Thursday 25 February 2016

प्रकाश गति मापन का प्रयास

गैलीलियो ने प्रकाश की गति नापने का भी प्रयास किया और तत्संबंधी प्रयोग किए। गैलीलियो व उनका एक सहायक दो भिन्न पर्वत शिखरों पर कपाट लगी लालटेन लेकर रात में चढ़ गए। सहायक को निर्देश दिया गया था कि जैसे ही उसे गैलीलियो की लालटेन का प्रकाश दिखे उसे अपनी लालटेन का कपाट खोल देना था। गैलीलियो को अपने कपाट खोलने व सहायक की लालटेन का प्रकाश दिखने के बीच का समय अंतराल मापना था-पहाड़ों के बीच की दूरी उन्हें ज्ञात थी। इस तरह उन्होंने प्रकाश की गति ज्ञात की।
पर गैलीलियो – गैलीलियो ठहरे – वे इतने से कहां संतुष्ट होने वाले थे। अपने प्रायोगिक निष्कर्ष को दुहराना जो था। इस बार उन्होंने ऐसी दो पहाड़ियों का चयन किया जिनके बीच की दूरी कहीं ज्यादा थी। पर आश्चर्य, इस बार भी समय अंतराल पहले जितना ही आया। गैलीलियो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रकाश को चलने में लग रहा समय उनके सहायक की प्रतिक्रिया के समय से बहुत कम होगा और इस प्रकार प्रकाश का वेग नापना उनकी युक्ति की संवेदनशीलता के परे था। पर गैलीलियो द्वारा बृहस्पति के चंद्रमाओं के बृहस्पति की छाया में आ जाने से उन पर पड़ने वाले ग्रहण के प्रेक्षण से ओल रोमर नामक हॉलैंड के खगोलविज्ञानी को एक विचार आया। उन्हें लगा कि इन प्रेक्षणों के द्वारा प्रकाश का वेग ज्ञात किया जा सकता है। सन् 1675 में उन्होंने यह प्रयोग किया जो इस तरह का प्रथम प्रयास था। इस प्रकार यांत्रिक बलों पर किए अपने मुख्य कार्य के अतिरिक्त गैलीलियो के इन अन्य कार्यों ने उनके प्रभाव क्षेत्र को कहीं अधिक विस्तृत कर दिया था जिससे लंबे काल तक प्रबुद्ध लोग प्रभावित होते रहे।
गैलीलियो ने आज से बहुत पहले गणित, सैद्धांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी के परस्पर संबंध को समझ लिया था। परवलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि एक समान त्वरण (uniform acceleration) की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग पर चल कर वापस पृथ्वी पर आ गिरेगा – बशर्ते हवा के घर्षण का बल उपेक्षणीय हो। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि उनका यह सिद्धांत जरूरी नहीं कि किसी ग्रह जैसे पिंड पर भी लागू हो। उन्हें इस बात का ध्यान था कि उनके मापन में घर्षण (friction) तथा अन्य बलों के कारण अवश्य त्रुटियां आई होंगी जो उनके सिद्धांत की सही गणितीय व्याख्या में बाधा उत्पन्न कर रहीं थीं। उनकी इसी अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकीविद् आइंस्टाइन ने उन्हें ”आधुनिक विज्ञान का पिता” की पदवी दे डाली। कथन में कितनी सचाई है पता नहीं – पर माना जाता है कि गैलीलियो ने पीसा की टेढ़ी मीनार से अलग-अलग संहति (mass) की गेंदें गिराने का प्रयोग किया और यह पाया उनके द्वारा गिरने में लगे समय का उनकी संहति से कोई सम्बन्ध नहीं था – सब समान समय ले रहीं थीं। ये बात तब तक छाई अरस्तू की विचारधारा के एकदम विपरीत थी – क्योंकि अरस्तू के अनुसार अधिक भारी वस्तुएं तेजी से गिरनी चाहिए। बाद में उन्होंने यही प्रयोग गेदों को अवनत तलों पर लुढ़का कर दुहराए तथा पुन: उसी निष्कर्ष पर पहुंचे।
गैलीलियो ने त्वरण के लिए सही गणितीय समीकरण खोजा। उन्होंने कहा कि अगर कोई स्थिर पिंड समान त्वरण के कारण गतिशील होता है तो उसकी चलित दूरी समय अंतराल के वर्ग के समानुपाती होगी।

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