें मानव को विस्थापित कर उसके
अधिकतर कार्य करेंगी। मानवों का विस्थापन दोहरा अर्थ रखता है, यदि उसके
द्वारा किये गये श्रम का विस्थापन हो तो वह मानव जाति के उत्थान मे सहायक
हो सकता है। लेकिन यदि मशीनें मानव जाति को ही विस्थापित करने लग जाये तब
यह स्थिति एक दू:स्वप्न को जन्म देती है।
क्या मशीनी मानव संभव है ? क्या मशीने मानव को विस्थापित कर सकती है? क्या मशीने मानव मस्तिष्क के तुल्य हो सकती है? क्या उनमें मानवों जैसी भावनायें आ सकती है? क्या कृत्रिम बुद्धी का निर्माण संभव है ? ढेर सारे प्रश्न है, ढेर सारी संभावनाएं !
1950 के दशक के प्रारंभ से ही विज्ञान फतांसी फिल्मो मे रोबोट को मानव निर्मित एक ऐसी परिष्कृत मशीन के रूप मे दर्शाया जाता रहा है जो वह ऐसे जटिल कार्य आसानी से कर सकती है जो मानव के लिये करना कठिन है। उदाहरण स्वरूप गहरी खतरनाक खानो मे खुदायी करना, सागर की तलहटी मे कार्य करना इत्यादि। इन फिल्मो मे अक्सर रोबोट को आकाशगंगाओं के मध्य यात्रा करने वाले अंतरिक्षयानो के चालक और नियंत्रक के रूप मे दर्शाया जाता रहा है। दूसरी ओर इन रोबोटो को एक ऐसे खलनायक के रूप मे भी दर्शाया गया है जो भस्मासूर की तरह अपने निर्माता मानव को ही नष्ट कर देना चाहते है। इसके सबसे बडा उदाहरण आर्थर क्लार्के और स्टेनली कुब्रिक की फिल्म “2001 ए स्पेस ओडीसी” का कंप्यूटर “HAL 9000” है।
इस फिल्म मे HAL सारे अंतरिक्ष यान के परिचालन के अतिरिक्त , अंतरिक्षयात्रीयों से प्यार से बातें करता है, शतरंज खेलता है, चित्रो की सुंदरता का विश्लेष्ण करता है, यानकर्मीयों की भावनाओं को समझ लेता है लेकिन वह अभियान के पूर्व निर्धारित मूल उद्देश्य की पूर्ति के लिये वह पांच अंतरिक्षयात्रीयों मे से चार की हत्या भी कर देता है। अन्य विज्ञान फंतासी फिल्म जैसे “मैट्रिक्स” और “टर्मीनेटर” मे इससे भी भयावह चित्र का चित्रण किया गया है जिसमे रोबोट बुद्धिमान और आत्म जागृत हो कर मानव जाति को अपना ग़ुलाम बना लेते है।
बहुत कम ही फिल्मो मे रोबोट को एक विश्वसनिय सहयोगी के रूप मे दर्शाया गया है जो मानव के साथ सहयोग करते है और उनके खिलाफ षडयंत्र नही रचते है। राबर्ट वाईज की 1951 मे आई फिल्म “द डे द अर्थ स्टूड स्टिल” मे गार्ट पहला रोबोट(परग्रही रोबोट) है जो कैप्टन कलातु को मानवता को एक संदेश देने मे सहायता करता है। यह फिल्म दोबारा बनी जिसमे कैप्टन कलातु का पात्र किनु रीव्ज(मैट्रीक्स श्रृंखला के नियो) ने निभाया था।
जेम्स कैमरान द्वारा निर्देशीत एलीयंस 2 मे ’बिशप” एन्ड्राईड(एन्ड्राईड- मानव सदृश्य रोबोट) का कार्य यात्रा के दौरान अंतरिक्षयान का परिचालन और यात्रीयों की सुरक्षा है। HAL और एलीयन 1 के रोबोट के विपरित बिशप पूरे अभियान के दौरान किसी त्रुटि का शिकार नही होता है और अपने कार्य के लिये ईमानदार रहता है। इस फिल्म के अंतिम दृश्यो मे बिशप को एलीयन दो टुकड़ो मे तोड देता है लेकिन वह एलन रीप्ले को बचाने ले लिये अपना हाथ देता है। जेम्स कैमरान की फिल्मो मे पहली बार किसी रोबोट पर विश्वास किया गया था और उसे एक नायक के रूप मे दर्शाया गया था।
1987 मे आयी रोबोकाप मे एक रोबोट कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये मानवता की मदद करता है लेकिन वह पूर्णतः यांत्रिक नही है, वह सायबोर्ग है जोकि यंत्र और जैविक प्रणाली का मिश्रण है; आधा मानव, आधा मशीन।
इन सभी फिल्मो मे मानव मन मे तकनीक पर चल रहे अंतर्द्वद्व को सफलतापूर्वक दर्शाया गया है, एक ओर इन फिल्मो मे मानव की तकनीक से चाहत दर्शायी गयी है; दूसरी ओर मानव मन मे अपनी ही द्वारा निर्मित तकनीक से भय दर्शाया गया है। एक ओर मानव रोबोट को अपनी एक ऐसी चाहत के रूप मे देखता है जो उसे अमरता प्रदाण कर सकती है और एक ऐसे मजबूत और अविनाशी कलेवर मे है जिसकी बुद्धिमत्ता, तंत्रिकातंत्र और क्षमता किसी मानव से कई गुणा बेहतर है। दूसरी ओर उसके मन मे डर समाया हुआ है कि अत्याधुनिक तकनीक जो आम लोगो के लिये रहस्यमयी है ,उसके नियंत्रण से बाहर जा सकती है और अपने ही निर्माता के विरोध मे कार्य कर सकती है, और यही डर HAL 9000, टर्मीनेटर और मैट्रिक्स मे दिखाया गया है। आइजैक आसीमोव द्वारा उनके रोबोटो मे प्रयुक्त पाजीट्रानीक मस्तिष्क मे भी यही भय अंतर्निहीत है, वह ऐसी आधुनिक तकनीक से निर्मित है जिसकी सूक्ष्म स्तर पर कार्यप्रणाली को वर्तमान मे कोई नही जानता है और इन रोबोटो का निर्माण कार्य पूर्णतः स्वचालित है।
कंप्यूटर विज्ञान मे हालिया प्रगति ने नये विज्ञान फतांशी रोबोटो के गुणों को भी प्रभावित किया है। कृत्रिम न्युरल नेटवर्क ने टर्मीनेटर रोबोट पर प्रभाव डाला है, वह बुद्धिमान है तो है ही, साथ ही मे वह अनुभव से सीख भी सकता है।
इस फिल्म मे टर्मीनेटर रोबोट काल्पनिक रोबोट की प्राथमिक अवस्था वाला प्रतिरूप है। वह चल सकता है, बोल सकता है, मानव के जैसे देख और व्यवहार कर सकता है। उसकी बैटरी 120 वर्ष तक ऊर्जा दे सकती है साथ मे ही किसी अप्रत्याशित दुर्घटना की अवस्था मे उसके पास पर्यायी ऊर्जा व्यवस्था है। लेकिन इस सबसे महत्वपूर्ण है कि वह सीख सकता है। उसे नियंत्रण करने के लिये न्युरल-नेट प्रोसेसर है, जो अपने अनुभव से सीखने वाले कंप्यूटर है।
इस फिल्म मे दार्शनिक कोण से सबसे रोचक बात यह है कि यह एक ऐसा न्युरल प्रोसेसर है कि वह घातांकी दर(exponential rate) से सीखता है और कुछ समय पश्चात आत्म-जागृत हो जाता है। इस तरह से यह फिल्म महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है जो कृत्रिम चेतना से संबधित है। क्या रोबोट मे कृत्रिम चेतना आ सकती है, क्या वे आत्म जागृत हो सकते है ? यदि हाँ तो इसके क्या परिणाम होंगे ? इस कृत्रिम चेतना, आत्म जागृति के दुष्परिणामो से कैसे बचा जाये ?
मई 11, 1997 को इतिहास मे प्रथम बार डीप ब्ल्यु नामक कंप्यूटर ने विश्व शतरंज चैंपीयन गैरी कास्पोरोव को 3.5 – 2.5 के स्कोर से हराया था। लेकिन ध्यान रखें कि डीप ब्ल्यु को शतरंज की समझ नही है, वह केवल कुछ नियमों का पालन कर पता करता है कि किस चाल को चलने से वह बेहतर स्थिति मे होगा और यह नियम कुछ मानव शतरंज खिलाडीयो द्वारा डीप ब्ल्यु की स्मृति मे डाले गये है। यदि हम ट्युरींग के दृष्टिकोण से देखें तो कह सकते है कि डीप ब्ल्यु शतरंज बुद्धिमान तरीके से खेलता है लेकिन हम यह भी कह सकते हैं कि वह नही जानता कि उसकी चालों का अर्थ क्या है, यह ठीक उसी तरह से है जैसे टीवी को उस पर दिखायी जा रही तस्वीरों का अर्थ नही मालूम होता है।
किसी बुद्धिमान वस्तु के आत्म-चेतन होने की जांच तो और भी बडी़ समस्या है। तथ्य यह है कि बुद्धिमत्ता बाह्य व्यवहार से प्रदर्शित होती है और यह एक ऐसा गुणधर्म है जिसी भिन्न जांच मानको से मापा जा सकता है, लेकिन आत्म-चेतन हमारे मस्तिष्क का आंतरिक व्यवहार है जिसे मापा नही जा सकता है।
शुध्द दार्शनिक दृष्टिकोण से किसी अन्य मस्तिष्क मे चेतना की उपस्थिति नही मापी जा सकती है, यह एक ऐसा गुणधर्म है को उसका धारक ही माप सकता है। हम किसी अन्य मे मस्तिष्क मे प्रवेश नही कर सकते है, इसलिये हम यह तय नही कर सकते हैं कि उसमे चेतना है या नही। इस तरह की समस्याओं के बारे मे डगलस होफ्स्टैडटर और डैनीयल डेन्नेट ने अपनी पुस्तक “द माइंड्स आई” मे चर्चा की है।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से हम ट्युरींग की जांच प्रक्रिया का प्रयोग कर सकते है और किसी भी वस्तु को आत्म-चेतन मान सकते है जब वह एक निर्धारित जांच प्रक्रिया मे सफल होकर अपने आप को आत्म-चेतन सिद्ध कर दे। मानवों मे भी यह विश्वास कि अन्य व्यक्ति भी आत्म-चेतन है, इसी तरह की मान्यताओं पर आधारित है: हमारे पास एक जैसे अंग है, हमारे पास एक जैसे मस्तिष्क है, इसलिये यह मानना कि सामने खड़ा व्यक्ति भी आत्म-चेतन है विवेकपूर्ण होगा। अपने सबसे अच्छे मित्र के आत्म-चेतन होने पर कौन प्रश्न उठायेगा? हालाँकि यदि हमारे सामने खड़ा व्यक्ति भले ही मानव जैसे व्यवहार कर रहा हो लेकिन वह कृत्रिम मांसपेशीयों , कृत्रिम अंगो और न्युरल प्रोसेसर का प्रयोग कर रहा हो तो शायद हमारा निर्णय अलग हो।
कृत्रिम न्युरल नेटवर्क के उदय से कृत्रिम चेतना और भी रोचक हो गयी है, क्योंकि न्युरल नेटवर्क हमारे मस्तिष्क के जैसे ही विद्युत संकेतो का प्रयोग करता है और हमारे मस्तिष्क द्वारा प्रयुक्त सूचना संसाधन के जैसे ही तरिको का प्रयोग करता है।
हालांकि यह सभी मानते है कि वर्तमान कंप्यूटर प्रक्रिया आधारित कृत्रिम मस्तिष्क कभी भी आत्म-चेतन नही हो सकता लेकिन क्या यह हम न्युरल नेटवर्क के बारे मे कह सकते है? यदि हम विभिन्न जैविक और कृत्रिम मस्तिष्कों के मध्य संरचनात्मक विभिन्नताओं को हटा दें तो यह मुद्दा धार्मिक बन जाता है। दूसरे शब्दो मे यदि हम माने कि मानव चेतना किसी दैविक शक्ति द्वारा प्रदान की गयी है तो यह स्पष्ट है कि कोई भी कृत्रिम वस्तु मे आत्म-चेतना नही आ सकती है। लेकिन यदि हम माने कि मानव चेतना एक विद्युत न्युरल अवस्था है को जटिल मस्तिष्क द्वारा सहज तरिके से निर्मित है तब एक कृत्रिम आत्म-चेतन मस्तिष्क के निर्माण की संभावना प्रबल हो जाती है। यदि हम यह माने कि चेतना मस्तिष्क का भौतिक गुणधर्म है तब प्रश्न उठता है कि
मानव मस्तिष्क मे लगभग 1012 न्युरान है और हर न्युरान लगभग 1013 अन्य न्युरानो से जुडा होता है, इस तरह इस नेटवर्क मे औसतन कुल 1015 सूत्रयुग्मन(synapses) होते है। कृत्रिम न्युरल नेटवर्क मे एक सूत्रयुग्म को एक वास्तविक संख्या (Floating point) के रूप रखा जा सकता है, वास्तविक संख्या को कंप्यूटर मे रखने के लिये 4 बाईट चाहिये। इस तरह से 1015 सूत्रयुग्म के लिये कुल 4*1015 बाईट(40 लाख गीगाबाईट) चाहीये होगी। चलो मान लेते है कि संपूर्ण मानव मस्तिष्क को जैसे व्यवहार करने के लिये 80 लाख गीगाबाईट चाहीये होगी, इसमे हमने न्युरान द्बारा उत्पन्न संकेतो और भिन्न आंतरिक मस्तिष्क अवस्थाओं को संरक्षित रखने के लिये आवश्यक जगह भी जोड ली है। अब प्रश्न उठता है कि इतनी कंप्यूटर स्मृति कब तक उपलब्ध होगी ?
इन आंकड़ो की सहायता से हम वर्ष और RAM क्षमता के मध्य एक गणितिय संबंध प्राप्त कर सकते है।
अब इस परिणाम का अर्थ को पूरी तरह से समझने के लिये प्रथम हमे कुछ और अन्य तथ्यों पर भी गौर करना होगा। सबसे पहले गणना की गयी दिनांक एक आवश्यक शर्त के लिये है लेकिन कृत्रिम चेतना के लिये वह संपूर्ण शर्त नही है। इसका अर्थ है कि एक शक्तिशाली कंप्यूटर जिसमे लाखों गीगाबाईट RAM हो कृत्रिम चेतना के लिये पर्याप्त नही है। इसके अतिरिक्त भी कई सारे कारक है, जैसे कृत्रिम न्युरल नेटवर्क के सिद्धांत मे विकास, मानव मस्तिष्क के जैविक प्रक्रिया को ज्यादा अच्छे तरीके से समझना। मानव मस्तिष्क और कंप्यूटर मे सबसे बड़ा अंतर समस्याओं को हल करने की विधि मे है। कंप्यूटर को इस तरह से निर्देश दिये जाते है किं वह कोई त्रुटि ना करे, वह जिस तरह से निर्देशो का पालन करते है वह मानव मन को हास्यास्पद लगेगा। यदि किसी मानव से पूछा जाये कि किसी भी दो क्रमिक पूर्णांक संख्याओं के योग को दो से भाग दिया जाये तो क्या उत्तर पूर्णांक मे आयेगा? मानव इसका उत्तर देगा “नहीं” क्योंकि वह उत्तर जानता है। लेकिन जब यही प्रश्न कंप्यूटर से पूछा जाये, वह उत्तर नही जानता। वह उत्तर पाने के लिये गणना प्रारंभ करेगा। वह सबसे पहले 1 और 2 को जोडेगा और परिणाम मे आये 3 को 2 से भाग देगा , परिणाम आयेगा 1.5, अर्थात “नही”। अब कंप्यूटर अगला युग्म 2 और 3 लेकर प्रक्रिया दोहरायेगा। कंप्यूटर यह प्रक्रिया तब तक दोहरायेगा जब तक उसे उत्तर “हां” ना मिले। इस उदाहरण मे उसे “हां‘’ कभी नही मिलेगा और वह इस चक्र मे फंस जायेगा। किसी मानव को उसकी गणन प्रक्रिया जबरन रोकनी होगी। कंप्यूटर यह समझने मे असमर्थ है कि उसे इस गणन प्रक्रिया मे कभी “हाँ” मे उत्तर नही मिलेगा। हम कंप्यूटर मे यह सूचना डाल सकते है कि “किसी भी दो क्रमिक पूर्णांक संख्याओं के योग को 2 से भाग देने पर पूर्णांक नही मिलेगा”। अब इस सूचना के डालने के बाद अगली बार कंप्यूटर इस प्रश्न का उत्तर दे पायेगा। लेकिन समस्या यह है कि ऐसे लाखों प्रश्न है, जो मानव मस्तिष्क सहज रूप से उत्तर दे सकता है और उन सभी प्रश्नों के उत्तर को कंप्यूटर मे सूचना के रूप मे भरना असंभव है। मानव के साथ ऐसा नही है, उसे आप बस गणित से सामान्य नियमों के बारे मे बता दे और वे अपने ज्ञान के आधार पर किसी भी अन्य गणितीय समस्या को हल कर लेंगें। मानव के पास समझ है लेकिन कंप्यूटर के पास केवल नियम और निर्देश।
ये सभी कारक किसी आत्म-चेतन कंप्यूटर के निर्माण की दिनांक के अनुमान को असंभव सा बना देते है। एक तर्क यह दिया जा सकता है कि यह गणना तो निजी कंप्यूटर के लिये की गयी है जोकि इस क्षेत्र मे उच्च स्तर का तकनीकी विकास नही है। यह भी तर्क दिया जा सकता है कि इतनी RAM किसी नेटवर्क के कंप्यूटरो द्वारा या हार्ड डिस्क की स्मृति के आभासी स्मृति (Virtual Memory) प्रबंधन द्वारा भी उपलब्ध करायी जा सकती है। लेकिन हम किसी भी गणना पद्धति को लेकर चले उपर गणना की गयी तिथि तो ज्यादा से ज्यादा कुछ वर्ष ही पहले लाया जा सकता है।
इतने सारे विचार विमर्श के पश्चात प्रश्न आता है कि
बाह्य अंतरिक्ष मे बुद्धिमान जीवन की खोज 1972 के पायोनियर 10 यान से प्रारंभ हो गयी थी, इस यान मे मानव सभ्यता और पृथ्वी ग्रह के बारे मे सूचनायें है। मानव प्रजाति द्वारा की गयी सभी खोजो मे नाभिकिय ऊर्जा से परमाणु बम तक, जेनेटिक इंजीनियरींग से मानव क्लोम तक सबसे बड़ी समस्या रही है कि तकनीक को नियंत्रण मे कैसे रखा जाये, जिससे वह मानव जाति के विकास मे सहायक हो, उसके विनाश मे नही। अगला प्रश्न है कि
क्या मशीनी मानव संभव है ? क्या मशीने मानव को विस्थापित कर सकती है? क्या मशीने मानव मस्तिष्क के तुल्य हो सकती है? क्या उनमें मानवों जैसी भावनायें आ सकती है? क्या कृत्रिम बुद्धी का निर्माण संभव है ? ढेर सारे प्रश्न है, ढेर सारी संभावनाएं !
टर्मीनेटर 2 : जजमेंट डे
“लास एन्जेल्स, वर्ष 2029. सभी स्टील्थ बमवर्षक विमानो मे नये तंत्रिकीय संसाधक(neural processors) लगा दिये गये है और वे पूर्णतः मानव रहित बन गये है। उनमे से एक स्कायनेट ने ज्यामितीय दर से सीखना प्रारंभ किया है। वह 2:14 बजे सुबह पूर्वी अमरीकी समय अगस्त 29 को आत्म चेतन हो गया।यह जेम्स कैमरान द्वारा निर्देशित फ़िल्म “टर्मीनेटर 2- जजमेंट डे” मे दर्शाया गया भविष्य है। स्कायनेट का आत्म-चेतन होना और उसका मानवता पर आक्रमण मानव और रोबोट के मध्य एक युद्ध का आरंभ करता है और यही युद्ध टर्मीनेटर फिल्म श्रृंखला की हर फिल्म का पहला दृश्य होता है।
“Los Angeles, year 2029. All stealth bombers are upgraded with neural processors, becoming fully unmanned. One of them, Skynet, begins to learn at a geometric rate. It becomes self-aware at 2:14 a.m. eastern time, August 29.”
1950 के दशक के प्रारंभ से ही विज्ञान फतांसी फिल्मो मे रोबोट को मानव निर्मित एक ऐसी परिष्कृत मशीन के रूप मे दर्शाया जाता रहा है जो वह ऐसे जटिल कार्य आसानी से कर सकती है जो मानव के लिये करना कठिन है। उदाहरण स्वरूप गहरी खतरनाक खानो मे खुदायी करना, सागर की तलहटी मे कार्य करना इत्यादि। इन फिल्मो मे अक्सर रोबोट को आकाशगंगाओं के मध्य यात्रा करने वाले अंतरिक्षयानो के चालक और नियंत्रक के रूप मे दर्शाया जाता रहा है। दूसरी ओर इन रोबोटो को एक ऐसे खलनायक के रूप मे भी दर्शाया गया है जो भस्मासूर की तरह अपने निर्माता मानव को ही नष्ट कर देना चाहते है। इसके सबसे बडा उदाहरण आर्थर क्लार्के और स्टेनली कुब्रिक की फिल्म “2001 ए स्पेस ओडीसी” का कंप्यूटर “HAL 9000” है।
इस फिल्म मे HAL सारे अंतरिक्ष यान के परिचालन के अतिरिक्त , अंतरिक्षयात्रीयों से प्यार से बातें करता है, शतरंज खेलता है, चित्रो की सुंदरता का विश्लेष्ण करता है, यानकर्मीयों की भावनाओं को समझ लेता है लेकिन वह अभियान के पूर्व निर्धारित मूल उद्देश्य की पूर्ति के लिये वह पांच अंतरिक्षयात्रीयों मे से चार की हत्या भी कर देता है। अन्य विज्ञान फंतासी फिल्म जैसे “मैट्रिक्स” और “टर्मीनेटर” मे इससे भी भयावह चित्र का चित्रण किया गया है जिसमे रोबोट बुद्धिमान और आत्म जागृत हो कर मानव जाति को अपना ग़ुलाम बना लेते है।
बहुत कम ही फिल्मो मे रोबोट को एक विश्वसनिय सहयोगी के रूप मे दर्शाया गया है जो मानव के साथ सहयोग करते है और उनके खिलाफ षडयंत्र नही रचते है। राबर्ट वाईज की 1951 मे आई फिल्म “द डे द अर्थ स्टूड स्टिल” मे गार्ट पहला रोबोट(परग्रही रोबोट) है जो कैप्टन कलातु को मानवता को एक संदेश देने मे सहायता करता है। यह फिल्म दोबारा बनी जिसमे कैप्टन कलातु का पात्र किनु रीव्ज(मैट्रीक्स श्रृंखला के नियो) ने निभाया था।
जेम्स कैमरान द्वारा निर्देशीत एलीयंस 2 मे ’बिशप” एन्ड्राईड(एन्ड्राईड- मानव सदृश्य रोबोट) का कार्य यात्रा के दौरान अंतरिक्षयान का परिचालन और यात्रीयों की सुरक्षा है। HAL और एलीयन 1 के रोबोट के विपरित बिशप पूरे अभियान के दौरान किसी त्रुटि का शिकार नही होता है और अपने कार्य के लिये ईमानदार रहता है। इस फिल्म के अंतिम दृश्यो मे बिशप को एलीयन दो टुकड़ो मे तोड देता है लेकिन वह एलन रीप्ले को बचाने ले लिये अपना हाथ देता है। जेम्स कैमरान की फिल्मो मे पहली बार किसी रोबोट पर विश्वास किया गया था और उसे एक नायक के रूप मे दर्शाया गया था।
1987 मे आयी रोबोकाप मे एक रोबोट कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये मानवता की मदद करता है लेकिन वह पूर्णतः यांत्रिक नही है, वह सायबोर्ग है जोकि यंत्र और जैविक प्रणाली का मिश्रण है; आधा मानव, आधा मशीन।
इन सभी फिल्मो मे मानव मन मे तकनीक पर चल रहे अंतर्द्वद्व को सफलतापूर्वक दर्शाया गया है, एक ओर इन फिल्मो मे मानव की तकनीक से चाहत दर्शायी गयी है; दूसरी ओर मानव मन मे अपनी ही द्वारा निर्मित तकनीक से भय दर्शाया गया है। एक ओर मानव रोबोट को अपनी एक ऐसी चाहत के रूप मे देखता है जो उसे अमरता प्रदाण कर सकती है और एक ऐसे मजबूत और अविनाशी कलेवर मे है जिसकी बुद्धिमत्ता, तंत्रिकातंत्र और क्षमता किसी मानव से कई गुणा बेहतर है। दूसरी ओर उसके मन मे डर समाया हुआ है कि अत्याधुनिक तकनीक जो आम लोगो के लिये रहस्यमयी है ,उसके नियंत्रण से बाहर जा सकती है और अपने ही निर्माता के विरोध मे कार्य कर सकती है, और यही डर HAL 9000, टर्मीनेटर और मैट्रिक्स मे दिखाया गया है। आइजैक आसीमोव द्वारा उनके रोबोटो मे प्रयुक्त पाजीट्रानीक मस्तिष्क मे भी यही भय अंतर्निहीत है, वह ऐसी आधुनिक तकनीक से निर्मित है जिसकी सूक्ष्म स्तर पर कार्यप्रणाली को वर्तमान मे कोई नही जानता है और इन रोबोटो का निर्माण कार्य पूर्णतः स्वचालित है।
कंप्यूटर विज्ञान मे हालिया प्रगति ने नये विज्ञान फतांशी रोबोटो के गुणों को भी प्रभावित किया है। कृत्रिम न्युरल नेटवर्क ने टर्मीनेटर रोबोट पर प्रभाव डाला है, वह बुद्धिमान है तो है ही, साथ ही मे वह अनुभव से सीख भी सकता है।
इस फिल्म मे टर्मीनेटर रोबोट काल्पनिक रोबोट की प्राथमिक अवस्था वाला प्रतिरूप है। वह चल सकता है, बोल सकता है, मानव के जैसे देख और व्यवहार कर सकता है। उसकी बैटरी 120 वर्ष तक ऊर्जा दे सकती है साथ मे ही किसी अप्रत्याशित दुर्घटना की अवस्था मे उसके पास पर्यायी ऊर्जा व्यवस्था है। लेकिन इस सबसे महत्वपूर्ण है कि वह सीख सकता है। उसे नियंत्रण करने के लिये न्युरल-नेट प्रोसेसर है, जो अपने अनुभव से सीखने वाले कंप्यूटर है।
इस फिल्म मे दार्शनिक कोण से सबसे रोचक बात यह है कि यह एक ऐसा न्युरल प्रोसेसर है कि वह घातांकी दर(exponential rate) से सीखता है और कुछ समय पश्चात आत्म-जागृत हो जाता है। इस तरह से यह फिल्म महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है जो कृत्रिम चेतना से संबधित है। क्या रोबोट मे कृत्रिम चेतना आ सकती है, क्या वे आत्म जागृत हो सकते है ? यदि हाँ तो इसके क्या परिणाम होंगे ? इस कृत्रिम चेतना, आत्म जागृति के दुष्परिणामो से कैसे बचा जाये ?
क्या एक मशीन आत्म जागृत हो सकती है?
इस प्रश्न पर विचार करने से पहले हमे एक और प्रश्न का उत्तर देना होगा “हम कैसे माने कि कोई बुद्धिमान वस्तु आत्म-चेतन है?” 1950 मे एलन ट्युरींग के सामने यही समस्या थी लेकिन वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबधित थी। एलन ट्युरींग के सामने प्रश्न था कि हम किसी मशीन को मानव के जैसे बुद्धिमान कैसे माने। उन्होने इसके लिये एक प्रसिद्ध जांच प्रक्रिया बनायी जिसे ट्युरींग टेस्ट कहते है। इसके अनुसार दो कुंजीपटल है, एक कंप्यूटर से जुडा है, दूसरा एक व्यक्ति के पास है। एक जांचकर्ता अपने पसंदिदा किसी भी विषय पर कुछ प्रश्न टाईप करता है , दोनो कंप्यूटर और व्यक्ति उन प्रश्नों का उत्तर टाईप करते है और जांचकर्ता उन उत्तरो को एक स्क्रीन पर देखता है। यदि जांचकर्ता उन उत्तरो को देखकर यह तय नही कर पाये कि कौनसा उत्तर मानव ने दिया है और कौनसा उत्तर कंप्यूटर ने तब हम कह सकते है कि मशीन ने ट्युरींग टेस्ट पास कर ली है। अब तक किसी मशीन ने ट्युरींग टेस्ट पास नही की है।( इसके अपवाद कुछ विशेष विषय जैसे शतंरज जैसे खेल है जिसमे कंप्यूटर मानव पर भारी पढ़ा है।)मई 11, 1997 को इतिहास मे प्रथम बार डीप ब्ल्यु नामक कंप्यूटर ने विश्व शतरंज चैंपीयन गैरी कास्पोरोव को 3.5 – 2.5 के स्कोर से हराया था। लेकिन ध्यान रखें कि डीप ब्ल्यु को शतरंज की समझ नही है, वह केवल कुछ नियमों का पालन कर पता करता है कि किस चाल को चलने से वह बेहतर स्थिति मे होगा और यह नियम कुछ मानव शतरंज खिलाडीयो द्वारा डीप ब्ल्यु की स्मृति मे डाले गये है। यदि हम ट्युरींग के दृष्टिकोण से देखें तो कह सकते है कि डीप ब्ल्यु शतरंज बुद्धिमान तरीके से खेलता है लेकिन हम यह भी कह सकते हैं कि वह नही जानता कि उसकी चालों का अर्थ क्या है, यह ठीक उसी तरह से है जैसे टीवी को उस पर दिखायी जा रही तस्वीरों का अर्थ नही मालूम होता है।
किसी बुद्धिमान वस्तु के आत्म-चेतन होने की जांच तो और भी बडी़ समस्या है। तथ्य यह है कि बुद्धिमत्ता बाह्य व्यवहार से प्रदर्शित होती है और यह एक ऐसा गुणधर्म है जिसी भिन्न जांच मानको से मापा जा सकता है, लेकिन आत्म-चेतन हमारे मस्तिष्क का आंतरिक व्यवहार है जिसे मापा नही जा सकता है।
शुध्द दार्शनिक दृष्टिकोण से किसी अन्य मस्तिष्क मे चेतना की उपस्थिति नही मापी जा सकती है, यह एक ऐसा गुणधर्म है को उसका धारक ही माप सकता है। हम किसी अन्य मे मस्तिष्क मे प्रवेश नही कर सकते है, इसलिये हम यह तय नही कर सकते हैं कि उसमे चेतना है या नही। इस तरह की समस्याओं के बारे मे डगलस होफ्स्टैडटर और डैनीयल डेन्नेट ने अपनी पुस्तक “द माइंड्स आई” मे चर्चा की है।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से हम ट्युरींग की जांच प्रक्रिया का प्रयोग कर सकते है और किसी भी वस्तु को आत्म-चेतन मान सकते है जब वह एक निर्धारित जांच प्रक्रिया मे सफल होकर अपने आप को आत्म-चेतन सिद्ध कर दे। मानवों मे भी यह विश्वास कि अन्य व्यक्ति भी आत्म-चेतन है, इसी तरह की मान्यताओं पर आधारित है: हमारे पास एक जैसे अंग है, हमारे पास एक जैसे मस्तिष्क है, इसलिये यह मानना कि सामने खड़ा व्यक्ति भी आत्म-चेतन है विवेकपूर्ण होगा। अपने सबसे अच्छे मित्र के आत्म-चेतन होने पर कौन प्रश्न उठायेगा? हालाँकि यदि हमारे सामने खड़ा व्यक्ति भले ही मानव जैसे व्यवहार कर रहा हो लेकिन वह कृत्रिम मांसपेशीयों , कृत्रिम अंगो और न्युरल प्रोसेसर का प्रयोग कर रहा हो तो शायद हमारा निर्णय अलग हो।
कृत्रिम न्युरल नेटवर्क के उदय से कृत्रिम चेतना और भी रोचक हो गयी है, क्योंकि न्युरल नेटवर्क हमारे मस्तिष्क के जैसे ही विद्युत संकेतो का प्रयोग करता है और हमारे मस्तिष्क द्वारा प्रयुक्त सूचना संसाधन के जैसे ही तरिको का प्रयोग करता है।
हालांकि यह सभी मानते है कि वर्तमान कंप्यूटर प्रक्रिया आधारित कृत्रिम मस्तिष्क कभी भी आत्म-चेतन नही हो सकता लेकिन क्या यह हम न्युरल नेटवर्क के बारे मे कह सकते है? यदि हम विभिन्न जैविक और कृत्रिम मस्तिष्कों के मध्य संरचनात्मक विभिन्नताओं को हटा दें तो यह मुद्दा धार्मिक बन जाता है। दूसरे शब्दो मे यदि हम माने कि मानव चेतना किसी दैविक शक्ति द्वारा प्रदान की गयी है तो यह स्पष्ट है कि कोई भी कृत्रिम वस्तु मे आत्म-चेतना नही आ सकती है। लेकिन यदि हम माने कि मानव चेतना एक विद्युत न्युरल अवस्था है को जटिल मस्तिष्क द्वारा सहज तरिके से निर्मित है तब एक कृत्रिम आत्म-चेतन मस्तिष्क के निर्माण की संभावना प्रबल हो जाती है। यदि हम यह माने कि चेतना मस्तिष्क का भौतिक गुणधर्म है तब प्रश्न उठता है कि
कब कंप्यूटर आत्म-चेतन हो पायेगा ?
इस प्रश्न का उत्तर देना खतरनाक हो सकता है! लेकिन इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले हमे कंप्यूटर के आत्म चेतन होने के लिये एक ऐसी न्युनतम सीमा बनानी होगी, जिसके बिना एक मशीन आत्म-चेतना विकसीत नही कर सकती हो। हम यह मानकर चलते हैं कि आत्म-चेतना का विकास होने के लिये न्युरल नेटवर्क को कम से कम मानव मस्तिष्क के तुल्य जटिल होना चाहिये।मानव मस्तिष्क मे लगभग 1012 न्युरान है और हर न्युरान लगभग 1013 अन्य न्युरानो से जुडा होता है, इस तरह इस नेटवर्क मे औसतन कुल 1015 सूत्रयुग्मन(synapses) होते है। कृत्रिम न्युरल नेटवर्क मे एक सूत्रयुग्म को एक वास्तविक संख्या (Floating point) के रूप रखा जा सकता है, वास्तविक संख्या को कंप्यूटर मे रखने के लिये 4 बाईट चाहिये। इस तरह से 1015 सूत्रयुग्म के लिये कुल 4*1015 बाईट(40 लाख गीगाबाईट) चाहीये होगी। चलो मान लेते है कि संपूर्ण मानव मस्तिष्क को जैसे व्यवहार करने के लिये 80 लाख गीगाबाईट चाहीये होगी, इसमे हमने न्युरान द्बारा उत्पन्न संकेतो और भिन्न आंतरिक मस्तिष्क अवस्थाओं को संरक्षित रखने के लिये आवश्यक जगह भी जोड ली है। अब प्रश्न उठता है कि इतनी कंप्यूटर स्मृति कब तक उपलब्ध होगी ?
इतनी कंप्यूटर स्मृति कब तक उपलब्ध होगी ?
पिछले 30 वर्षो मे RAM की क्षमता हर वर्ष ज्यामितीय रूप से हर चार वर्ष मे दस गुनी होते जा रही है। नीचे दी गयी सारणी मे 1980 से अब तक सामान्य निजी कंप्यूटरों मे लगी RAM दर्शायी गयी है।इन आंकड़ो की सहायता से हम वर्ष और RAM क्षमता के मध्य एक गणितिय संबंध प्राप्त कर सकते है।
byte=10[(year-1966)/4]
उदाहरण के लिये इस समीकरण से प्राप्त कर सकते हैं कि 1990 मे एक निजी
कंप्यूटर मे 1 मेगा बाईट RAM थी, 1998 मे एक निजी कंप्यूटर मे 100 मेगा
बाईट RAM थी। इस सूत्र की सहायता से किसी भी वर्ष मे किसी निजी कंप्यूटर मे
कितनी RAM होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है।(हम मानकर चल रहे हैं कि RAM
क्षमता इसी दर से बढते जायेगी।)
वर्ष = 1966+ 4log10 (bytes)
अब हमे यह ज्ञात करना है किस वर्ष मे किसी निजी कंप्यूटर मे 80 लाख गीगा
बाईट की क्षमता प्राप्त होगी। इस सूत्र मे हम इस संख्या को रख देते है और
हमे उत्तर प्राप्त होता है:
वर्ष = 2029
यह एक मजेदार संयोग है कि टर्मीनेटर फिल्म मे भी इसी वर्ष स्कायनेट आत्म-चेतन हुआ था।अब इस परिणाम का अर्थ को पूरी तरह से समझने के लिये प्रथम हमे कुछ और अन्य तथ्यों पर भी गौर करना होगा। सबसे पहले गणना की गयी दिनांक एक आवश्यक शर्त के लिये है लेकिन कृत्रिम चेतना के लिये वह संपूर्ण शर्त नही है। इसका अर्थ है कि एक शक्तिशाली कंप्यूटर जिसमे लाखों गीगाबाईट RAM हो कृत्रिम चेतना के लिये पर्याप्त नही है। इसके अतिरिक्त भी कई सारे कारक है, जैसे कृत्रिम न्युरल नेटवर्क के सिद्धांत मे विकास, मानव मस्तिष्क के जैविक प्रक्रिया को ज्यादा अच्छे तरीके से समझना। मानव मस्तिष्क और कंप्यूटर मे सबसे बड़ा अंतर समस्याओं को हल करने की विधि मे है। कंप्यूटर को इस तरह से निर्देश दिये जाते है किं वह कोई त्रुटि ना करे, वह जिस तरह से निर्देशो का पालन करते है वह मानव मन को हास्यास्पद लगेगा। यदि किसी मानव से पूछा जाये कि किसी भी दो क्रमिक पूर्णांक संख्याओं के योग को दो से भाग दिया जाये तो क्या उत्तर पूर्णांक मे आयेगा? मानव इसका उत्तर देगा “नहीं” क्योंकि वह उत्तर जानता है। लेकिन जब यही प्रश्न कंप्यूटर से पूछा जाये, वह उत्तर नही जानता। वह उत्तर पाने के लिये गणना प्रारंभ करेगा। वह सबसे पहले 1 और 2 को जोडेगा और परिणाम मे आये 3 को 2 से भाग देगा , परिणाम आयेगा 1.5, अर्थात “नही”। अब कंप्यूटर अगला युग्म 2 और 3 लेकर प्रक्रिया दोहरायेगा। कंप्यूटर यह प्रक्रिया तब तक दोहरायेगा जब तक उसे उत्तर “हां” ना मिले। इस उदाहरण मे उसे “हां‘’ कभी नही मिलेगा और वह इस चक्र मे फंस जायेगा। किसी मानव को उसकी गणन प्रक्रिया जबरन रोकनी होगी। कंप्यूटर यह समझने मे असमर्थ है कि उसे इस गणन प्रक्रिया मे कभी “हाँ” मे उत्तर नही मिलेगा। हम कंप्यूटर मे यह सूचना डाल सकते है कि “किसी भी दो क्रमिक पूर्णांक संख्याओं के योग को 2 से भाग देने पर पूर्णांक नही मिलेगा”। अब इस सूचना के डालने के बाद अगली बार कंप्यूटर इस प्रश्न का उत्तर दे पायेगा। लेकिन समस्या यह है कि ऐसे लाखों प्रश्न है, जो मानव मस्तिष्क सहज रूप से उत्तर दे सकता है और उन सभी प्रश्नों के उत्तर को कंप्यूटर मे सूचना के रूप मे भरना असंभव है। मानव के साथ ऐसा नही है, उसे आप बस गणित से सामान्य नियमों के बारे मे बता दे और वे अपने ज्ञान के आधार पर किसी भी अन्य गणितीय समस्या को हल कर लेंगें। मानव के पास समझ है लेकिन कंप्यूटर के पास केवल नियम और निर्देश।
ये सभी कारक किसी आत्म-चेतन कंप्यूटर के निर्माण की दिनांक के अनुमान को असंभव सा बना देते है। एक तर्क यह दिया जा सकता है कि यह गणना तो निजी कंप्यूटर के लिये की गयी है जोकि इस क्षेत्र मे उच्च स्तर का तकनीकी विकास नही है। यह भी तर्क दिया जा सकता है कि इतनी RAM किसी नेटवर्क के कंप्यूटरो द्वारा या हार्ड डिस्क की स्मृति के आभासी स्मृति (Virtual Memory) प्रबंधन द्वारा भी उपलब्ध करायी जा सकती है। लेकिन हम किसी भी गणना पद्धति को लेकर चले उपर गणना की गयी तिथि तो ज्यादा से ज्यादा कुछ वर्ष ही पहले लाया जा सकता है।
इतने सारे विचार विमर्श के पश्चात प्रश्न आता है कि
एक आत्म-चेतन मशीन की आवश्यकता क्यों है?
नैतिक मूल्यों को एक तरफ रख कर सोचा जाये तो यह तय है कि आत्मचेतन मशीन का निर्माण एक मील का पत्थर होगा और तकनीकी क्षेत्र मे एक क्रांति होगा। यह मानव मन के नये क्षितिज को छूने की सनातन चाहत के लिये सबसे बड़ी प्रेरणा होगी और विज्ञान विकास मे एक नया मोड होगा। एक ऐसे कृत्रिम मस्तिष्क का निर्माण जो जैविक मस्तिष्क पर आधारित हो, हमारे ज्ञान के तेजी और भरोसेमंद तरीके से स्थानांतरित करने मे सहायक होगा और अमरता की ओर एक कदम होगा। मानव एक कमजोर शरीर के बंधन से मुक्त हो कर कृत्रिम अंगो की सहायता से अमर हो जायेगा और इन कृत्रिम अंगो मे मस्तिष्क भी शामिल होगा। इस अमर शरीर के प्रयोग से मानव ब्रह्मांड के उन भागो की यात्रा कर सकेगा जिनमे जाने के लिये सैकडो वर्ष लग सकते है। वह परग्रही सभ्यता की तलाश मे अनंत यात्रा पर जा सकेगा, सौर मंडल की मृत्यु पर नये घर की तलाश मे जा सकेगा, श्याम विवर की ऊर्जा के उपभोग के रास्ते की तलाश मे जा सकेगा, इसके अतिरिक्त वह मानव मन को प्रकाशगति से अन्य ग्रहो पर भेज सकेगा।बाह्य अंतरिक्ष मे बुद्धिमान जीवन की खोज 1972 के पायोनियर 10 यान से प्रारंभ हो गयी थी, इस यान मे मानव सभ्यता और पृथ्वी ग्रह के बारे मे सूचनायें है। मानव प्रजाति द्वारा की गयी सभी खोजो मे नाभिकिय ऊर्जा से परमाणु बम तक, जेनेटिक इंजीनियरींग से मानव क्लोम तक सबसे बड़ी समस्या रही है कि तकनीक को नियंत्रण मे कैसे रखा जाये, जिससे वह मानव जाति के विकास मे सहायक हो, उसके विनाश मे नही। अगला प्रश्न है कि
आत्म-चेतन मशीन को मानव नियंत्रण मे कैसे रखा जाये ?
इस प्रश्न का उत्तर आइजैक आसीमोव अपनी कहानी मे “रन अराउंड” मे दे चुके है। उन्होने आत्मचेतन मशीन को मानव नियंत्रण मे रखने के लिये तीन नियम बनाये है। उनके अनुसार हर आत्मचेतन मशीन को इन तीन नियमों का पालन करना होगा। ये तीन नियम है- कोई रोबोट किसी मानव को हानि नही पहुंचायेगा या अपनी किसी निष्क्रियता द्वारा किसी मानव को हानि पहुंचने नहीं देगा।
- रोबोट मानव द्वारा दिये गये निर्देशो का पालन करेगा बशर्ते वे निर्देश नियम एक का उल्लंघन ना करते हों।
- रोबोट स्वयं के अस्तित्व की रक्षा करेगा बशर्ते उसकी रक्षा मे नियम एक और दो का उल्लंघन ना हो!
आत्म-चेतन मशीन और नैतिकता
मशीन/रोबोटो मे आत्मचेतना का उद्भव कुछ नैतिक प्रश्नो को भी जन्म देता है। स्टार ट्रेक के एक एपीसोड मे आत्मचेतन रोबोट के स्वामित्व का प्रश्न उठाया गया था, इस धारावाहिक मे लेफ्टीनेंट कमांडर डाटा एक आत्म चेतन रोबोट है। इस एपीसोड मे प्रश्न था कि डाटा को फेडरेशन की संपत्ति माना जाये या एक स्वतंत्र आत्मचेतन व्यक्तित्व। अंत मे डाटा की विजय हुयी थी और उसे एकस्वतंत्र आत्मचेतन व्यक्तित्व माना गया था। लेकिन कुछ और प्रश्न रह जाते है।- जब रोबोट आत्मचेतन है तो उन्हे मानवो के समकक्ष माना जाये ?
- क्या उनके भी मानवाधिकार के जैसे रोबोअधिकार होंगे ?
- मानवो मे दासता प्रथा का अंत हो चुका है, इस परिप्रेक्ष्य मे आत्मचेतन रोबोटो का स्वामित्व किसका होगा ?
- मानवो और आत्मचेतन रोबोटो के अधिकारो मे संतुलन किस तरह रखा जाये कि वे एक दूसरे के सहअस्तित्व मे रह सके जिससे मैट्रिक्स या टर्मीनेटर जैसी स्थिति उत्पन्न ना हो।
मानवता की गरिमा पर हमला
1976 मे जोसेफ वेइजेनबम ने कहा था कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग उन पदो के प्रतिस्थापना के लिये नही किया जाना चाहिये जिन पदो के लिये सम्मान, जिम्मेदारी और सावधानी की आवश्यकता हो। उदाहरण स्वरूप:- ग्राहक सेवा प्रतिनिधि (वर्तमान मे इस पद के लिये ध्वनि आधारित सेवा तकनीक का प्रयोग हो रहा है और ग्राहको की परेशानी का एक कारण भी है क्योंकि इस सेवा मे एक मानवीय पहलू का अभाव होता है।)
- चिकित्सक
- सेवा टहल के लिये आया
- न्यायाधिश
- पुलिस आफीसर
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